सर्वपितृ अमावस्या तिथि प्रारम्भ- 01 अक्टूबर 2024 को रात्रि 09:39 बजे से प्रारंभ।
सर्वपितृ अमावस्या समाप्त- 03 अक्टूबर 2024 को मध्यरात्रि 12:18 बजे समाप्त।
सर्वपितृ अमावस्या का श्राद्ध 2 अक्टूबर 2024 को रखा जाएगा, जानिए मुहूर्त:-
कुतुप मुहूर्त- दोपहर 11:46 से 12:34 के बीच।
अभिजीत मुहूर्त- दोपहर 11:46 से 12:34 के बीच।
रोहिणी मुहूर्त- दोपहर 12:34 से 01:21 के बीच।
अपराह्न काल- दोपहर 01:21 से 03:43 के बीच।
सर्वपितृ अमावस्या के श्राद्ध पक्ष में क्या खाएं?
इस दिन खीर, पूरी, भजिये, तुअर दाल, चावल, रोटी, मीठा आहार, फल, मिठाई, पालक, भिंडी, जौ, मटर, दूध, शहद और तील आदि उत्तम और सात्विक आहार ले सकते हैं।
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सर्वपितृ अमावस्या के श्राद्ध पक्ष श्राद्ध में क्या न खाएं?
श्राद्ध में चरखा, मांसाहार, बैंगन, प्याज, लहसुन, बासी भोजन, सफेद तील, मूली, लौकी, काला नमक, उड़द, कुलथी, सत्तू, जीरा, मसूर की दाल, सरसो का साग, सरसों की पत्ती, चना, काला जीरा, कचनार, खीरा, आदि वर्जित माना गया है। कोई यदि इनका उपयोग करना है तो पितर नाराज हो जाते हैं।
2. तर्पण और पिंडदान : सर्वपितृ अवमावस्या पर तर्पण और पिंडदान का खासा महत्व है। सामान्य विधि के अनुसार पिंडदान में चावल, गाय का दूध, घी, गुड़ और शहद को मिलाकर पिंड बनाए जाते हैं और उन्हें पितरों को अर्पित किया जाता है। पिंडदान के साथ ही जल में काले तिल, जौ, कुशा, सफेद फूल मिलाकर तर्पण किया जाता है। पिंड बनाने के बाद हाथ में कुशा, जौ, काला तिल, अक्षत् व जल लेकर संकल्प करें। इसके बाद इस मंत्र को पढ़े. “ॐ अद्य श्रुतिस्मृतिपुराणोक्त सर्व सांसारिक सुख-समृद्धि प्राप्ति च वंश-वृद्धि हेतव देवऋषिमनुष्यपितृतर्पणम च अहं करिष्ये।।'
3. भगवान विष्णु सहित इन दिव्य पितरों की करें पूजा : पितृलोक के श्रेष्ठ पितरों को न्यायदात्री समिति का सदस्य माना जाता है। यमराज की गणना भी पितरों में होती है। काव्यवाडनल, सोम, अर्यमा और यम- ये चार इस जमात के मुख्य गण प्रधान हैं। अर्यमा को पितरों का प्रधान माना गया है और यमराज को न्यायाधीश। इन चारों के अलावा प्रत्येक वर्ग की ओर से सुनवाई करने वाले हैं, यथा- अग्निष्व, देवताओं के प्रतिनिधि, सोमसद या सोमपा-साध्यों के प्रतिनिधि तथा बहिर्पद-गंधर्व, राक्षस, किन्नर सुपर्ण, सर्प तथा यक्षों के प्रतिनिधि हैं। इन सबसे गठित जो जमात है, वही पितर हैं। यही मृत्यु के बाद न्याय करती है। भगवान चित्रगुप्तजी के हाथों में कर्म की किताब, कलम, दवात और करवाल हैं। ये कुशल लेखक हैं और इनकी लेखनी से जीवों को उनके कर्मों के अनुसार न्याय मिलता है।
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अग्रिष्वात्त, बहिर्पद आज्यप, सोमेप, रश्मिप, उपदूत, आयन्तुन, श्राद्धभुक व नान्दीमुख ये नौ दिव्य पितर बताए गए हैं। आदित्य, वसु, रुद्र तथा दोनों अश्विनी कुमार भी केवल नांदीमुख पितरों को छोड़कर शेष सभी को तृप्त करते हैं।
4. प्रायश्चित कर्म : इस दिन शास्त्रों में मृत्यु के बाद और्ध्वदैहिक संस्कार, पिण्डदान, तर्पण, श्राद्ध, एकादशाह, सपिण्डीकरण, अशौचादि निर्णय, कर्म विपाक आदि के द्वारा पापों के विधान का प्रायश्चित कहा गया है।
5. गीता या गरूढ़ पुराण का पाठ : गरुढ़ पुराण में, मृत्यु के पहले और बाद की स्थिति के बारे में बताया गया है। इसीलिए यह पुराण मृतक को सुनाया जाता है। सर्वपितृ अमावस्या के दिन गरुढ़ पुराण के कुछ खास अध्यायों का पाठ करें या गीता का पाठ जरूर करें या घर में ही करवाएं।