भगवान कृष्ण भी कहते हैं- 'जो परमात्मा को अजन्मा और अनादि तथा लोकों के महान ईश्वर तत्व से जानते हैं, वे ही मनुष्यों में ज्ञानवान हैं। वे सब पापों से मुक्त हो जाते हैं। परमात्मा अनादि और अजन्मा है, परंतु मनुष्य, इतर जीव-जंतु तथा जड़ जगत क्या है? वे सबके सब न अजन्मे हैं, न अनादि। परमात्मा, बुद्धि, तत्वज्ञान, विवेक, क्षमा, सत्य, दम, सुख, दु:ख, उत्पत्ति और अभाव, भय और अभय, अहिंसा, समता, संतोष, तप, दान, कीर्ति, अपकीर्ति ऐसे ही प्राणियों की नाना प्रकार की भावनाएं परमात्मा से ही होती है। -भ. गीता-10-3,4,5।