तब महाबली कहते हैं, देवी बड़े से बड़ा वीर, कुलीन, महात्मा और योगी जब किसी सुंदर स्त्री के नयनों से घायल हो जाता है तो वह अपना सबकुछ उसकी ठोकरों में डाल देता है। तब उसे उचित-अनुचित, पाप-पुण्य का कोई भान नहीं रहता। यही दशा हमारी है। जो तुम्हारी इच्छा हो वही करो। योग्य-अयोग्य, पात्र-कुपात्र तुम्ही जानों। जिसे अमृत के योग्य समझो उसे अमृत दो और जिसे अपने सौंदर्य के योग्य समझो उसे अपने सौंदर्य का रसपान कराओ और जिसे अपने योग्य समझो उसे अपना आप सौंप दो। जो तुम्हें पा लेगा उसे फिर अमृत की क्या आवश्यकता।