पक्ष :
कहते हैं कि हलाहल विष के सेवन के बाद शिवजी का शरीर नीला पड़कर तपने लगा परंतु फिर भी शिव पूर्णतः शांत थे लेकिन देवताओं और अश्विनी कुमारों ने सेवा भावना से भगवान शिव की तपन को शांत करने के लिए उन्हें जल चढ़ाया और विष का प्रभाव कम करने के लिए विजया (भांग का पौधा), बेलपत्र और धतूरे को दूध में मिलाकर भगवान शिव को औषधि रूप में पिलाया। तभी से लोग भगवान शिव को भांग भी चढ़ाने लगे।
कुछ विद्वान कहते हैं कि शिव को हलाहल के कुप्रभावों से संरक्षित करने के लिए ही शिवार्चन के समय बेलपत्र आदि को शिवलिंग पर चढ़ाने की परम्परा है। शिवलिंग पर जिन-जिन भी द्रव्यों से अभिषेक किया जाता है उन सभी द्रव्यों से ब्रहमाण्डीय ऊर्जा के नकारात्मक प्रभावों का शमन होता है। यही रुद्राभिषेक का विज्ञान है। शिवजी पर बेलपत्र, धतूरा और कच्चा दूध चढ़ाया जाता है जो कि ठंडक प्रदान करने का कार्य करता है।
विपक्ष :
कहते हैं कि समुद्र मंथन से निकले विष की बूंद गिरने से भांग और धतूरे नाम के पौधे उत्पन्न हो गए। कोई कहने लगा कि यह तो शंकरजी की प्रिय परम बूटी है। फिर लोगों ने कथा बना ली कि यह पौधा गंगा किनारे उगा था। इसलिए इसे गंगा की बहन के रूप में भी जाना गया। तभी भांग को शिव की जटा पर बसी गंगा के बगल में जगह मिली है। फिर क्या था सभी लोग भांग घोट-घोट के शंकरजी को चढ़ाने लगे। जबकि शिव महापुराण में कहीं भी नहीं लिखा है कि शंकरजी को भांग प्रिय है।