Shradh Paksha 2025: साल 2025 में श्राद्ध पक्ष (पितृ पक्ष) 7 सितंबर, रविवार से शुरू होकर 21 सितंबर, रविवार तक रहेंगे। 21 सिंतरब को सर्व पितृ अमावस्या रहेगी। श्राद्ध की सही विधि, पिंडदान और तर्पण करने का संपूर्ण तरीका, सामग्री की सूची और महत्वपूर्ण मंत्र। जानें कि पितरों को प्रसन्न करने के लिए सही विधि से श्राद्ध कैसे करें।
श्राद्ध कर्म करने का समय: सुबह 9 बजे से 01 बजे के बीच।
श्राद्ध कर्म में क्या करते हैं: श्राद्ध पक्ष में पितरों के लिए तर्पण, पिंडदान, पंचबलि कर्म और ब्राह्मण भोज का कार्य करते हैं।
श्राद्ध करने का महत्व: श्राद्ध करने से पितरों को मुक्ति मिलती है। पितृदोष समाप्त होता है और जीवन में आ रही सभी बाधाओं का समाधान होता है।
श्राद्ध में उपयोग होने वाली आवश्यक सामग्री की सूची:
1. भोजन सामग्री: चावल (कच्चा), दाल, सब्जियां (कद्दू, लौकी, अरबी आदि), दूध, दही, घी, शहद और गुड़ तिल (काले तिल का विशेष महत्व है) जौ (यव) कुछ लोग खीर भी बनाते हैं।
3. अन्य सामग्री: मिट्टी का कलश, नए कपड़े (ब्राह्मण को दान देने के लिए), दक्षिण दिशा की ओर बैठने के लिए चटाई या आसन, दान के लिए फल, मिठाई और दक्षिणा (पैसे)। पवित्र जल के लिए पात्र (जैसे तांबे का लोटा)। पत्तल या केले के पत्ते (भोजन परोसने के लिए), तरभाणा जिसमें तिल अर्पित करते हैं।
तर्पण करने का सही तरीका:
सबसे पहले, सुबह जल्दी उठकर स्नान करें और स्वच्छ वस्त्र पहनें।
हाथ में कुश (दर्भ) की अंगूठी धारण करें। इसे "पवित्री" कहते हैं।
एक तांबे के लोटे में जल लें और उसमें थोड़े काले तिल और जौ मिलाएं।
दक्षिण दिशा की ओर मुख करके बैठें या खड़े हों।
सबसे पहले, देव तर्पण करें। कुश को पूर्व दिशा की ओर रखें और सीधे हाथ में जल लेकर देवताओं का तर्पण करें।
इसके बाद, ऋषि तर्पण करें। कुश को उत्तर दिशा की ओर रखें और सीधे हाथ में जल लेकर ऋषियों का तर्पण करें।
अंत में, पितृ तर्पण करें। कुश को दक्षिण दिशा की ओर रखें और जनेऊ को सव्य से अपसव्य (दाएं कंधे पर) करें।
अब दोनों हाथों की अंजुली में जल, तिल और जौ लेकर पितरों का आह्वान करते हुए "गोत्र का नाम" और "नाम" लेते हुए कहें कि "अमुक गोत्र के अमुक नाम के मेरे पितर, मैं आपको यह जल अर्पित करता हूँ, आप इससे तृप्त हों।"
इस तरह जल को तीन बार अपनी उंगलियों के बीच से गिराएं।
जल गिराते समय अपनी अनामिका उंगली के पास से जल गिराएं। यह पितरों को जल देने का सही तरीका है।
जितने भी ज्ञात पितर हों, उनका नाम लेकर तर्पण करें। यदि नाम याद न हो तो "अज्ञात कुल गोत्र" के सभी पितरों का तर्पण करें।
तर्पण का मंत्र:-
ॐ तर्पयामि पितृन्, पितृन् तर्पयामि।.....इसका अर्थ है, "मैं अपने पितरों को तर्पण करता हूँ, मैं अपने पितरों को संतुष्ट करता हूँ।" अगर आप अपने पितरों का नाम और गोत्र जानते हैं, तो आप इस मंत्र का उपयोग कर सकते हैं:
गोत्रे अस्मत्पितामह (पितामह का नाम) शर्मणः वसो स्वरूपं, अमुक गोत्रस्य अस्मत्पितृ (पिता का नाम) शर्मणः रुद्रा स्वरूपं, अमुक गोत्रस्य अस्मन्मातामह (मातामह का नाम) शर्मणः आदित्य स्वरूपं, पितृ तर्पयामि।
तर्पण का मंत्र: ।।ॐ अर्यमा न त्रिप्य्ताम इदं तिलोदकं तस्मै स्वधा नमः।...ॐ मृत्योर्मा अमृतं गमय।।
पितरों में अर्यमा श्रेष्ठ है। अर्यमा पितरों के देव हैं। अर्यमा को प्रणाम। हे! पिता, पितामह, और प्रपितामह। हे! माता, मातामह और प्रमातामह आपको भी बारम्बार प्रणाम। आप हमें मृत्यु से अमृत की ओर ले चलें।...'हे अग्नि! हमारे श्रेष्ठ सनातन यज्ञ को संपन्न करने वाले पितरों ने जैसे देहांत होने पर श्रेष्ठ ऐश्वर्य वाले स्वर्ग को प्राप्त किया है वैसे ही यज्ञों में इन ऋचाओं का पाठ करते हुए और समस्त साधनों से यज्ञ करते हुए हम भी उसी ऐश्वर्यवान स्वर्ग को प्राप्त करें।'- यजुर्वेद
पिंडदान करने की विधि:-
श्राद्ध की तिथि पर पिंडदान दोपहर 12 बजे के बाद किया जाता है, जिसे 'कुतप काल' कहते हैं।
पिंडदान किसी पवित्र नदी के किनारे या घर के आंगन में दक्षिण दिशा की ओर मुख करके किया जाता है।
पिंड बनाने के लिए जौ या चावल का आटा, काले तिल, और शहद या गुड़ आदि लें।
अर्पण के लिए एक थाली या केले का पत्ता, गंगाजल, तुलसी के पत्ते और फूल।
अन्य सामग्री में कुश (दर्भ), जनेऊ लें। अगरबत्ती और दीपक जलाएं।
अब सबसे पहले, हाथ में कुश की अंगूठी (पवित्री) धारण करें।
जनेऊ को अपसव्य (दाएँ कंधे पर) करें।
हाथों में कुश लेकर संकल्प लें: "मैं (अपना नाम) अपने पितरों (पिता, दादा, परदादा आदि के नाम) के मोक्ष के लिए यह पिंडदान कर रहा हूँ।"
अब, जौ या चावल के आटे में काले तिल और शहद/गुड़ मिलाकर पिंड बनाएं। पिंडों की संख्या आमतौर पर 1, 3, 5, या 7 होती है।
पिंडों को एक थाली या केले के पत्ते पर रखें।
प्रत्येक पिंड पर गंगाजल और तुलसी का पत्ता रखें।
अब, श्रद्धाभाव से पितरों का स्मरण करते हुए एक-एक पिंड पर जल चढ़ाएं और मंत्र पढ़ें।
मंत्र पढ़ने के बाद, हाथ जोड़कर पितरों से प्रार्थना करें कि वे इस भोजन को ग्रहण करें और अपनी कृपा बनाए रखें।
अंत में, उन पिंडों को या तो नदी में प्रवाहित कर दें या किसी गाय या कौवे को खिला दें।
पिंडदान का मंत्र: पिंडदान का मुख्य मंत्र भी पितरों को ही समर्पित होता है। आप इसे पिंडदान करते समय बोल सकते हैं:- इदं पिण्डं तेभ्यः स्वधा......इसका अर्थ है, "यह पिंड उन (पितरों) के लिए है, वे इसे स्वीकार करें।"
तर्पण का मंत्र: ।।ॐ अर्यमा न त्रिप्य्ताम इदं तिलोदकं तस्मै स्वधा नमः।...ॐ मृत्योर्मा अमृतं गमय।।
पितरों में अर्यमा श्रेष्ठ है। अर्यमा पितरों के देव हैं। अर्यमा को प्रणाम। हे! पिता, पितामह, और प्रपितामह। हे! माता, मातामह और प्रमातामह आपको भी बारम्बार प्रणाम। आप हमें मृत्यु से अमृत की ओर ले चलें।...'हे अग्नि! हमारे श्रेष्ठ सनातन यज्ञ को संपन्न करने वाले पितरों ने जैसे देहांत होने पर श्रेष्ठ ऐश्वर्य वाले स्वर्ग को प्राप्त किया है वैसे ही यज्ञों में इन ऋचाओं का पाठ करते हुए और समस्त साधनों से यज्ञ करते हुए हम भी उसी ऐश्वर्यवान स्वर्ग को प्राप्त करें।'- यजुर्वेद