- मोनिका पाण्डेय
महाशिवरात्रि का इंतज़ार हिन्दू धर्म के सभी लोगों को बड़ी ही बेसब्री से होता है। बहुत सारे लोग ऐसे भी होते हैं जो महाशिवरात्रि पर शिवलिंग दर्शन करने जाने का प्लान एक साल पहले से बनाते हैं। यह त्योहार शिवजी के जन्मोत्सव के रूप में मनाया जाता है। महाशिवरात्रि का त्योहार फाल्गुन मास में कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी को मनाया जाता है। इस दिन शिवभक्त एवं शिव में श्रद्धा रखने वाले लोग व्रत-उपवास रखते हैं और विशेष रूप से भगवान शिव की पूजा-आराधना भी करते हैं।
बेलपत्र है भगवान शिव को प्रिय : पौराणिक कथा के अनुसार एक समय की बात है कि पार्वती जी के माथे से पसीने की कुछ बूंदें मंदार पर्वत पर जा गिरी। पार्वती जी के उस पसीने की बूंद से ही बेल का वृक्ष उत्पन्न हुआ। ऐसा माना जाता है कि बेल के पेड़ की जड़ में में गिरिजा, तने में महेश्वरी, शाखा में दक्षायनी, पत्ती में पार्वती तथा पुष्प में गौरी जी का वास होता है। इसी कारण शंकर जी को बेलपत्र बेहद प्रिय हैं। इसके अतिरिक्त मान्यता है कि बेलपत्र के मूल भाग में सभी तीर्थ स्थित होते हैं। भगवान शिव को बेलपत्र चढ़ाने से सभी तीर्थों की यात्रा का पुण्य मिलता है। ध्यान रहे की आप तीन या पांच पत्तियों वाला बेलपत्र ही चढ़ाएं।
भाग और धातुराव चढ़ाने के पीछे कारण : सृष्टि को बचाने के लिए भगवान शिव ने हलाहल विष का पान कर लिया था लेकिन विष को भगवान शिव ने अपने गले से नीचे नहीं उतरने दिया था। भगवान शिव को इस स्थिति से निकलना देवी-देवताओं के लिए बड़ी चुनौती बन गयी थी। आदि शक्ति के कहने पर देवताओं ने भगवान शिव के सिर पर भांग, धतूरा व बेलपत्र रखा और निरंतर जलाभिषेक किया जिसकी वजह से उनके मष्तिष्क का ताप कम हुआ। उस समय से ही भगवान शिव को भांग और धतूरा चढ़ाया जाता है।