शिप्रा नदी में स्नान करने लायक 5 घाट हैं। शहर में स्थित रामघाट सबसे विशाल घाट है। शेष घाटों के नाम हैं- नरसिंह घाट, गऊ घाट, त्रिवेणी घाट और मंगल घाट। कुंभ के अवसर पर जिस दिन मुख्य स्नान होता है, सभी संप्रदाय के साधु रामघाट में जुलूस के साथ आते हैं और यहीं स्नान करते हैं। मुख्य स्नान के दिन हैं- चैत्र संक्रांति, अमावस्या, अक्षय तृतीया, शंकर जयंती और वैशाखी पूर्णिमा।
वैशाखी पूर्णिमा को सर्वश्रेष्ठ स्नान माना गया है। इस स्नान को शाही स्नान कहा जाता है। कुंभ मेला के अवसर पर नदी के दोनों किनारे भारत के सभी मठ और अखाड़े के साधुओं के डेरा-तंबू या कुटिया लग जाते हैं। जैन, बौद्ध, सिख संप्रदाय के संत भी इस महोत्सव में भाग लेने आते हैं। उज्जयिनी शहर से 4 मील दूर गंगा घाट त तथा मंगल घाट के निकट वैष्णव साधुओं का शिविर लगता है। मुख्य सड़क के दोनों ओर दत्तात्रेय अखाड़ा के मंडलेश्वर और महामंडलेश्वर विराजते हैं। नागा साधुओं का डेरा शिप्रा नदी के तट पर लगता है।
उज्जयिनी स्थित महाकाल शिव द्वादश ज्योतिर्लिंगों में अन्यतम हैं। यहां वे दक्षिणमूर्ति हैं। दक्षिणमूर्ति शिव का महत्व केवल यहीं दिखाई देता है। मंदिर शहर के भीतर है। उज्जयिनी की हरसिद्धि का मंदिर भी काफी प्राचीन है। इन्हें काफी जाग्रत माना जाता है। शक्ति के 51 पीठों में यह अन्यतम है। यहां देवी की कुहनी) गिरी थी। यह भी कहा जाता है कि राजा विक्रमादित्य नित्य यहां मंदिर में पूजा करते थे। यहां का सांदीपनि आश्रम दर्शनीय है। द्वापर युग में इसी आश्रम में श्रीकृष्ण और बलराम पढ़ने के लिए आए थे। भागवत पुराण में इसका उल्लेख है।
शिप्रा नदी के किनारे भैरवगढ़ के पूर्व प्राचीन सिद्धवट है। इस वृक्ष को अत्यंत पवित्र समझा जाता है। उज्जयिनी से दो मील की दूरी पर गढ़कालिका मंदिर है। प्राचीन अवंतिका नगरी काफी पहले उधर बसी हुई थी। कहा जाता है कि महाकवि कालिदास नित्य मंदिर में आकर पूजा करते थे। महाराज हर्षवर्धन ने इस मंदिर का जीर्णोद्धार कराया था। इनके अलावा उज्जयिनी के प्रमुख मंदिरों में गोपाल मंदिर, चित्रगुप्त मंदिर, नवग्रह मंदिर, महागणेश मंदिर, भर्तृहरि गुहा, कालभैरव मंदिर, ब्रह्मकुंड और मंगलनाथ मंदिर आदि दर्शनीय हैं। यहां पंचमुखी हनुमानजी की मूर्ति है।
कुंभयोग में लोग यहां आकर पंचक्रोशी परिक्रमा करते हैं। महाकालेश्वर मंदिर को केंद्र बनाकर इसके चारों ओर 123 किलोमीटर मार्ग को 5 कोस के व्यास में परिक्रमा करते हैं। इस परिक्रमा में 5 दिन लगते हैं। अनेक साधु-महात्मा भी परिक्रमा में भाग लेते हैं। यात्रा पथ में 84 महादेव, नौ नारायण और सप्त सागर आदि आते हैं।