ईश्वर का गुण

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ईश्‍वर के संबंध में हिन्दू धर्म के धर्मग्रंथ वेद में बहुत ही विस्तार रूप में प्रकट किया गया है। वेद का सर्वप्रथम ज्ञान चार ऋषियों ने प्राप्त किया अग्नि, वायु, अंगिरा और आदित्य। वेद तो एक ही है जिसे ऋग्वेद कहा गया। ऋग्वेद के ज्ञान को ही बाद में भगवान राम के काल में तीन भागों में विभाजित किया गया। इसे ऋषि पुरुरवा ने जब विभाजित किया, तब उसे वेदत्रयी के नाम से जाना जाने लगा। इसके बाद महाभारत काल में 14वें वेद व्यास हुए जिनका नाम कृष्ण द्वैपायन था, उन्होंने वेद को चार भागों में विभाजित कर उसके ज्ञान को व्यवस्थित किया। ये चार भाग हैं:- ऋग्वेद, यजुर्वेद, सामवेद और अथर्ववेद।
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हालांकि ईश्वर तो गुणातीत और गुणरहित है फिर भी लिखने में ऐसा ही आता है कि ईश्वर है तो उसके क्या गुण है? यहां प्रस्तुत है इसके बारे में संक्षिप्त जानकारी।
 
1.वह सिर्फ एक ही है बगैर किसी दूसरे के। वह अनुपम है।
2.उसका न कोई मां-बाप है और न पुत्र।
3.उसके कोई अभिकर्ता (एजेंट, संदेशवाहक, अवतार, देवदूत या प्रॉफेट) नहीं है।
4.वह अजन्मा और अप्रकट है।
5.वह निराकार और निर्विकार है।
6.उसकी कोई मूर्ति नहीं बनाई जा सकती।
7.वह अनादि और अनंत है। अर्थात उसका न प्रारंभ है और न अंत।
8.वह कभी मृत्यु को प्राप्त नहीं होता।
9.वह अपरिवर्तनीय और अगतिशिल है।
10.उसका देश अथवा काल की अपेक्षा से कोई आदि अथवा अंत नहीं है।
11.उसका कभी क्षय नहीं होता, वह सदैव परिपूर्ण है।
12.उसका अस्तित्व है।
13.वह चेतन है।
14.वह सर्वशक्तिमान है।
15.वह सर्वज्ञ और सर्वव्यापक है।
16.वह शुद्धस्वरूप है।
17.वह न्यायकारी है।
18.वह दयालु है।
19.वह सब सुखों और आनंद का स्रोत है।
20.वह सब से रहित है।
21.वह संपूर्ण सृष्टि का पालन करता है।
22.वह सृष्टि की उत्पत्ति करता है।
23.उसको किसी का भय नहीं है।
24.उसका सभी जीवों के साथ सीधा सम्बन्ध है।
25.सभी की आत्मा उसका बींब मात्र है।
26.सभी उसमें से उत्पन्न होकर उसी में लीन हो जाते हैं।
27.वह दूर से दूर और पास से भी पास है।
28.वह न पुरुष है और न स्त्री। 
29.वह काल पुरुष परम ज्योति है।