सर्वपितृ अमावस्या के दिन सुबह से लेकर शाम तक ये 16 काम करें
शनिवार, 24 सितम्बर 2022 (15:42 IST)
25 सितंबर 2022 रविवार के दिन सर्वपितृ अमावस्या है। इस दिन सभी ज्ञात-अज्ञात पूर्वज, जिनकी तिथि ज्ञात नहीं है या जिनकी तिथि पर उनका श्राद्ध करना भूल गए हैं तो उन सभी का सर्व पितृ अमावस्या के दिन श्राद्ध करना चाहिए क्योंकि ऐसी मान्यता है कि इस दिन सभी पितृ श्राद्धकर्ता के घर या जहां श्राद्धकर्म किया जा रहा है वहां पर उपस्थित होते हैं। आओ जानते हैं इस दिन के 16 महत्वपूर्ण कार्य।
1. तर्पण करें : जल में काले तिल, जौ, कुशा, सफेद फूल मिलाकर तर्पण किया जाता है। पिंड बनाने के बाद हाथ में कुशा, जौ, काला तिल, अक्षत् व जल लेकर संकल्प करें। इसके बाद इस मंत्र को पढ़े. “ॐ अद्य श्रुतिस्मृतिपुराणोक्त सर्व सांसारिक सुख-समृद्धि प्राप्ति च वंश-वृद्धि हेतव देवऋषिमनुष्यपितृतर्पणम च अहं करिष्ये।।'
2. पिंडदान दें : चावल को गलाकर कम से कम तीन पिंड पूर्वजों ने नाम के बनाते हैं। पिता, दादा और दादा के पिता। पिता जिंदा है तो दादा, दादा के पिता और उनके पिता के नाम के पिंड बनाकर उसका विधिवत रूप से अर्पण कर जल में विसर्जन करते हैं।
3. पंचबलि कर्म करें : इसके अंतर्गत गाय, कौवे, कुत्ते, चींटी, मछली, वृक्ष और देवताओं को अन्न जल अर्पित करें।
4. ब्राह्मण भोज कराएं : ब्राह्मणों को भोजन नहीं करा सकते हैं तो जमई, भांजे, मामा, नाती और कुल खानदान के सभी लोगों को अच्छे से पेटभर भोजन खिलाकर दक्षिणा जरूर दें।
5. यथाशक्ति दान दें : गरीबों या जरूरतमंदों को खाद्य सामग्री, वस्त्र आदि दान करनी चाहिए। श्राद्ध में 10 तरह के दान दिए जाते हैं। 1.जूते-चप्पल, 2.वस्त्र, 3.छाता, 4.काला तिल, 5.घी, 6.गुड़, 7.धान्य, 8.नमक, 9.चांदी-स्वर्ण और 10.गौ-भूमि।
6. आमान्न दान : श्राद्ध में जो लोग भोजन कराने में अक्षम हों, उपरोक्त दान नहीं दे सकते हों, वे आमान्न दान देते हैं। आमान्न दान अर्थात अन्न, घी, गुड़, नमक आदि भोजन में प्रयुक्त होने वाली वस्तुएं इच्छानुसार मात्रा में दी जाती हैं।
7. बरगद और पीपल के पेड़ में जल अर्पित करें: बरगद और पीपल को जल अर्पित करके इनके नीचे धूप दीप प्रज्वलित करें। स्टील के लोटे में, दूध, पानी, काले तिल, शहद और जौ मिला लें और पीपल की जड़ में अर्पित कर दें।
8. गीता का पाठ करें : गीता के दूसरे, सातवें और दसवें अध्याय का पाठ करें।
9. पितृ-सूक्तम् पाठ करें : पितृ सूक्तम का पाठ करने से पितरों का आशीर्वा मिलता है।
10. पूजन : पितृ देव अर्यमा की पूजा के साथ ही इस दिन श्रीहरि विषणु, यमदेव और चित्रगुप्त की पूजा भी करते हैं। काव्यवाडनल, सोम, अर्यमा और यम- ये चार पितरों की जमात के मुख्य गण प्रधान हैं।
11. हनुमान चलीसा का पाठ : इस दौरान हनुमान चालीसा का पाठ करना चाहिए। ऐसा करने से घर-परिवार में कभी कोई संकट नहीं आता है।
12. दीप जलाएं : दक्षिण दिशा में पितरों के निमित्त 2, 5, 11 या 16 दीपक जरूर जलाएं। आप अपनी गैलरी में भी जला सकते हैं या आप प्रतिदिन पीपल के पेड़ के पास भी दीप जलाकर पितरों की मुक्ति हेतु प्रार्थना कर सकते हैं।
13. धूप दें : गुड़ घी को मिलाकर सुगंधित धूप दें, जब तक वह जले तब तक 'ॐ पितृदेवताभ्यो नम': का जप करें और इसी मंत्र से आहुति दें।
14. यहां करें श्राद्ध अनुष्ठान : देश में श्राद्ध पक्ष के लिए लगभग 55 स्थानों को महत्वपूर्ण माना गया है। इनमें से उज्जैन (मध्यप्रदेश), लोहानगर (राजस्थान), प्रयाग (उत्तर प्रदेश), हरिद्वार (उत्तराखंड), पिण्डारक (गुजरात), नाशिक (महाराष्ट्र), गया (बिहार), ब्रह्मकपाल (उत्तराखंड), मेघंकर (महाराष्ट्र), लक्ष्मण बाण (कर्नाटक), पुष्कर (राजस्थान), काशी (उत्तर प्रदेश) को प्रमुख माना जाता है।
15. प्रायश्चित कर्म : शास्त्रों में मृत्यु के बाद और्ध्वदैहिक संस्कार, पिण्डदान, तर्पण, श्राद्ध, एकादशाह, सपिण्डीकरण, अशौचादि निर्णय, कर्म विपाक आदि के द्वारा पापों के विधान का प्रायश्चित कहा गया है।
16. श्राद्ध का समय : श्राद्ध करने का समय तुरूप काल बताया गया है अर्थात दोपहर 12 से 3 के मध्य। प्रात: एवं सायंकाल के समय श्राद्ध निषेध कहा गया है। सुनिश्चित कुतप काल में धूप देकर पितरों को तृप्त करें। इस समय में तर्पण, पिंडदान, पूजन और धूप देते हैं।