जहाँ तक मेरी मान्यता है वह यह है कि अपने माता-पिता, दादा-दादी आदि को जीते जी तृप्त रखना। उनकी सेवा भाव से ससम्मान से आत्मा तृप्त रखी हो तो सबसे बड़ा पुण्य वही होता है। श्राद्ध पक्ष पूर्णिमा से लेकर अमावस्या तक माना गया है। इस अमावस्या को सर्वपितृ मोक्ष अमावस्या से कहा जाता है। श्राद्ध यानी श्रद्धा से अपने पितृजनों को यथाशक्ति जो उन्हें पसंद हो बनाकर अग्नि में उनके नाम से होम करते हैं।