कान्हा ने छुपाया अर्जुन से कुछ खास,कैसे खुला वो राज
आज कान्हा जी की मुस्कान रोके नहीं रुक रही...अकेले ही महल की छत पर बैठे हुए कृष्ण... दूर आकाश में चाँद को निहारते जा रहे हैं...और मंद मंद मुस्कुराते जा रहे हैं...कान्हा बार बार पीछे मुड़ के देख भी लेते हैं की कोई उन्हें देख तो नहीं रहा.. और फिर अनायास ही , अपने ख्यालों में खोकर मुस्कुराने लगते हैं...
और उसी समय अर्जुन वहां पर आ आ गए... अपने सखा कृष्ण कोअकेले में मुस्कुराता देखकर अर्जुन ने उनके आनंद में विघ्न डालना उचित ना समझा और चुपचाप एकांत में खड़े होकर भगवान् के दर्शन करने लगे...
अर्जुन सोचने लगे आखिर भगवान् को इस चाँद में ऐसा क्या नज़र आ रहा है जो ये इतना मुस्कुरा रहे हैं और
फिर अर्जुन ने गौर से चाँद को ओर देखा तो आश्चर्य चकित रह गए।।।
चाँद में अर्जुन को साक्षात श्री राधारानी के दर्शन होने लगे.. श्रीराधे भी यमुना के किनारे बैठी...यमुना की
श्याम वर्ण लहरों में अपने सांवरे के दर्शन कर रही थी और मुस्कुराती भी जाती थीं और कान्हा जी से बातें भी
करती जाती थीं...
“देख रहे हो कान्हा जी आपके सखा अर्जुन चुपचाप हमारी बातें सुन रहे हैं..” श्रीराधे यमुना की लहरों में
अपना हाथ लहराते हुई बोलीं...
“अर्जुन से तो कुछ छुपा नहीं है राधे!!! वो तो बस मेरे आनंद में विघ्न उत्पन्न करना नहीं चाहता...”कान्हा जी गोरे
चाँद की तरफ निहारते हुए बोले।।।।
“अगर ऐसा है और आपको अर्जुन इतने ही प्रिय हैं तो आपने गीता का ज्ञान देते समय अर्जुन से एक बात छुपा के क्यूँ
रक्खी ???” राधे इठलाती हुई बोलीं।।।
“वो इसलिए राधे की उस बात को सुनने के बाद अर्जुन को वहीं समाधि लग जाती और वो युद्ध आदि कुछ भी
नहीं कर पाता” कृष्ण जी महल की छत के एक किनारे से दूसरे किनारे को जाते हुए बोले
“ठीक है कान्हा जी, अब हम कल बात करेंगे...अर्जुन आपके निकट आ रहे हैं...” श्रीराधे ने ऐसा कहते हुए अपना आँचल
यमुना के शांत जल में लहराया, जिस से जल में विक्षोभ उत्पन्न हुआ और वहां से कान्हा जी की छवि अदृश्य हो गई...
उधर कान्हा जी ने चाँद के सामने हाथ फेरकर उसे बादलों से ढँक दिया और राधे की छवि वहां से अदृश्य हो गई...
अर्जुन हिम्मत करके कृष्ण के सम्मुख आए और हाथ जोड़कर बोले...“क्षमा करें प्रभु!!! लेकिन ऐसी कौन सी बात है,
जो आपने गीता के ज्ञान में से मुझे नहीं बताई???”
कृष्णा मुस्कुराते हुए बोले “याद है अर्जुन??? मैंने तुमसे कहा था की मै फिर तुमसे उस ज्ञान को कहूँगा...
जिसको जान लेने के बाद और कुछ जानना शेष नहीं रह जाता और जिसे जान लेने के बाद मानव का वेदों से
उतना ही प्रयोजन रह जाता है...जितना सागर मिलने के बाद छोटे तालाब से और इतना कहकर मैं चुप रह गया
था...”
“हाँ प्रभु,मुझे याद है...आप वेदों का सार बताते बताते चुप रह गए थे...” अर्जुन ने विस्मित होकर कहा...
कृष्ण ने आकाश की और देखा... चाँद पूरी तरह छिप चुका था और फिर अर्जुन के कंधे पर हाथ रखकर बोले...
“राधानाम ही सब वेदों का सार है अर्जुन....
श्रीराधे की कृपा से ये जान लेने के बाद और कुछ जानना शेष नहीं रह जाता...बस राधे ही एक मात्र जानने योग्य है,राधा नाम जपने मात्र से ही मनुष्य सब वेदों का पार पा लेता है...”
और इस प्रकार गीता के पूर्ण ज्ञान को पाकर अर्जुन समाधि के योग्य हुए....