पहली मान्यता वालों का पक्ष है कि श्राद्ध पक्ष का संबंध मृत्यु से है, इस कारण यह अशुभ काल माना जाता है। जैसे अपने परिजन की मृत्यु के पश्चात हम शोक अवधि में रहते हैं और अपने अन्य शुभ, नियमित, मंगल, व्यावसायिक कार्यों को विराम दे देते हैं, वही भाव पितृ पक्ष में भी जुड़ा है। जबकि दूसरा पक्ष मानता है कि 16 की संख्या शुभता का प्रतीक होती है।
दूसरी बात पितरों का पृथ्वी पर आना अशुभ कैसे हो सकता है? वे अब सशरीर हमारे बीच नहीं है किसी और लोक के निवासी हो गए हैं अत: वे पवित्र आत्मा हैं। उनका सूक्ष्म रूप में आगमन हमारे लिए कल्याणकारी है। जब हमारे पितृ हमें नवीन खरीदी करते हुए देखते हैं तो उन्हें प्रसन्नता होती है कि हमारे वंशज सु्खी और संपन्न हैं।
अगर हमारी समृद्धि बढ़ रही है तो ऐसे में उनकी आत्मा को भला क्यों क्लेश होगा? श्राद्ध पक्ष पितरों की शांति और प्रसन्नता के लिए मनाया जाने वाला परंपरागत पर्व है। श्राद्ध के दिनों में खरीदारी करना एवं अन्य शुभ कार्य करना मंगलकारी एवं लाभदायक है, क्योंकि पितृ हमेशा गणेश आराधना और देवी पूजा के बीच में आते हैं। पितरों के आभासी उपस्थिति में यदि किसी वस्तु की खरीदारी की जाए तो उनका आशीर्वाद प्राप्त होता है।
अत: इन 16 दिनों यह भ्रम त्याग देना चाहिए कि यह दिन अशुभ हैं। बल्कि यह दिन सामान्य दिनों से अधिक शुभ हैं, क्योंकि हमारे पूर्वज हमारे साथ हैं, हमें देख रहे हैं। पितरों का आशीर्वाद अत्यधिक फलदायक रहता है। पूर्वजों द्वारा किए गए त्याग के प्रति आदरपूर्वक कृतज्ञता निवेदित करना ही श्राद्ध कहलाता है। इन 16 दिनों में अनैतिक, आपराधिक, अमानवीय और हर गलत कार्य से बचना चाहिए ना कि शुभ और पवित्र कार्यों से।