shardiya navratri 2025: शारदीय नवरात्रि की तिथि, मुहूर्त, घट स्थापना, पूजा विधि, व्रत नियम और महत्व

WD feature desk

शनिवार, 20 सितम्बर 2025 (14:37 IST)
Shardiya navratri 2025 ghatasthapana muhurat: हिंदू कैलेंडर के अनुसार अश्विन मास के शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा तिथि से शारदीय नवरात्रि का महापर्व और 9 दिवसीय डांडिया रास और गरबा उत्सव प्रारंभ होता है जो नवमी तक चलता है। इस बार यह त्योहार 22 सितंबर सोमवार से प्रारंभ होकर 01 अक्ट़बर 2025 बुधवार को समाप्त होगा। यानी 10 दिनों का यह पर्व रहेगा। इसमें तृतीया तिथि दो दिन रहेगी। 22 सितंबर को कलश और घट स्थापना होगी और 30 सितंबर को दुर्गाष्टमी यानी महाष्टमी रहेगी। 2 अक्टूबर को विजयादशमी यानी दशहरा रहेगा। इस बार यह नवरात्र कई शुभ योगों में प्रारंभ हो रही है।
 
शारदीय नवरात्रि प्रतिपदा तिथि समय:-
प्रतिपदा तिथि प्रारम्भ- 22 सितम्बर 2025 को 01:23 एएम बजे से प्रारंभ। (मध्यरात्रि)
प्रतिपदा तिथि समाप्त- 23 सितम्बर 2025 को 02:55 एएम बजे तक समाप्त। (मध्यरात्रि)
 
शारदीय नवरात्रि घट स्थापना शुभ मुहूर्त 2025:-
ब्रह्म मुहूर्त: प्रातकाल 04:35 से 05:22 तक।
अभिजीत मुहूर्त: दिन में 11:49 से दोपहर 12:38 तक।
विजय मुहूर्त: दोपहर 02:15 से 03:03 तक।
गोधुली मुहूर्त: शाम 06:18 से 06:41 तक। 
निशिथ काल पूजा का मुहूर्त: मध्यरात्रि 11:50 से 12:38 तक।
शुभ योग: श्रीवत्स, शुक्ल योग, ब्रह्म योग में उत्तराफाल्गुनीके बाद हस्त नक्षत्र रहेगा। सर्वार्थसिद्धि योग सुबह 06:19 बजे तक रहेगा।
 
शारदीय नवरात्रि का महत्व: यह नवरात्रि शरद ऋतु में आती है, इसलिए इसे शारदीय नवरात्रि कहा जाता है। चैत्र नवरात्रि साधना की और शारदीय नवरात्रि को भक्ति की नवरात्रि कहते हैं। इस नवरात्रि में सभी समाज और जाति का कुलधर्म स्थापित होता है। इसके बाद दशहरा और विजयादशमी का पर्व मनाया जाता है।
 
शारदीय नवरात्रि घट स्थापना: घट अर्थात मिट्टी का घड़ा। इसे नवरात्रि के प्रथम दिन शुभ मुहूर्त में ईशान कोण में स्थापित किया जाता है। घट में मिट्टी डालकर उसमें जौ उगाई जाती है। 8 से 9 दिनों में यह जौ उग जाती है। इस पात्र को माता दुर्गा की प्रतिमा के समक्ष स्थापित करके इसका पूजन करें। नवरात्रि के समय ब्रह्मांड में उपस्थित शक्तियों का घट में आह्वान करके उसे कार्यरत किया जाता है। इससे घर की सभी विपदादायक तरंगें नष्ट हो जाती हैं तथा घर में सुख-शांति तथा समृद्धि बनी रहती है। 
 
शारदीय नवरात्रि के दौरान घटस्थापना एवं संधि पूजा का खास महत्व है। इसके साथ ही माता की भक्ति के लिए इस दौरान गरबा उत्सव और डांडिया रास का आयोजन भी होता है। ज्योति कलश, कुमारी पूजा, सन्धि पूजा, नवमी होम, ललिता व्रत एवं चण्डी पाठ इत्यादि अन्य वे प्रसिद्ध अनुष्ठान एवं कार्यक्रम हैं, जो 9 दिवसीय नवरात्रि उत्सव के दौरान किए जाते हैं। 
 
शारदीय नवरात्रि कलश स्थापना: कलश को सुख- समृद्धि, ऐश्वर्य देने वाला तथा मंगलकारी माना जाता है। कलश के मुख में भगवान विष्णु, गले में रुद्र, मूल में ब्रह्मा तथा मध्य में देवी शक्ति का निवास माना जाता है। कलश में जल होता है। उसके मुख पर श्रीफल रखते हैं। जल विष्णु और वरुण देव का प्रतीक है और श्रीफल माता लक्ष्मी का प्रतीक माना गया है। कलश की पूजा करने से सभी देवी और देवताओं की पूजा हो जाती है। कलश पूजा के समय देवी- देवताओं का आह्वान करते हुए प्रार्थना करते हैं कि 'हे समस्त देवी-देवता, आप सभी 9 दिन के लिए कृपया कलश में विराजमान हों।'
 
शारदीय नवरात्रि की कथा: शारदीय नवरात्रि मां दुर्गा की महिषासुर पर विजय का प्रतीक है। दसवें दिन इसी लिए विजयादशमी मनाई जाती है। शैलपुत्री, ब्रह्मचारिणी, चंद्रघंटा, कुष्मांडा, स्कंदमाता, कात्यायनी, कालरात्रि, महागौरी, सिद्धिदात्री का पूजन विधि विधान से किया जाता है। कहते हैं कि कात्यायनी ने ही महिषासुर का वध किया था इसलिए उन्हें महिषासुरमर्दिनी भी कहते हैं। (दुर्गा सप्तशती के अनुसार इनके अन्य रूप भी हैं:- ब्राह्मणी, महेश्वरी, कौमारी, वैष्णवी, वाराही, नरसिंही, ऐन्द्री, शिवदूती, भीमादेवी, भ्रामरी, शाकम्भरी, आदिशक्ति और रक्तदन्तिका।)
 
इस नवरात्रि के दसवें दिन दशहरा भी मनाया जाता है, जो बुराई पर अच्छाई की जीत का प्रतीक है। राम-रावण युद्ध के समय स्वयं प्रभु श्रीराम ने मां दुर्गा की आराधना करके उनसे विजयी होने का आशीष लिया था तथा बुराई के प्रतीक रावण पर उन्होंने जीत हासिल करके विजय पताका फहराई थी।
 
शारदीय नवरात्रि के नियम: इन नौ दिनों में मद्यमान, मांस-भक्षण और स्‍त्रिसंग शयन वर्जित माना गया है। जो व्यक्ति ऐसा अपराध करता है निश्‍चित ही वह माता के प्रति असम्मान प्रकट करता है। उपवास में रहकर इन नौ दिनों में की गई हर तरह की साधनाएं और मनकामनाएं पूर्ण होती है।
 
  1. हर व्रतधारी को हमेशा दया, क्षमा तथा उदारता का भाव रखने का संकल्प लेना चाहिए।
  2. नवरात्रि में नौ दिनों तक अखंड ज्यो‍त जलाकर रखना चाहिए।
  3. नवरात्रि के दिनों में दुर्गा मंदिर में माता रानी को चुनरी, लाल रंगी की चूड़ियां और नारियल अर्पित करना चाहिए।
  4. दुर्गा पूजा के अवसर पर प्रातःकाल के समय में देवी का आह्वान-पूजन, विसर्जन, पाठ आदि करना अधिक शुभ होते हैं, अतः इन्हें इसी दौरान पूर्ण करना चाहिए। 
  5. माता रानी को अनार, केला, नारियल, नींबू, मौसमी फल और कटहल आदि तथा अन्न का भोग लगाना चाहिए।
  6. छोटी कन्याओं को भोजन करवा कर, उनकी पूजा करके उन्हें दक्षिणा देनी चाहिए।
  7. नवरात्रि में दुर्गा सप्‍तशती और दुर्गा चालीसा का पाठ करना उचित रहता है।
  8. व्रतधारी को सिर्फ फलाहार ही करना चाहिए।
  9. शारदीय नवरात्रि के दिनों व्रत रखने वाले को जमीन पर सोना चाहिए। 
  10. शारीरिक और मानसिक संयम रखना भी बहुत जरूरी होता है। अत: इन दिनों पूजा-पाठ को स्किप ना करें।
  11. शारदीय नवरात्रि में किसी भी प्रकार से गंदे या बिना धुले वस्त्र धारण ना करें।
  12. नवरात्रि में किसी कन्या, माता या किसी भी अन्य महिला का दिल नहीं दुखाना चाहिए।
  13. व्रतधारी को इन दिनों क्रोध, मोह, लोभ, लालच आदि दुष्प्रवृत्तियों से दूर रहना चाहिए।
  14. यदि नवरात्रि कलश घटस्थापना करने के बाद परिवार में सूतक हो जाएं, तो कोई दोष नहीं होता, लेकिन यदि पहले हो जाएं, तो पूजन के कार्य न करें।
  15. नवरात्रि में प्याज-लहसुन का सेवन नहीं करना चाहिए।
  16. नवरात्रि में शराब और मांस का सेवन बिल्कुल भी नहीं करना चाहिए।
  17. नवरात्रि में बाल और नाखून काटने की सख्त मनाई है, अत: ये काम नहीं करना चाहिए।
  18. नवरात्रि के दौरान चमड़े से बनी वस्तुओं जैसे बेल्ट, चप्पल, पर्स आदि का उपयोग नहीं करना चाहिए।
  19. नवरात्रि के दिनों में ब्रह्मचर्य का पालन करना आवश्‍यक है, इस समयावधि में स्त्री प्रसंग तो बिलकुल भी नहीं करना चाहिए।
  20. नवरात्रि के दिनों में यदि गरबे करने जा रहे हैं तो शालिनता बनाए रखें, फूहड़ बातों को न अपनाएं।
 
शारदीय नवरात्रि पूजा विधि:-

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