इन 6 के बारे में बुरा सोचने पर खुद का ही होता है नाश

श्रीमद्‌भागवत महापुराण में भगवान कृष्ण ने ज्ञान और नीति के कई उपदेश दिए हैं। उन्हीं में से एक उपदेश 6 ऐसे लोगों के बारे में बताया है जिनके बारे में बुरा सोचने या उनका अपमान करने पर मनुष्य को खुद ही इसके दुष्परिणाम झेलना पड़ते हैं। यह बात निम्नलिखित श्लोक से समझें।
 
 
श्लोक :
यदा देवेषु वेदेषु गोषु विप्रेषु साधुषु।
धर्मो मयि च विद्वेषः स वा आशु विनश्यित।।- 7/4/27
 
 
अर्थात- जो व्यक्ति देवता, वेद, गौ, ब्राह्मण, साधु और धर्म के कामों के बारे में बुरा सोचता है, उसका जल्दी ही नाश हो जाता है। यहां स्पष्ट करना जरूरी है कि ब्राह्मण उसे कहते हैं, जो कि वैदिक नियमों का पालन करते हुए 'ब्रह्म ही सत्य है' ऐसा मानता और जानता हो। जन्म से कोई ब्राह्मण नहीं होता है।
 
 
1. देव : देवी या देवताओं का अपमान करने वाला ज्यादा समय तक नहीं टिक सकता। उसका एक दिन नाश होना ही है, चाहे वह हिरण्यकश्यप हो या रावण। 
 
 
2. वेद : 99 से भी ज्यादा प्रतिशत हिन्दुओं ने वेद नहीं पढ़े हैं अत: उनके बारे में कुछ भी बुरा सोचना या बोलना अपराध ही माना जाता है। वेद ईश्‍वर के वाक्य हैं। प्राचीनकाल से अब तक जिन्होंने भी वेदों का अपमान किया, उन्हें ईश्वर का दंड अवश्य ही झेलना पड़ा है। अत: हर हिन्दू को चाहिए कि वे वेद नहीं तो उपनिषद, उपनिषद नहीं तो गीता पढ़ें और धर्म के सच्चे मार्ग को जानें।
 
 
3. गाय : जब-जब गाय का अपमान या उसका कत्ल हुआ है, तो उसका दंड सभी को झेलना पड़ा है। गाय में सभी देवी और देवताओं का वास होता है। 84 लाख योनियों में गुजरने के बाद गाय या बैल को आत्मा का अंतिम पड़ाव माना जाता है।
 
 
इसी प्रकार जो मनुष्य गायों का सम्मान नहीं करता और उन्हें पीड़ा देता है, वह भी राक्षस के समान ही माना जाता है। हिन्दू धर्म के अनुसार जो मनुष्य रोज सुबह गाय को भोजन या चारा देता है और उनकी पूजा करता है, उसे धन-संपत्ति के साथ-साथ मान-सम्मान भी प्राप्त होता है।
 
 
4. ब्राह्मण : ब्राह्मण उसे कहते हैं, जो कि ब्रह्म को ही मानता और जानता हो। जो प्रतिदिन संध्यावंदन और वेदपाठ करता हो। जन्म से कोई ब्राह्मण नहीं होता। जिस व्यक्ति ने संसार में रहकर अपना संपूर्ण जीवन धर्म-कर्म के कार्यों में लगा दिया हो, उसका कभी अपमान नहीं करना चाहिए।
 
 
5. साधु : साधु या ऋषि ब्राह्मणों की तरह संसार में रहकर कार्य नहीं करते। वे जंगल या आश्रम में या परिव्राजक बनकर रहते हैं। संन्यास आश्रम में दक्ष व्यक्ति को ही ऋषि कहा जाता है। हर किसी को ऋषियों और साधुओं का हमेशा सम्मान करना चाहिए। ऋषियों के मुंह से निकले वचन ही शाप या वरदान में फलीफूत हो जाते हैं।
 
 
6. धर्म-कर्म की बात : धर्म और कर्म की बातों का कभी भी अपमान नहीं करना चाहिए, न ही उनका कभी मजाक ही उड़ाना चाहिए। अश्‍वत्थामा द्वारा धर्म की निंदा करने और अधर्म का साथ देने की वजह से ही भगवान कृष्ण ने उसे दर-दर भटकने और उसकी मुक्ति न होने का शाप दिया था। कोई भी व्यक्ति यदि ऐसा करता है तो वह यह न समझें कि उसे देखने, सुनने और शाप देने वाला कोई नहीं है।
 

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