Shradha Paksha 2020 : पारलौकिक मदद के लिए दें इन 16 दिन इन 4 चीजों की धूप

हिन्दू धर्म में घर में धूप और दीप देने का प्राचीनकाल से ही प्रचलन रहा है। कई प्रकार से धूप दी जाती है परंतु श्राद्ध पक्ष ने इन 16 दिन यदि आप उचित समय पर धूप दीप देंगे तो आपको पारौकिक मदद मिलेगी।
 
पितरों, देवताओं और क्षेत्रज्ञ को तथा वास्तु अर्थात हमारे घर के वातारवण को शुद्ध करने के लिए धूप देते हैं। धूप उपर बताए अनुसार सामग्री को मिलाकर धूप बनाई जाती है फिर उसे जलाकर धूप दी जाती है। धूप को लकड़ी पर या कंडे पर रखकर जलाया जाता है। लेकिन वर्तमान में सामान्य तौर पर धूप दो तरह से ही दी जाती है। पहला गुग्गुल-कर्पूर से और दूसरा गुड़-घी मिलाकर जलते कंडे पर उसे रखा जाता है।
 
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1.मिश्रित धूप : तंत्रसार के अनुसार अगर, तगर, कुष्ठ, शैलज, शर्करा, नागरमाथा, चंदन, इलाइची, तज, नखनखी, मुशीर, जटामांसी, कर्पूर, ताली, सदलन और गुग्गुल ये सोलह प्रकार के धूप माने गए हैं। इसे षोडशांग धूप कहते हैं। इनकी धूनी देने से आकस्मिक दुर्घटना नहीं होती है।..मदरत्न के अनुसार चंदन, कुष्ठ, नखल, राल, गुड़, शर्करा, नखगंध, जटामांसी, लघु और क्षौद्र सभी को समान मात्रा में मिलाकर जलाने से उत्तम धूप बनती है। इसे दशांग धूप कहते हैं। इस धूप को देने से घर में शांति रहती है।
 
इसके अलावा भी अन्य मिश्रणों का भी उल्लेख मिलता है जैसे- छह भाग कुष्ठ, दो भाग गुड़, तीन भाग लाक्षा, पांचवां भाग नखला, हरीतकी, राल समान अंश में, दपै एक भाग, शिलाजय तीन लव जिनता, नागरमोथा चार भाग, गुग्गुल एक भाग लेने से अति उत्तम धूप तैयार होती है। रुहिकाख्य, कण, दारुसिहृक, अगर, सित, शंख, जातीफल, श्रीश ये धूप में श्रेष्ठ माने जाते हैं। भोजन करने के पूर्व कुछ मात्रा में भोजन को अग्नि को समर्पित करने से वैश्वदेव यज्ञ पूर्ण होता है। यह भी एक प्रकार की धूप है।
 
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2.गुड़ और घी की धूप:- सर्वप्रथम एक कंडा जलाएं। फिर कुछ देर बार जब उसके अंगारे ही रह जाएं तब गुड़ और घी बराबर मात्रा में लेकर उक्त अंगारे पर रख दें और उसके आस-पास अंगुली से जल अर्पण करें। अंगुली से देवताओं को और अंगूठे से अर्पण करने से वह धूप पितरों को लगती है। चाहे तो इसमें पके चावल भी मिला सकते हैं। 
 
जब देवताओं के लिए करें तब ब्रह्मा, विष्णु और महेश का ध्यान करें और जब पितरों के लिए अर्पण करें तब अर्यमा सहित अपने पितरों का ध्यान करें और उनसे सुख-शांति की कामना करें। श्राद्धपक्ष में 16 दिन ही दी जाने वाली धूप से पितृ तृप्त होकर मुक्त हो जाते हैं तथा पितृदोष का समाधान होकर पितृयज्ञ भी पूर्ण होता है। गुड़-घी की धूप- इसे अग्निहोत्र सुगंध भी कह सकते हैं।
 
3.गुग्गुल-कर्पूर धूप:- सर्वप्रथम एक कंडा जलाएं। फिर कुछ देर बार जब उसके अंगारे ही रह जाएं तब उस पर गुग्गुल डाल दें। इससे संपूर्ण घर में एक सुगंधित धुआं फैल जाएगा।  
 
गुग्गुल का उपयोग सुगंध, इत्र व औषधि में भी किया जाता है। इसकी महक मीठी होती है और आग में डालने पर वह स्थान सुंगध से भर जाता है। गुग्गल की सुगंध से जहां आपके मस्तिष्क का दर्द और उससे संबंधित रोगों का नाश होगा वहीं इसे दिल के दर्द में भी लाभदायक माना गया है। घर में साफ-सफाई रखते हुए पीपल के पत्ते से 7 दिन तक घर में गौमूत्र के छींटे मारें एवं तत्पश्चात शुद्ध गुग्गल की धूप जला दें। इससे घर में किसी ने कुछ कर रखा होगा तो वह दूर हो जाएगा और सभी के मस्तिष्क शांत रहेंगे। हफ्ते में 1 बार किसी भी दिन घर में कंडे जलाकर गुग्गल की धूनी देने से गृहकलह शांत होता है।
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4. लोबान की धूप- लोबान को सुलगते हुए कंडे या अंगारे पर रख कर जलाया जाता है। लोबान का इस्तेमाल अक्सर दर्गाह जैसी जगह पर होता है। लोबान को जलाने के नियम होते हैं। इसको जलाने से पारलौकिक शक्तियां आकर्षित होती है। अत: लोबान को घर में जलाने से पहले किसी विशेषज्ञ से पूछकर जलाएं। गुरुवार के दिन किसी समाधि विशेष पर लोबान जलाने से पारलौकिक मदद मिलना शुरू हो जाती है।
 
धूप देने के लाभ:-
धूप देने से मन, शरीर और घर में शांति की स्थापना होती है। रोग और शोक मिट जाते हैं। गृहकलह और आकस्मिक घटना-दुर्घटना नहीं होती। घर के भीतर व्याप्त सभी तरह की नकारात्मक ऊर्जा बाहर निकलकर घर का वास्तुदोष मिट जाता है। ग्रह-नक्षत्रों से होने वाले छिटपुट बुरे असर भी धूप देने से दूर हो जाते हैं। धूप देने से देवता और पितृ प्रसंन्न होते हैं जिनकी सहायता से जीवन के हर तरह के कष्‍ट मिट जाते हैं।
 
इससे जो सुगंधित वातावरण निर्मित होगा, वह आपके मन और ‍मस्तिष्क के तनाव को शांत कर देगा। जहां शांति होती है, वहां गृहकलह नहीं होता और जहां गृहकलह नहीं होता वहीं लक्ष्मी वास करती हैं। गुड़-घी की धूप विशेष दिनों में देने से देवदोष व पितृदोष का शमन होता है। घर में किसी भी प्रकार का संकट नहीं आता है, लेकिन यह धूप देवताओं के निमित्त ही देना चाहिए। क्योंकि पितरों के निमित्त पितृपक्ष में ही देना चाहिए।

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