सिंहस्थ पर नहीं होगा चांडाल योग का असर-नरेन्द्र गिरि

अखिल भारतीय अखाड़ा परिषद के अध्यक्ष महंत नरेन्द्र गिरि ने कहा कि अभिव्यक्ति की आजादी भारत में सबसे बड़ा पाप हो गया है। कोई भी जो मर्जी हो बोल रहा है। भारत में रहकर भारत माता की जय नहीं बोलेंगे तो क्या पाकिस्तान की जय बोलेंगे? 
 
उज्जैन सिंहस्थ में भाग लेने आए महंत नरेन्द्र गिरि ने वेबदुनिया से विशेष बातचीत में कहा कि दरअसल, इस तरह के लोग ड्रामा कर रहे हैं। भारत माता की जय बोलने में क्या बुराई है? भारत में रहने वाले सभी लोगों को भारत माता की जय बोलनी ही चाहिए।
 
जो लोग इसका विरोध कर रहे हैं वे बदमाश हैं, गद्दार हैं, देश के दुश्मन हैं। ऐसे लोगों को तो कमरे में बंद करके लट्ठ मारना चाहिए। कानूनी मजबूरियां हैं, अन्यथा ऐसे लोगों को तो चौराहे पर खड़ा करके गोली मार देनी चाहिए। महंतश्री कहते हैं कि देश की अर्थव्यवस्था अच्छी है और सब कुछ ठीकठाक चल रहा है। 
 
सिंहस्थ में चांडाल योग : सिंहस्थ में चांडाल योग के अशुभ प्रभाव के प्रश्न पर महंत नरेन्द्र गिरि कहते हैं कि मैं वेबदुनिया के माध्यम से सबको बताना चाहता हूं कि चांडाल योग से डरने की जरूरत नहीं है। हमने इसके अशुभ प्रभाव को समाप्त करने के लिए पूजा, जप-तप और अनुष्ठान किए हैं। फिर जहां महांकाल स्वयं विराजित हैं, वहां चांडाल योग का अशुभ प्रभाव कैसे हो सकता है? सिंहस्थ के दौरान हजारों संत, महात्मा और तपस्वी रहेंगे, जप-तप होंगे, ऐसे में अशुभ योग का प्रभाव स्वत: समाप्त हो जाएगा। 
 
उन्होंने कहा कि दरअसल, 50-60 पहले इस तरह का योग आया था तब महामारी फैली थी। मगर हो सकता है कि तब वहां गंदगी रही हो, लोगों में इतनी जागरूकता नहीं रही हो, लेकिन वर्तमान समय में लोग साफ-सफाई को लेकर बहुत जागरूक हैं। दवाइयां और अन्य उपचार की सुविधाएं आसानी से उपलब्ध हैं। अत: किसी भी अशुभ योग से डरने की जरूरत नहीं है। 
 
सामाजिक समरसता का संदेश : महंत नरेन्द्र गिरि कहते हैं कि सिंहस्थ के माध्यम से राष्ट्रीय एकता को बल मिलता है। देश-विदेश से करोड़ लोग आएंगे। इससे लोगों के बीच सामाजिक समरसता का संदेश भी जाएगा। वैसे तो यह महाकुंभ सनातन धर्म का है, लेकिन इसमें सभी धर्म और संप्रदाय के लोग सम्मिलित होते हैं। श्रद्धालु यहां आकर भारत की संत परंपरा, संस्कृति और संस्कारों के बारे भी जानते हैं।
 
महंतश्री कहते हैं कि धर्म को परिभाषित करने की जरूरत नहीं है। मगर कुछ लोग समाज को धर्म और जाति बांटने की कोशिश कर रहे हैं, जो कि गलत है। न ही किसी महापुरुष को धर्म और जाति में बांटना चाहिए। धर्म लोगों को लड़ना और बांटना नहीं सिखाता। धर्म तो लोगों को आपस जोड़ता है। गरीब, असहाय लोगों के लिए जिएं, दूसरों को सहयोग करें, यही सबसे बड़ा धर्म है।
 
लिंग के आधार पर भेदभाव : महंतश्री कहते हैं कि लिंग के आधार पर महिला और पुरुषों के बीच भेदभाव नहीं होना चाहिए। सभी मंदिर में जहां तक पुरुष जा सकते हैं, वहां तक महिलाओं को भी प्रवेश देना चाहिए। यदि मंदिरों के गर्भगृह में प्रवेश से यदि महिलाओं को किसी तरह का नुकसान होता है ‍तो इसके लिए वे स्वयं जिम्मेदार होंगी। मगर भेदभाव नहीं होना चाहिए। 
 
उन्होंने कहा कि हिन्दू समाज से जातिवाद को दूर करने में संत-महात्मा महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकते हैं। हम लोग इस दिशा में अभियान चला भी रहे हैं और लोग मान भी रहे हैं। लोगों को जातिवाद से ऊपर उठकर देश के लिए काम करना चाहिए। हिन्दू समाज में एकजुटता के सवाल पर महंत कहते हैं कि हिन्दू समाज एकजुट हो रहा है। यहां सबको बोलने की आजादी है, इसीलिए किसी भी मुद्दे पर एकमत होने में समय लगता है और यही हिन्दू धर्म की विशेषता भी है।
 
दूसरे धर्मों में एक ने बोल दिया और सबने मान लिया। तर्क की गुंजाइश ही नहीं होती। हमारे यहां किसी भी मुद्दे पर मंथन होता है फिर सब एक राय पर पहुंचते हैं। यही तो हमारे धर्म की खूबसूरती है। 
 
पंचायती अखाडा निरंजनी : पंचायती अखाड़ा निरंजनी के महंत नरेन्द्र गिरि ने कहा कि 908 में गुजरात के मांडवी में इस अखाड़े की स्थापना हुई थी। देशभर में इसकी करीब 1000 शाखाए हैं और 4-5 लाख साधु-संत हैं। 

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