वैष्णव अखाड़ों ने तीन शाही स्नान की जिद की तो प्रशासन ने लगा दी थी धारा 144। हर सिंहस्थ में स्नान को लेकर विवाद रहा है।
पहले के समय में सभी जगहों पर केवल एक ही शाही स्नान होता था और सभी इस निर्णय को मान्य कर वैशाख पुर्णिमा को शाही स्नान करते थे। 1980 के दशक में जब वैष्णव अखाड़ों ने 3 शाही स्नान करने की जिद की तो प्रशासन ने सख्ती दिखाते हुए शहर में धारा 144 लागू कर दी थी।
सन् 1921 में सिंहस्थ कुंभ उज्जैन में 21 मई वैशाख पुर्णिमा पर शाही स्नान के दिन से ही महामारी का भयंकर प्रकोप हुआ था जिसके कारण हजारों की संख्या में साधु-संत मारे गए थे।
शासन द्वारा तत्काल शहर खाली कराने का ऐलान किया गया। तत्काल सभी को जो साधन मिला उसी से बाहर भेजा गया। पूरे शहर को खाली कराया गया और महामारी रोकने के इंतजाम किए गए।
बाद में महामारी से बचने के लिए आगामी सभी सिंहस्थों में केवल वैशाख शुक्ल पूर्णिमा को ही एक ही मुख्य स्नान मनाने का निर्णय लिया गया। उसके बाद उज्जैनी में एक ही शाही मुख्य स्नान वैशाख पूर्णिमा को होता आया था। सन् 1980 के सिंहस्थ कुंभ में मुख्य शाही स्नान 30 अप्रैल को वैशाख पूर्णिमा के दिन था।
वैष्णव अनि अखाड़ों ने इस कुंभ में 3 शाही स्नान 13, 17 व 30 अप्रैल को करने की मांग की किंतु वैशाख पूर्णिमा पर एक ही शाही स्नान का निर्णय पूर्व से ही चला आ रहा था लिहाजा बहुत समझाने पर भी वैष्णव अनि अखाड़ों ने 3 शाही स्नान की जिद नहीं छोड़ी।
वैष्णव अखाड़े की इस जिद से प्रशासन भी नाराज हो गया और मेला प्रशासन ने 13 अप्रैल को धारा 144 लगाकर शहर में जुलूस निकालने पर पाबंदी लगा दी। इधर वैष्णव अखाड़ों ने भी पाबंदी तोड़कर अपने निशान के साथ घाट पर स्नान के लिए जाने की कोशिश की।
बाद में प्रशासन ने अपनी जिद छोड़ी और अखाड़ों को 3 अलग-अलग घाटों पर जाकर साधारण रूप से स्नान करने की अनुमति दी। इस दौरान मेला अधिकारी पीएस त्रिवेदी, मेला पुलिस अधीक्षक हाड़ा व कमिश्नर संतोष कुमार थे।