पौराणिक कथा : स्कंद पुराण के अवंतिखण्ड में देवताओं और दानव के मध्य युद्ध चल रहा था। कभी देवता पराजित होते थे तो कभी दानव।
एक बार देवता पराजित हुए तो उन्हें ऋषि अगस्त्य मुनि के दर्शन हुए, देवताओं की हारने की बात सुनकर मुनि क्रोधित हुए। उनके क्रोध की ज्वाला में स्वर्ग से हजारों दानव जलकर गिरने लगे।
ज्वाला का खौफ इतना था कि देवता भी पाताल लोक में जा छिपे जब मुनि का क्रोध शांत हुआ तो उन्हें ब्रह्म हत्या का अहसास हुआ। विचलित होकर वे ब्रह्मा के पास गए। ब्रह्मा उन्हें महाकाल लाए और तपस्या की। उनकी तपस्या से प्रसन्न हो शिव ने उन्हें वरदान मांगने को कहा। मुनि ठहरे तपस्वी! उन्होंने वरदान मांगा कि उनकी तपस्या में कभी विघ्न न आए। तब से मुनि के नाम की कीर्ति अगस्त्येश्वर महादेव के नाम से विख्यात है।
विशेष- शुक्ल पक्ष की द्वितीया को पूजन और अभिषेक से अभिष्ट फल की प्राप्ति होती है व श्रावण मास में शुक्र ग्रह की शांति के लिए छाछ या दही से रूद्राभिषेक करने पर विशेष फल प्राप्त होता है।