गुरु हरगोविंद सिंह जी को अपने साथी पाइंदे खां पर खुद से ज्यादा भरोसा था। उनके बाकी साथी मौका मिलने पर उन्हें इस बात के लिए चेताते भी थे, लेकिन गुरु जी उनकी एक न सुनते, क्योंकि युद्ध के मैदान में मुगलों के छक्के छुड़ाने में पाइंदे खां की महत्वपूर्ण भूमिका रहती थी।
बार-बार की जीत और गुरु के अत्यधिक भरोसे के कारण पाइंदे खां का सिर घूम गया। वह सार्वजनिक रूप से अपने बारे में बढ़-चढ़कर बातें करने लगा और सारी सफलताओं का श्रेय वह अपने आपको देने लगा। कई बार उसने गुरु के भरोसे को भी तोड़ा, लेकिन उन्होंने हर बार अनदेखी कर दी। एक बार उसकी अक्षम्य गुस्ताखी पर गुरु ने घोषणा की कि पाइंदे खां को दरबार से निकाल दिया जाए।
गुरु- तू बातें न बना, वार कर।
इस पर उसने गुरु पर वार किया, लेकिन चूक जाने के कारण जमीन पर जा गिरा।