पुराणों अनुसार ब्रह्मा जी के मानस पुत्र:- मन से मारिचि, नेत्र से अत्रि, मुख से अंगिरस, कान से पुलस्त्य, नाभि से पुलह, हाथ से कृतु, त्वचा से भृगु, प्राण से वशिष्ठ, अंगुष्ठ से दक्ष, छाया से कंदर्भ, गोद से नारद, इच्छा से सनक, सनन्दन, सनातन, सनतकुमार, शरीर से स्वायंभुव मनु, ध्यान से चित्रगुप्त आदि। आओ जानते हैं ऋषि क्रतु के बारे मं संक्षिप्त में जानकारी।
2. ब्रह्मा की आज्ञा से उन्होंने दक्ष प्रजापति और क्रिया की पुत्री सन्नति से विवाह किया था। कहते हैं कि क्रतु और सन्नति से 'बालिखिल्य' नाम के 60 हजार पुत्र हुए। इन बालखिल्यों का आकार अंगूठे के बराबर माना जाता है। यह सभी पुत्र भगवान सूर्य के उपासक थे। सूर्य के रथ के आगे अपना मुख सूर्य की ओर किये हुए बालखिल्य चलते हैं और उनकी स्तुति करते हैं। इन ब्रह्मर्षियों की तपस्या शक्ति सूर्यदेव को प्राप्त होती रहती है।
3. पुराणों अनुसार एक बार महर्षि मरीचि के पुत्र महर्षि कश्यप एक यज्ञ कर रहे थे। उन्होंने अपने तात महर्षि क्रतु से निवेदन किया कि वे उस यज्ञ के लिए ब्रह्मा का स्थान ग्रहण करें। अपने भतीजे के निवेदन पर महर्षि क्रतु अपने 60 हजार पुत्रों के साथ महर्षि कश्यप के यज्ञ में पधारे। उसी यज्ञ में देवराज इंद्र और महर्षि क्रतु के पुत्र बालखिल्यों में विवाद हो चला तब अपने पिता और महर्षि कश्यप द्वारा बीच-बचाव करने पर बालखिल्यों ने ही पक्षीराज गरुड़ को महर्षि कश्यप को पुत्र रूप में प्रदान किया था।
6. मनु के पुत्र उत्तानपाद और उत्तानपाद के पुत्र ध्रुव से महर्षि क्रतु अत्यंत प्रेम करते थे। जब अपने पिता से उपेक्षित होकर ध्रुव ने परमलोक की प्राप्ति करने की सोची तो सबसे पहे वो महर्षि क्रतु के पास गया। क्रतु ने ध्रुव को भगवान विष्णु की तपस्या करने की सलाह दी। बाद में देवर्षि नारद द्वारा अनुमोदन करने पर ध्रुव ने विष्णुजी की घोर तपस्या की और उनकी कृपा से परमलोक को प्राप्त हुआ। क्रतु ऋषि नाम का एक तारा है जो ध्रुव की परिक्रमा करने में आज भी लीन है। ध्रुव के प्रति अपने प्रेम के कारण ही महर्षि क्रतु उसके समीप चले गए।
7. पुराणों में महर्षि क्रतु को महर्षि अगस्त्य के वातापि भक्षण और समुद्र को पी जाने के कारण उनकी प्रशंसा करते हुए भी बताया गया है। कुछ ग्रंथों में इस बात का वर्णन है कि महर्षि क्रतु ने महर्षि अगस्त्य के पुत्र ईधवाहा को भी गोद लिया था। इसके अलावा महाराज भरत ने महर्षि क्रतु से देवताओं के चरित्र के विषय में प्रश्न किया था। तब महर्षि क्रतु ने उनकी इस शंका का समाधान किया था।
9. मैत्रेय संहिता के अनुसार एक बार यज्ञ से प्राप्त पशुओं का देवाताओं ने विभाजन कर दिया और उन्होंने रुद्र को उस विभाजन के हिस्से में शामिल नहीं किया तब रुद्रदेव क्रोधित हो गए और उन्होंने देवताओं पर आक्रमण कर दिया। इस आक्रमण में पूषणा के दन्त, भग के नेत्र और क्रतु के अंडकोषों को नष्ट हो गए। बाद में ब्रह्माजी ने उनकी स्तुति करके उन्हें शांत किया और उन्हें 'पशुपति' की उपाधि दी। फिर रुद्रदेव ने सभी को पहले जैसा कर दिया।