12 ज्योतिर्लिगों में से 9वां ज्योतिर्लिंग स्थित है झारखंड के देवघर नामक स्थान पर। इस ज्योतिर्लिंग की प्रसिद्ध बाबा बैजनाथ ने काम से है। इसे वैद्यनाथ धाम भी कहा जाता है। महाशिवरात्रि के समय यहां पर विशेष उत्सव रहता है और बाबा की जयंती बनाई जाती है। देवघर का अर्थ होता है देवताओं का घर और यहां के शिवलिंग को कामनालिंग भी कहते हैं। अर्थात जो सभी मनोकामनाएं पूर्ण करते हैं।
1. विश्व के सभी शिव मंदिरों के शीर्ष पर त्रिशूल लगा दीखता है मगर वैद्यनाथ धाम परिसर के शिव, पार्वती, लक्ष्मी-नारायण व अन्य सभी मंदिरों के शीर्ष पर पंचशूल लगे हैं। प्रतिवर्ष महाशिवरात्रि के दो दिन पूर्व यह पंचशूल मंदिरों से उतारे जाते हैं।
2. पंचशूल उतारे जाने की इस परंपरा को देखने के लिए भारी भीड़ उमड़ती है।
3. सभी पंचशूलों को नीचे लाकर महाशिवरात्रि से एक दिन पूर्व विशेष रूप से उनकी पूजा की जाती है और तब सभी पंचशूलों को मंदिरों पर यथा स्थान स्थापित कर दिया जाता है।
4. इस दौरान बाबा वैद्यनाथ और मता पार्वती मंदिरों के गठबंधन को हटा दिया जाता है। महाशिवरात्रि के दिन नया गठबंधन किया जाता है। हटाए गए गठबंधन के लाल पवित्र कपड़े को प्राप्त करने के लिए भी भक्तों की भीड़ उमड़ पड़ती है।
5. कहते हैं कि यहां स्थापित शिवलिंग रावण द्वार है। रावण की तपस्या से प्रसन्न होकर शिवजी ने उन्हें वर के रूप में शिवलिंग दिया था और कहा था कि तुम शिवलिंग ले जा सकते हो किंतु यदि रास्ते में इसे कहीं रख दोगे तो यह वहीं अचल हो जाएगा, तुम फिर इसे उठा न सकोगे।.. परंतु रास्ते में रावण को लघुशंका लगी तो उसने शिवलिंग को एक चरवाहे को हाथ में थमाया और कहा कि इसे नीचे मत रखना मैं अभी आया लघुशंका करके। परंतु वह चरवाहा वह शिवलिंग संभाल नहीं पाया और नीचे रख दिया।
रावण जब लौटकर आया तब बहुत प्रयत्न करने के बाद भी उस शिवलिंग को किसी प्रकार भी उठा न सका। अंत में थककर उस पवित्र शिवलिंग पर अपने अंगूठे का निशान बनाकर उसे वहीं छोड़कर लंका को लौट गया। तत्पश्चात ब्रह्मा, विष्णु आदि देवताओं ने वहां आकर उस शिवलिंग का पूजन किया। इस प्रकार वहां उसकी प्रतिष्ठा कर वे लोग अपने-अपने धाम को लौट गए। यही ज्योतिर्लिंग 'श्रीवैद्यनाथ' के नाम से जाना जाता है।
यह श्रीवैद्यनाथ-ज्योतिर्लिंग अनंत फलों को देने वाला है। यह ग्यारह अंगुल ऊंचा है। इसके ऊपर अंगूठे के आकार का गड्डा है। कहा जाता है कि यह वहीं निशान है जिसे रावण ने अपने अंगूठे से बनाया था। यहां दूर-दूर से तीर्थों का जल लाकर चढ़ाने का विधान है। रोग-मुक्ति के लिए भी इस ज्योतिर्लिंग की महिमा बहुत प्रसिद्ध है।
पुराणों में बताया गया है कि जो मनुष्य इस ज्योतिर्लिंग का दर्शन करता है, उसे अपने समस्त पापों से छुटकारा मिल जाता है। उस पर भगवान् शिव की कृपा सदा बनी रहती है। दैहिक, दैविक, भौतिक कष्ट उसके पास भूलकर भी नहीं आते भगवान् शंकर की कृपा से वह सारी बाधाओं, समस्त रोगों-शोकों से छुटकारा पा जाता है। उसे परम शांतिदायक शिवधाम की प्राप्ति होती है।