वह 'अमृत' की एक बूंद थी जिसने अवंतिका को धन्य कर दिया। यह देवताओं की माया का नतीजा था कि अमृत की 4 बूंदों के गिरने से एक स्थान में अवंतिका या उज्जयिनी शामिल हो गया। यही बूंद, सिंहस्थ में श्रद्धालुओं के समुद्र के रूप में 22 अप्रैल को शाही स्नान के वक्त नजर आएगी।
स्कंद पुराण के अवंति खंड में उल्लेख है कि देवताओं और दानवों में समुद्र मंथन को लेकर जब 'मंथन' हुआ तो रत्नाकार सागर को खंगालने की बात चली। हालांकि देवताओं और दानवों में कभी नहीं पटी, लेकिन दोनों के मिल-जुलकर मंथन करने से ही रत्नाकार सागर का मंथन हो सकता था।
अमृत कलश प्राप्त होते ही दैत्य-दानव प्रसन्न हुए, लेकिन कलश हड़पने के लिए दोनों पक्षों में कुटिल विचार आने लगे। देवराज इंद्र ने अपने पुत्र जयंत को कटाक्ष किया और वह अमृत कलश लेकर भाग निकला। इस बात पर आक्रोशित दानवों ने देवताओं पर हमला किया।