एक दिन बाबा ने तीन दिन के लिए अपने शरीर को छोड़ने से पहले म्लालसापति से कहा कि यदि मैं तीन दिन में वापिस लौटूं नहीं तो मेरे शरीर के अमुक जगह पर दफना देना। तीन दिन तक तुम्हें मेरे शरीर की रक्षा करना होगी। धीरे-धीरे बाबा की सांस बंद हो गई और शरीर की हलचल भी बंद हो गई। सभी लोगों में खबर फैल गई की बाबा का देहांत हो गया है।
डॉक्टर ने भी जांच करके मान लिया कि बाबा शांत हो गए हैं, लेकिन म्हालसापति ने सभी को बाबा से दूर रहने की सलाह दी। उन्होंने कहा, तीन दिन तक इनके शरीर की रक्षा की जिम्मेदारी मेरी है। गांव में इसको लेकर विवाद हो गया लेकिन म्हालसापति ने बाबा के सिर को अपनी गोद में रखकर तीन दिन तक जागरण किया। किसी को बाबा के पवन शरीर को हाथ भी नहीं लगाने दिया। तीन दिन बाद जब बाबा ने वापिस शरीर धारण किया तो जैसे चमत्कार हो गया। चारों और हर्ष व्याप्त हो गया।