श्रावण माह चातुर्मास का पहला माह माना जाता है। यह माह शिवजी की भक्त का माह है। विष्णुजी के निद्रा में चले जाने के बाद शिवजी ही चार माह सृष्टि का संचालन करेंगे। हिन्दू धर्म में श्रावण माह का बहुत ज्यादा महत्व है। यदि आप शिवभक्त हैं तो आपको इस संबंध में 5 खास बातें जानना जरूरी हैं।
1. व्रत रखना क्यों जरूरी : हिन्दू धर्म में व्रत तो बहुत हैं जैसे, चतुर्थी, एकादशी, त्रयोदशी, अमावस्य, पूर्णिमा आदि। लेकिन हिन्दू धर्म में चतुर्मास को ही व्रतों का खास महीना कहा गया है। परंतु उसमें भी चातुर्मास का प्रथम माह श्रावण माह में व्रत को रखना सबसे बड़ा पुण्य है। साथ ही यही एक माह है जबकि शिवजी को असानी से प्रसन्न किया जा सकता है। पार्वतीजी ने युवावस्था में सावन महीने में निराहार रहकर कठोर व्रत किया और शिवजी को प्रसन्न कर विवाह किया जिसके बाद से ही महादेव के लिए यह माह विशेष हो गया। व्रत के नियम जानकर ही रखें व्रत।
2. सोमवार का महत्व : सोमवार शिवजी का दिन है। श्रावण माह को कालांतर में 'श्रावण सोमवार' कहने लगे, इससे यह समझा जाने लगा कि श्रावण माह में सिर्फ सोमवार को ही व्रत रखना चाहिए जबकि इस माह से व्रत रखने के दिन शुरू होते हैं, जो 4 माह तक चलते हैं, जिसे चतुर्मास कहते हैं। हालांकि आमजन सोमवार को ही व्रत रख सकते हैं। शिवपुराण के अनुसार जिस कामना से कोई इस मास के सोमवारों का व्रत करता है, उसकी वह कामना अवश्य एवं अतिशीघ्र पूरी हो जाती है। जिन्हें 16 सोमवार व्रत करने हैं, वे भी सावन के पहले सोमवार से व्रत करने की शुरुआत कर सकते हैं। इस मास में भगवान शिव की बेलपत्र से पूजा करना श्रेष्ठ एवं शुभ फलदायक है।
3. श्रावणी उपाकर्म : कुछ लोग इस माह में श्रावणी उपाकर्म भी करते हैं। वैसे यह कार्य कुंभ स्नान के दौरान भी होता है। यह कर्म किसी आश्रम, जंगल या नदी के किनारे संपूर्ण किया जाता है। मतलब यह कि घर परिवार से दूर संन्यासी जैसा जीवन जीकर यह कर्म किया जाता है।
श्रावणी उपाकर्म के 3 पक्ष हैं- प्रायश्चित संकल्प, संस्कार और स्वाध्याय। पूरे माह किसी नदी के किनारे किसी गुरु के सान्निध्य में रहकर श्रावणी उपाकर्म करना चाहिए। यह सबसे सिद्धिदायक महीना होता है इसीलिए इस दौरान व्यक्ति कठिन उपवास करते हुए जप, ध्यान या तप करता है। श्रावण माह में श्रावण शुक्ल पूर्णिमा को श्रावणी उपाकर्म प्रत्येक हिन्दू के लिए जरूर बताया गया है। इसमें दसविधि स्नान करने से आत्मशुद्धि होती है व पितरों के तर्पण से उन्हें भी तृप्ति होती है। श्रावणी पर्व वैदिक काल से शरीर, मन और इन्द्रियों की पवित्रता का पुण्य पर्व माना जाता है।
4. शिव के जलाभिषेक का फल : श्रावण मास को मासोत्तम मास कहा जाता है। श्रवण नक्षत्र तथा सोमवार से भगवान शिव शंकर का गहरा संबंध है। इसी माह में भगवान शिव और प्रकृति अनेक लीलाएं रचते हैं। कहते हैं कि जब समुद्र मंथन से निकले हलाहल विष को भगवान शंकर ने पीकर उसे कंठ में अवरुद्ध कर दिया तो उस तपन को शांत करने के लिए देवताओं ने उनका जलाभिषेक इसी माह में किया था। इसीलिए इस माह में शिवलिंग या ज्योतिर्लिंगों का दर्शन एवं जलाभिषेक करने से अश्वमेघ यज्ञ के समान फल प्राप्त करता है तथा शिवलोक को पाता है।
5. यदि संपूर्ण माह व्रत रखें तो क्या करें और क्या नहीं :
क्या करें :
1. पूर्ण श्रावण कर रहे हैं तो इस दौरान फर्श पर सोना और सूर्योदय से पहले उठना बहुत शुभ माना जाता है।
2. उठने के बाद अच्छे से स्नान करना और अधिकतर समय मौन रहना चाहिए।
3. दिन में फलाहार लेना और रात को सिर्फ पानी पीना चाहिए।
4. इस व्रत में दूध, शकर, दही, तेल, बैंगन, पत्तेदार सब्जियां, नमकीन या मसालेदार भोजन, मिठाई, सुपारी, मांस और मदिरा का सेवन नहीं किया जाता। श्रावण में पत्तेदार सब्जियां यथा पालक, साग इत्यादि का त्याग कर दिया जाता है।
5. इस दौरान दाढ़ी नहीं बनाना चाहिए, बाल और नाखून भी नहीं काटना चाहिए।
6. अग्निपुराण में कहा गया है कि व्रत करने वालों को प्रतिदिन स्नान करना चाहिए, सीमित मात्रा में भोजन करना चाहिए। इसमें होम एवं पूजा में अंतर माना गया है। विष्णु धर्मोत्तर पुराण में व्यवस्था है कि जो व्रत-उपवास करता है, उसे इष्टदेव के मंत्रों का मौन जप करना चाहिए, उनका ध्यान करना चाहिए उनकी कथाएं सुननी चाहिए और उनकी पूजा करनी चाहिए।
1. अधिकतर लोग दो समय खूब फरियाली खाकर उपवास करते हैं तो कुछ लोग एक समय भोजन करते और दूसरे समय खूब फरियाली खा लेते हैं। यह तो उपवास या व्रत नहीं हुआ। यह अनुचित है।
3 . उपवास में कई लोग साबूदाने की खिचड़ी, फलाहार या राजगिरे की रोटी और भिंडी की सब्जी खूब ठूसकर खा लेते हैं। इस तरह के उपवास से कैसे लाभ मिलेगा? उपवास या व्रत के शास्त्रों में उल्लेखित नियम का पालन करेंगे तभी तो लाभ मिलेगा।
4. कुछ लोग तो अपने मन से ही नियम बना लेते हैं और फिर उपवास करते हैं। यह भी देखा गया है कुछ लोग चप्पल छोड़ देते हैं लेकिन गाली देना नहीं।
5. व्रत में यात्रा, सहवास, वार्ता, भोजन आदि त्यागकर नियमपूर्वक व्रत रखना चाहिए तो ही उसका फल मिलता है। यदि कोई व्रत नहीं भी रख रहा है और ऐसे कार्य कर रहा तो भी उसे नुकसान उठाना होगा।