Sawan maas me shiv Shivling puja : श्रावण का मास शिव जी की पूजा का होता है। इस बार सावन मास 4 जुलाई से प्रारंभ होकर 31 अगस्त तक चलेगा। इस माह में भगवान शंकर, मां पार्वती, गणेशजी, कार्तिकेयजी एवं उनके सभी गणों की पूजा होती है। सावन के महीने में घर पर ही कैसे करें शिव पूजा, क्या है पूजन की सरल विधि?
शिव पूजन में रखें ये सावधानी : शिवजी को तुलसी का पत्ता, केतकी, कनेर, कमल, चंपा, केवड़ा, दुपहरिका, गुड़हल, मालती, चमेली, कुन्द, जूही के फूल, कुमकुम, हल्दी, नारियल, टूटे चावल, लाल चंदन, शंख से जल, तिल, सिंदूर आदि चीजें अर्पित नहीं करते हैं।
पूजन के 16 उपचार होते हैं- जैसे 1. पांच उपचार, 2. दस उपचार, 3. सोलह उपचार।
1. पांच उपचार : गंध, पुष्प, धूप, दीप और नेवैद्य।
2. दस उपचार : पाद्य, अर्घ्य, आचमन, स्नान, वस्त्र निवेदन, गंध, पुष्प, धूप, दीप और नेवैद्य।
3. सोलह उपचार : पाद्य, अर्घ्य, आचमन, स्नान, वस्त्र, आभूषण, गंध, पुष्प, धूप, दीप, नेवैद्य, आचमन, ताम्बुल, स्तवपाठ, तर्पण और नमस्कार। पूजन के अंत में सांगता सिद्धि के लिए दक्षिणा भी चढ़ाना चाहिए।
नोट : आप जिस भी उपचार के माध्यम से पूजा करना चाहते हैं करें।
कैसे करें शिव पूजा | kaise kare shiv ji ki puja:
पूजन में शुद्धता व सात्विकता का विशेष महत्व है, इस दिन प्रात:काल स्नान-ध्यान से निवृत हो शिवजी का स्मरण करते हुए भक्त व्रत एवं उपवास का पालन करते हुए भजन व पूजन करते हैं।
नित्य कर्म से निवृत्त होने के बाद अपने शिवजी की मूर्ति, चित्र या शिवलिंग को सफेद या पीला कपड़ा बिछाकर लकड़ी के पाट पर रखें। मूर्ति को स्नान कराएं और यदि चित्र है तो उसे अच्छे से साफ करें।
पूजन में शिवजी के सामने धूप, दीप अवश्य जलाना चाहिए। जलाए गए दीपक को स्वयं कभी नहीं बुझाना चाहिए।
फिर शिवजी के मस्तक पर सफेद चंदन और चावल लगाएं। फिर उन्हें हार और फूल चढ़ाएं। फिर उनकी आरती उतारें।
पूजन में अनामिका अंगुली (छोटी उंगली के पास वाली यानी रिंग फिंगर) से गंध (चंदन, हीना, अबीर, गुलाल, मोगरा आदि) लगाना चाहिए।
पूजा करने के बाद प्रसाद या नैवेद्य (भोग) चढ़ाएं। ध्यान रखें कि नमक, मिर्च और तेल का प्रयोग नैवेद्य में नहीं किया जाता है।
अंत में आरती करें। अंत में उनकी आरती करके नैवेद्य चढ़ाकर पूजा का समापन करें।
घर में या मंदिर में जब भी कोई विशेष पूजा करें तो अपने इष्टदेव के साथ ही स्वस्तिक, कलश, नवग्रह देवता, पंच लोकपाल, षोडश मातृका, सप्त मातृका का पूजन भी किया जाता। लेकिन विस्तृत पूजा तो पंडित ही करता है। विशेष पूजन पंडित की मदद से ही करवाना चाहिए, ताकि पूजा विधिवत हो सके।