एक साधे सब सधे, सब साधे कोई न सधे-1

धार्मिक आजादी का सभी धर्मों में दुरुपयोग हुआ है। इसका यह मतलब नहीं की लोगों की आजादी छीन ली जाए। धार्मिक आजादी के चलते जहां संतों ने धर्म की मनमानी व्याख्याएं की और उसका अपने हित में उपयोग किया, वहीं बहुत से संतों ने अपना एक अलग ही पंथ गढ़ लिया है

धार्मिक आजादी के चलते जहां ज्योतिषियों ने ज्योतिष विद्या को धर्म और देवी-देवताओं से जोड़कर उसका सत्यानाश कर दिया, वहीं उन्होंने लोगों को ठगने के लिए कई तरह की मनमानी पूजा, आरती, हवन, उपाय, नग, नगीने और अनुष्ठान विकसित कर लिए।

वैदिक काल से चली आ रही इस धार्मिक आजादी के चलते हिंदू धर्म पहले वेदों के मार्ग से भटककर पुराणिक धर्म बना और आज इसे क्या नाम दें यह आप ही तय करें।

दुविधा में हिंदू समाज : आज का हिंदू ज्योतिष, बाबा, पंडित, धर्मगुरु और संतों की मनमानी के चलते अक्सर दुविधा में रहता है। जिसे बचपन से मानते थे, ज्योतिषियों ने उसकी पूजा छुड़ाकर शनि-राहू, पितृ दोष, कालसर्प दोष के चक्कर में उलझा दिया। आखिर हिंदू क्या करें- निराकार परमेश्वर को माने, देवी-देवताओं को माने या ज्योतिष और बाबाओं के चक्कर काटता रहे।

टीवी पर ज्योतिषियों द्वारा फैलाया जा रहा भय और भ्रम। मनमाने यंत्र, मंत्र, तंत्र और ताबीज। ढेर सारे बाबाओं के विरोधाभासी प्रवचन और नए-नए जन्में धार्मिक संगठन, जिन्होंने हिंदू धर्म की मनमानी व्याख्याएं की। यह सब हिंदू धर्म को बिगाड़ने के अपराधी नहीं है तो क्या है? इन सबके कारण आज ज्यादातर हिंदू स्वयं को दुख, द्वंद्व और दुविधा के चक्र में फंसा हुआ महसूस करता है।

इसके नुकसान : दुविधा के कारण आपका का आत्मविश्वास खो जाएगा। आप हर समय डरे-डरे से रहेंगे और दिमाग में द्वंद्व पैदा हो जाएगा। दिमागी द्वंद्व से विरोधाभास और भ्रम उत्पन्न होगा। भ्रम और द्वंद्व से नकारात्मक विचार उत्पन्न होंगे। नकारात्मक विचारों की अधिकता के कारण जीवन में कुछ भी अच्‍छा घटित होना बंद हो जाएगा।

यदि आप ज्योतिष सहित सभी को दावे के साथ मानते हैं तो आप बहुत ज्यादा तर्क-वितर्क करने वाले तथाकथित ज्ञानी बनकर समाज में और भय व भ्रम फैलाएंगे। इससे आपके भीतर बुराइयों का जन्म होगा। आप धर्म के संबंध में मनघडंत बातें करेंगे। आप स्वयं के भीतर झांककर देखें और स्वयं से पूछें कि क्या यह सच है, जो मैं जानता या कहता हूं? आप यह क्यों नहीं मानते हैं कि ईश्वर की तारीफ से बढ़कर आपके पास कुछ भी कहने के लिए नहीं है।

दुविधा और दिमागी द्वंद्व में फंसे हुए लोगों के बारे में ही संत कबीर ने कहा है- दुविधा में दोऊ गए, माया मिली न राम। तजानें कि पूजा से बढ़कर है प्रार्थना। ग्रहों से बढ़कर है परमात्मा। परमात्मा ही है सबका मालिक।

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