Shri Krishna 4 June Episode 33 : जब यशोदा मैया को पता चलता है कि कृष्ण मेरा पुत्र नहीं है...

अनिरुद्ध जोशी

गुरुवार, 4 जून 2020 (22:10 IST)
निर्माता और निर्देशक रामानंद सागर के श्रीकृष्णा धारावाहिक के 4 जून के 33वें एपिसोड ( Shree Krishna Episode 33 ) में नंदरायजी को अक्रूरजी फिर कहते हैं, इस सत्य को सुनिये कि कृष्ण आपका पुत्र नहीं है। यह सुनकर नंदबाबा जोर से चीखते हैं.. अक्रूरजी और उनका हाथ अक्रूरजी की गर्दन की ओर बढ़ जाता हैं। दूसरे कक्ष में उनकी चीख सुनकर रोहिणी और यशोदा भयभीत होकर खड़ी हो जाती है।

रामानंद सागर के श्री कृष्णा में जो कहानी नहीं मिलेगी वह स्पेशल पेज पर जाकर पढ़ें...वेबदुनिया श्री कृष्णा
 
फिर नंदरायजी खुद को रोकते हुए कहते हैं अक्रूरजी आपके होश तो ठिकाने से है। आप समझ रहे हैं जो कुछ आप कह रहे हैं उसका अर्थ क्या है? अक्रूरजी कहते हैं कि मैं अच्छी तरह से जानता हूं कि मैं क्या कह रहा हूं और मैं यह भी जानता हूं कि इसे स्वीकार करना आपके लिए कितना कठिन है। परंतु नंदरायजी इस सत्य को स्वीकार करना ही पड़ेगा। यह सुनकर नंदरायजी क्रोधित हो खींजते हुए कहते हैं परंतु कोई बात सत्य हो तो ना। यूं कि कोई राह चलता दिन को रात कह दे और सूरज को चंद्रमा कह दे तो क्या उसे मान लेना चाहिए?
 
यह सुनकर अक्रूरजी कहते हैं नंदराजयी उत्तेजित होने से कुछ नहीं होगा। नंदराजयी कहते हैं आप राजनीति वाले लोग हैं। आपको बड़े मीठे और सभ्य तरीके से बात करने का ढंग आता है परंतु हम गांव के सीधे-साधे गवांर लोग शब्दों का हेर-फेर नहीं जानते। हम तो झूठे को उसके मुंह पर झूठा कह देते हैं। आपने इतना बड़ा झूठ मेरे सामने बोलने की हिम्मत की तो क्या मेरा उत्तेजित होना स्वाभाविक नहीं है? सारा संसार जानता है कि कृष्ण मेरा पुत्र है और उसने इसी घर में जन्म लिया है। अब मैं और कुछ नहीं सुनना चाहता इसलिए कृपा करके आप गोकुल से चले जाइये।
 
यह कहते हुए नंदरायजी उस कक्ष से निकलकर दूसरे कक्ष में चले जाते हैं तो उनके पीछे-पीछे अक्रूरजी भी आ जाते हैं और कहते हैं कि नंदरायजी इससे कुछ हासिल नहीं होगा। तभी वहां रोहिणी और यशोदा मैया भी आ जाती हैं। उस दौरान नंदराजयी कहते हैं कि मैं और कुछ नहीं सुनना चाहता आप कृपा करके गोकुल छोड़कर चले जाइये। यह सुनकर यशोदा मैया कहती हैं ये आप कैसी बाते कर रहे हो अक्रूरजी से? क्या बात है? तब नंदरायजी कहते हैं कुछ नहीं। ये बातें तुम्हारे सुनने योग्य नहीं है। ये कहते हुए नंदरायजी वहां से दूसरे कक्ष में चले जाते हैं।
 
तब माता यशोदा पूछती है, अक्रूरजी ये सब क्या है, क्या बात है? अक्रूरजी झल्लाकर कहते हैं कुछ नहीं भाभी, कुछ नहीं। तब यशोदा मैया कहती है कुछ बात तो जरूर है। मुझे बताइये ये क्या हो रहा है? तब अक्रूरजी कहते हैं नहीं भाभी मुझमें हिम्मत नहीं है आपको ये बात बताने की। आप नंदरायजी से ही पूछ लीजिये। पर उसको सुनने से पहले अपना कलेजे पत्थर का कर लेना। ऐसा कहकर अक्रूरजी अपने कक्ष में पुन: चले जाते हैं। यह सुनकर यशोदा मैया की आंखें फटी की फटी रह जाती है कि ये क्या कह गए।
 
फिर वह नंदरायजी के पास उनके कक्ष में जाती है। रोहिणी बीच में ही अवाक खड़ी रह जाती है। नंदरायजी अपने कक्ष में विष्णु की मूर्ति के समक्ष बैठकर रोते हुए कहते हैं कि ये सब क्या है? ये कैसा खेल खेलते हो तुम हम सब मानवों के साथ? किसी मनुष्‍य के जीवन में थोड़ीसी खुशी आ जाए तो तुम से देखी नहीं जाती। किसी को भेज देते हो उसमें विष घोलने के लिए।...पीछे खड़ी यशोदा ये सुनकर आश्चर्य और भय से देखती है।
 
नंदरायजी भगवान से कहते हैं क्यूं क्यूं? हमने तुम्हारा क्या बिगाड़ा है? यह सुनकर यशोदा मैया कहती हैं ये क्या कह रहे हैं आप? फिर वह नंदजी के पास बैठकर पूछती है क्या हो गया है आपको? उधर, अक्रूरजी से झगड़कर आ रहे हैं आप और इधर भगवानजी से झगड़ रहे हैं। आखिर कुछ तो बताइये कि बात क्या है? 
 
नंदरायजी कहते हैं क्या बताऊं तुझे? फिर नंदरायजी भगवान को भला बुरा कहने लगते हैं और कहते हैं कि पल-पल सताया है आपने। कभी मेरे बालक को पूतना मारने आई तो कभी बकासुर, कभी कोई अजगर मेरे बालक को निगल गया। तुम नहीं जानती यशोदा की मैं रात-रात भर सो नहीं पाता था कि पता नहीं कौनसी विपत्ति आ जाए मेरे लाल पर और आज इसने सबसे बड़ा पहाड़ मेरे सर पर तोड़ दिया अक्रूर से ये कहलवा के कि कृष्‍ण हमारा पुत्र नहीं।
 
यह सुनकर यशोदा मैया पर मानो बिजली टूट पड़ती है। अचंभित, अवाक् होकर पूछती है, क्या, क्या कहा अक्रूरजी ने? तब नंदरायजी कहते हैं उसने कहा तू उसकी माता नहीं, मैं उसका पिता नहीं और वो हमारा पुत्र नहीं। यह सुनकर यशोदा मैया के पैरों तले जमीन हिल जाती है और वह कहती है भगवान के लिए ऐसे शब्द मत दौहराइये। चलिये मेरे साथ मैं अक्रूरजी से अभी पूछती हूं कि उन्होंने इतना बड़ा झूठ बोलने की हिम्मत कैसे की? यशोदा मैया नंदबाबा का हाथ पकड़ कर अक्रूरजी के पास ले जाती हैं।
 
बीच रास्ते में से रोहिणी भी उनके साथ हो लेती है। फिर वह अक्रूरजी के पास जाकर क्रोध में कहती हैं कि आपने ये कहा कि कृष्ण मेरा पुत्र नहीं है? अक्रूरजी चुपचाप खड़े हो जाते हैं। तब यशोदा मैया तेज आवाज में कहती हैं बोलिये आपने ये कहा कि कृष्ण मेरा पुत्र नहीं?
 
अक्रूरजी कहते हैं हां, मैंने यही कहा। यशोदा कहती हैं, इतना बड़ा झूठ। इतना बड़ा झूठ बोलने की आपकी हिम्मत कैसे हुई? वो कोई चांदी का लौटा या सोने का आभूषण है जिसे आप ये कह सकें कि मैं किसी और से चुरा लाईं हूं? बेटा मां के शरीर का एक अंग होता है जिसे मां अपने शरीर से जन्म देती हैं। इस सत्य को स्वयं परमात्मा भी नहीं झुठला सकते तो आप कौन होते हैं ये कहने वाले जिसे मैंने नौ महीने कोख में पाला वह मेरा पुत्र नहीं है?
 
तब अक्रूरजी कहते हैं कि परंतु कृष्ण ने आपकी कोख से जन्म नहीं लिया। इसलिए वह आपका पुत्र नहीं है। यह सुनकर यशोदा कहती हैं ऐसी बातें करना महापाप है अक्रूरजी। ऐसी औछी बातें करते हुए आपको लज्जा नहीं आती?
 
अक्रूरजी द्रवित होकर कहते हैं, भाभी आप मेरी विवशता को क्यों नहीं समझती हैं। मैं रास्ते भर भगवान से यही प्रार्थना करते हुए आ रहा था कि काश आपको ये सत्य बताने से पहले मेरी मृत्यु हो जाए। मैं मर जाऊं। परंतु क्या करूं परिस्थितियों ने मुझे मजबूर कर दिया है ये सत्य बताने पर।
 
यह सुनकर रोहिणी कहती हैं अक्रूरजी जो आप कह रहे हैं यदि वह सत्य है तो इसका कोई प्रमाण है आपके पास?
 
अक्रूरजी कहते हैं, हां है। यह सुनकर तीनों चौंक जाते हैं। परंतु उससे पहले मैं आपसे एक प्रश्न करता हूं कि कृष्ण ने इसी घर में यशोदा भाभी के गर्भ से जन्म लिया इसका कोई प्रमाण है आपके पास?
यह सुनकर फिर से तीनों (यशोदा, रोहिणी और नंद) चौंक जाते हैं। 
 
फिर अक्रूरजी कहते हैं कि सबसे पहले उस बालक को किसने देखा? तब रोहिणी कहती हैं मैंने देखा। अक्रूरजी पूछते हैं आपने उसे जन्म लेते हुए देखा? यह सुनकर रोहिणी कहती हैं, नहीं, मैं जब वहां आई तो बालक का जन्म हो चुका था। तब अक्रूरजी पूछते हैं कि उस कक्ष में और कौन था? तब रोहिणी कहती हैं कि नंदरायजी थे। फिर अक्रूरजी नंदरायजी से पूछते हैं आपने उस बालक को जन्म लेते हुए देखा था? नंदरायजी सकुचाते हुए कहते हैं नहीं। मैं तो सो रहा था।
 
तब अक्रूरजी कहते हैं और यशोदा भाभी? यह सुनकर रोहिणी कहती हैं कि वो तो बेहोश थीं। यह सुनकर यशोदा मैया चौंक जाती हैं। तब अक्रूरजी कहते हैं और कोई था, कोई दाई या कोई गांव की औरत? रोहिणी कहती हैं नहीं। तब अक्रूरजी कहते हैं कि इसका अर्थ ये हुआ कि कृष्ण को जन्म लेते हुए किसी ने नहीं देखा।
 
तब यशोदा रोते हुए कहती हैं बस कीजिये, भगवान के लिए बस कीजिये। ये कैसी अनर्गल बातें हो रही हैं। किसी ने देखा नहीं तो इसका ये अर्थ नहीं कि मैंने बालक को जन्म ही नहीं दिया। मैंने 9 महीने तक एक बच्चे को अपनी कोख में रखा था। आखिर मैंने किसी को तो जन्म दिया होगा ना?
 
यह सुनकर अक्रूरजी कहते हैं कि अवश्य जन्म दिया भाभी, अवश्य जन्म दिया। परंतु आपने जिसे जन्म दिया वो एक कन्या थी। यह सुनकर फिर से तीनों चौंक जाते हैं। इसके बाद अक्रूरजी कहते हैं कि जिसके बारे में ये प्रसिद्ध है कि जब कंस ने उसे देवकी की संतान समझकर उसे पत्थर पर पटकने की कोशिश की तो उसने अष्टभूजा देवी का रूपधर लिया था।
 
तब यशोदा मैया कहती हैं कि ये कहानी सत्य हो सकती है लेकिन इससे यह सिद्ध नहीं होता कि वह कन्या मेरी ही पुत्री थी। अगर वह मेरी पुत्री थी तो कारागार में कैसे पहुंची? अवश्य वह देवकी की ही पुत्री थी और अगर मेरी पुत्र थी तो कृष्ण किसका पुत्र है? 
 
यह सुनकर अक्रूरजी कहते हैं देवकी और वसुदेव का। यह सुनकर तीनों फिर चौंक जाते हैं। तब यशोदा कहती हैं कि अगर वह देवकी का पुत्र है तो मेरे घर में कैसे आया? तब अक्रूरजी कहते हैं कि उस रात कुमार वसुदेव उस पुत्र को रखककर बदले में कन्या को ले गए थे।
 
तब नंदरायजी कहते हैं, वसुदेवजी? वो बंदीगृह की बेड़ियां तोड़कर कैसे आ सकते हैं? तब अक्रूरजी कहते हैं कि उस समय किसी देवी शक्ति की सहायता से उनकी बेड़ियां अपने आप टूट गई थीं। यह सुनकर नंदरायजी कहते हैं इस काल्पनिक कहानी पर हम कैसे विश्‍वास कर लें? तब अक्रूरजी कहते हैं कि इस बात पर ऐसे ही विश्वास कर लें नंदजी जब महामाया ने देवकी के गर्भ बालक को निकालकर रोहिणी के गर्भ में संकर्षण कर दिया था। यह सुनकर फिर से तीनों चौंक जाते हैं।
 
तब नंदरायजी कहते हैं कि उस बात की पुष्टि स्वयं गुरुदेव शांडिल्य ने की थी। उन्होंने कहा था कि जो कुछ देवी ने स्वप्न में यशोदा को कहा था वह सब सच है। गुरुदेव शांडिल्य कभी झूठ नहीं बोल सकते थे। यह सुनकर अक्रूरजी कहते हैं कि तो इस बात को भी सत्य मानिये क्योंकि ये बात स्वयं उन्होंने मुझे बताई है जो कभी झूठ नहीं बोलते। यह सुनकर नंदरायजी कहते हैं कौन? तब अक्रूरजी कहते हैं स्वयं कुमार वसुदेवजी ने। यह सुनकर फिर तो तीनों चौंक जाते हैं। यह सुनकर रोते हुए यशोदा मैया कहती हैं वसुदेव भैया ऐसा नहीं कह सकते। नहीं कह सकते।
 
तब अक्रूरजी कहते हैं कि मैं भी ये बात वर्षों से जानता था और आपको बताना भी चाहता था भाभी कि कृष्‍ण के साथ इतना मोह मत बढ़ाइये, मत बढ़ाइये। परंतु कुमार वसुदेवजी ने हर बार मना कर दिया मुझे। तब यशोदा कहती हैं इतने वर्षों तक चुप रहे फिर आज ही यह खुलासा क्यों किया?
 
अक्रूरजी कहते हैं, मेरा दुर्भाग्य, मेरी विवशता भाभी। यशोदा कहती हैं कैसी विवशता? तब अक्रूरजी कहते हैं कि देवकी भाभी की आज्ञा। आप नहीं समझ सकती कि इस आज्ञा पालन करने में मेरे दिल पर कितनी छुरियां चल रही हैं। इस रहस्य को छुपाने के लिए बिचारी ने कितने साल कारावास की यातना सही परंतु मुंह नहीं खोला लेकिन कंस ने वसुदेवजी को कुवे में लटकाकर उन्हें विवश कर दिया और बताया कि कृष्‍ण ही उनकी आठवीं संतान है जिसकी उस हत्यारे कंस को आज तक तलाश है। फिर अक्रूरजी कहते हैं कि देवकी भाभी ने मुझे आज्ञा दी की मेरे पुत्र को गोकुल से ले आओ और कंस के हवाले कर दो। यशोदा से कहना की मैं अपने पति के प्राणों की रक्षा के लिए अपने पुत्र की भीख मांग रही हूं, मेरा पुत्र लौटा दो। यह सुनकर तीनों चौंक जाते हैं। यह सुनकर यशोदा मैया चक्कर खाकर बेहोश हो जाती हैं।
 
फिर नंदबाब और यशोदा को अकेला उदास बैठे हुए बताते हैं। नंदबाबा पलंग पर सोए श्रीकृष्ण को देखकर रोते रहते हैं। उधर कंस को अपने कक्ष में प्रतीक्षारत बताते हैं। 
 
फिर एक गुप्तचर अक्रूरजी को आकर बताता है कि सब इंतजाम हो गया है। आपके संकेत की देर है हम आज ही मथुरा की ओर कूच कर देंगे। तब अक्रूरजी कहते हैं कि अभी नहीं मेरे विचार से आज रात बलराम को यहां से बाहर निकालेंगे और कृष्ण को कल दिन में मथुरा के लिए ले जाएंगे। जाओ मेरे इशारे की प्र‍तीक्षा करो। 
 
उधर, कई लोग शिव का धनुष उठाकर कंस के दरबार में लाते हैं और विशेष स्थान पर रखते हैं। कंस उस धनुष को देखकर रोमांचित हो जाता है। कंस उस धनुष को प्रमाण करता है। कंस कहता है कि यह धनुष यज्ञ के पूरा होने से पहले टूट गया तो यह अपशगुन यजमान की मृत्यु का सूचक होगा। अत: इस धनुष के चारों और हमारे चुने हुए सैनिकों का कड़ा पहरा लगा दो ताकि कोई भी इसके निकट ना जा सके। 
 
इधर, अक्रूरजी कहते हैं कि देवकी भाभी ने कंस के सामने यह स्वीकार करके कि कृष्ण उनका पुत्र है हमारी जीत को हार में बदल दिया है। अब समस्या ये है कि राजकुमार कृष्ण के प्राण उस क्रूर आततायी के हाथों से कैसे बचाएं? रोहिणी कहती हैं कि अक्रूरजी आपने कहा था कि आप सब लोग गुप्त नीति से एक विप्लव (विद्रोह) की तैयारी कर रहे हैं। उसका क्या हुआ? यदि विद्रोह करना है तो उसका उचित समय यही है।
 
अक्रूरजी बताते हैं कि अभी हम उस विद्रोह के लिए तैयार नहीं है, क्योंकि हम बलराम और कृष्ण को युद्ध नीति सिखा कर उन्हें युद्ध में परंगत करना चाहते थे और उस समय तक कंस यह नहीं जानता था कि कृष्ण वास्तव में किसका पुत्र है लेकिन अब पासा पलट गया है। अब यदि हम कृष्ण को नहीं बचा सके तो कम से कम बलराम को तो बचा लेना चाहिए। यह सुनकर यशोदा व्यग्र हो जाती है।
 
अक्रूरजी कहते हैं इस समय कंस के सैनिक और गुप्तचर गोकुल के चारों और फैल गए हैं। सबकी नजर केवल कृष्ण पर ही जमी हुई है। इसलिए कृष्ण को आज की रात गोकुल में ही रहने दिया आए और बलराम को रातोरात गोकुल से बाहर निकाल लिया जाए। मेरे आदमी बलराम को लेकर निकल जाएंगे। उनके सुरक्षित हो जाने पर मैं कल दिन में कृष्ण को साथ लेकर मथुरा की ओर कूच करूंगा।
 
यह सुनकर यशोदा भड़क जाती है। क्यूं मेरा ही पुत्र इतना सस्ता है कि उस खुल्लम-खुल्ला दिन के उजाले में बली की वेदी पर भेज दिया जाए। उसके लिए आपने रात में भागने का कोई तरीका नहीं सोचा? कोई बात नहीं मैं उसकी रक्षा करूंगी। मैं स्वयं भेष बदलकर रातोरात उसे नदी के रास्ते से निकालकर कहीं ले जाऊंगी। अक्रूरजी कहते हैं भाभी भगवान के लिए समझने की कोशिश कीजिये। यशोदा कहती है मुझे कुछ नहीं समझना है। तब अक्रूरजी कहते हैं कि यदि किसी के प्राण देने से कान्हा के प्राण बच सकते हैं तो हममें से सभी तैयार है परंतु ऐसा संभव नहीं है भाभी क्योंकि ये देवी देवकी की आज्ञा है। भाभी नीति कहती हैं कि एक के बलिदान देने से सभी की रक्षा हो तो यह बलिदान दे देना चाहिए। कंस के सैनिकों ने गोकुल को घेर रखा है। यदि हम कृष्ण को लेकर नहीं गए तो वह गोकुल पर आक्रमण कर देगा।
 
फिर अक्रूरजी समझाते हैं गोकुल के लोगों में ये संदेश जाना चाहिए कि हम मथुरा जाने की तैयारी कर रहे हैं तो उसके सैनिक चुपचाप रहेंगे और हमें यह बात दोनों बालकों से भी छुपा कर रखना है कि ऐसा क्यों किया जा रहा है। फिर अक्रूरजी बताते हैं कि भाभी हमने भी कृष्ण की रक्षा के पक्के इंतजाम कर रखे हैं। विश्वास रखिये भाभी कृष्ण के ऊपर कोई भी आंच आने से पहले स्वयं अक्रूर मर चुका होगा। यह सुनकर तीनों फिर चौंक जाते हैं। यशोदा रोती रहती हैं।
 
उधर, गांव के घर-घर में यह चर्चा चल पड़ती है कि कान्हा मथुरा में कंस का उत्सव देखने जा रहा है और यह भी चर्चा चल पड़ती है कि कृष्ण यशोदा का पुत्र नहीं है वह तो देवकी का पुत्र। जय श्रीकृष्णा।
 
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