श्रावण सोमवार की एक पौराणिक व्रत कथा के अनुसार जब सनत कुमारों ने भगवान शिव से उन्हें श्रावण महीना प्रिय होने का कारण पूछा, तो भगवान भोलेनाथ ने बताया कि जब देवी सती ने अपने पिता दक्ष के घर में योगशक्ति से शरीर त्याग किया था, उससे पहले देवी सती ने महादेव को हर जन्म में पति के रूप में पाने का प्रण किया था।
अपने दूसरे जन्म में देवी सती ने पार्वती के नाम से हिमाचल और रानी मैना के घर में पुत्री के रूप में जन्म लिया।
तब पार्वती ने युवावस्था के सावन महीने में निराहार रह कर कठोर व्रत किया और उन्हें प्रसन्न कर विवाह किया, जिसके बाद ही महादेव के लिए यह विशेष हो गया।
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इसी के कारण श्रावण के महीने में खास तौर पर कुंआरी लड़कियां अपने सुयोग्य वर की प्राप्ति के लिए श्रावण सोमवार के व्रत रखती हैं। विवाहित महिलाएं श्रावण के सोलह सोमवार करके दीर्घायु सुहागन रहने के लिए सोलह सोमवार करके सत्रहवें सोमवार को उनका उद्यापन करती हैं। हिंदू धर्म इस त्योहार का काफी महत्व होने के कारण सभी शिव भक्त श्रावण माह में खास तौर पर पूजा-अर्चना में लीन रहते हैं।
शास्त्रों के मुताबिक सोमवार व्रत में उपवास रखना श्रेष्ठ माना जाता है। व्रत की अवधि सूर्योदय से लेकर सूर्यास्त तक है। श्रावण मास में सोमवार व्रत-कथा नियमित रूप से करने पर भगवान शिव तथा मां पार्वती की कृपा बनी रहती है।
भक्तों पर आने वाले अनिष्टों, अकाल मृत्यु से मुक्ति मिलती है तथा भोलेनाथ शिव अपने भक्तों पर आने वाले हर कष्ट को स्वयं हर लेते हैं। साथ ही भोलेनाथ अपने भक्तों को समस्त सुख, ऐश्वर्य और धन-धान्य से भरापूरा रहने का आशीर्वाद देते हैं।