जिन्हें तैरना नहीं आता वह हैं तैराकी सुरक्षा दल के सदस्य
वेबदुनिया रिपोर्टर
सिंहस्थ जैसे-जैसे आगे बढ़ रहा है स्थानीय प्रशासन की कमजोरियां खुल कर सामने आ रही हैं। इसमें हाल ही में जो चौंकाने वाले तथ्य सामने आए हैं उनमें यह भी है कि सिंहस्थ के घाटों पर तैनात ज्यादातर तैराकी सेवा दल के सदस्य तैरना ही नहीं जानते।
सिंहस्थ के दूसरे घाट जहां खाली-खाली नजर आ रहे हैं वहीं सभी का विशेष ध्यान रामघाट पर ही लगा है जाहिर है कि रामघाट मुख्य केन्द्र है। लेकिन यह सब कैसे और क्यों हो रहा है इस पर दबी जुबान में उज्जैन के निवासी बताते हैं कि वास्तव में जैसे ही प्रशासन की तरफ से आदेश आया कि प्रतिदिन सेवाधारियों को 300 रुपए मानदेय भत्ता प्रदान किया जाएगा। अपने-अपने को रेवड़ी बंटना आरंभ हो गई।
कई महिला सदस्य तैराक दल की टी शर्ट पहने हैं पर पानी में जाने से डर रही हैं। अगर कोई श्रद्धालु पानी में जाते हुए उनका हाथ भी पकड़ लें तो कांपने लगती हैं। एक कार्यकर्ता ने नाम ना छापने की शर्त पर बताया कि यहां खड़े बहुत सारे लोगों को खुद ही तैरना नहीं आता तो वे क्या खाक किसी की जान बचाएंगे। पिछले दिनों तैराक दल ने 220 रुपए लेकर फर्जी तरीकों से सदस्य बनाए हैं और जो सच में तैराक सदस्य हैं उन्हें उपेक्षित किया गया है।
सबसे बड़ी बात यह है कि इन तैराक दलों का पुलिस वैरीफिकेशन भी नहीं कराया गया है। वास्तव में नरसिंह तैराकी दल के संस्थापक सदस्यों पर कुछ असामाजिक तत्व हावी हो गए हैं और उनके ही द्वारा इस दल का नाम बदनाम हो रहा है। कुछ जिम्मेदार लोगों द्वारा गलत तरीके से ना सिर्फ दल के सदस्य बनाए गए हैं, बल्कि गलत ढंग से उगाए पैसों का दुरुपयोग भी किया जा रहा है।
पूर्व सदस्यों ने बताया कि नरसिंह तैराकी सेवा संघ की स्थापना 1961 में हुई थी। पिछले 4 सिंहस्थ महापर्व में हम सेवाएं दे रहे हैं। पूर्व में सेवा समिति, सेवा दल और स्काउट के साथ मिलकर सेवा देते रहे हैं। संस्था के पहले अध्यक्ष स्व. सत्यनारायण जोशी थे। उज्जैन के कई वरिष्ठजन का संघ को स्नेह, आशीर्वाद मिलता रहा। उनका कहना है कि सिंहस्थ-2004 में संघ के कार्यकर्ताओं ने शिप्रा के तटों पर सेवा देते हुए 235 श्रद्धालुओं की जान बचाई थी। सिंहस्थ-2004 में उन्हें एक दानदाता ने 400 जैकेट उपलब्ध कराई थी। इस बार प्रशासन की तरफ से जो किट मिली है उसका वर्तमान सदस्यों द्वारा दुरुपयोग अत्यंत दुर्भाग्यपूर्ण है।
उसी प्रकार मौलाना मौज तैराक दल का गठन मुस्लिम समाज द्वारा किया गया है। इसके लगभग 40 सदस्य कार्यरत हैं लेकिन इनका भी पुलिस वैरीफिकेशन नहीं है। बड़ी बात यह है कि यह दल दिल लगा कर सेवा कर रहा है और सभी सदस्य तैरना जानते हैं।
सबसे पुराना तैराकी दल नरसिंह तैराकी दल है जिसके 679 तैराक सदस्य हैं लेकिन यह दल पिछले सिंहस्थ तक सही हाथों में था। सत्यनारायण जोशी के साथ बाबूलाल बंधू, आनंदीलाल खंडेलवाल, कैलाश नीमा, कलानिधि चंचल, अखिलेश व्यास, संजय भार्गव, लीला बाई, अनोखीलाल पाठक, शंकरलाल मालवीय, विश्वजीत जोशी, महेश जोशी आदि शामिल थे। यह सभी सदस्य अब इस दुनिया में नहीं है लेकिन इनकी सेवाएं याद की जाती है।
उनकी परंपरा को निभाते रहे हैं वर्तमान पदाधिकारी, जिनमें विश्वनाथ जोशी के साथ राधेश्याम उपाध्याय, असगर अली, सुरेद्र सिंह सिसोदिया,देवकरण गेहलोत, हरभगवान भामी, आफताब अली, विष्णु पुरोहित,मेघा पंड्या, रवि नेमा, आशुतोष जोशी,चंदु पहलवान, कृष्णपाल राठौर, देवेन्द्र जोशी, शीला पाठक, तरूणा जोशी, रमेश सोनी, नीरज जोशी, महेश बागी, हिमांशु व्यास, विनोद चौरसिया, विद्या दुबे, प्रियंवदा जोशी आदि शामिल हैं। जिन अनुभवी तैराकों के हाथों में कमान थी उनकी सेवा भावना को दरकिनार कर गलत तत्वों ने यह दल हथिया लिया है जिससे इस दल की छवि भी धूूमिल हुई है।
फिलहाल तो आलम यह है कि मात्र पीली टीशर्ट पहनने भर सेे चैकिंग नहीं होती और कहीं भी आना जाना कर सकते हैं। इस बात का गलत तत्व भरपूर फायदा उठा रहे हैं।
सिंहस्थ में मुख्य रूप से नरसिंह तैराकी सेवा संघ, नरसिंह तैराक दल, गौतमेश्वर तैराकी दल, मां गंगा केवट दल, मौलाना मौज तैराक दल, जय महाकाल तैराक दल तथा मंगलनाथ तैराक दल अपनी सेवाएं दे रहे हैं। इन स्थानीय दलों के साथ मध्यप्रदेश पुलिस तैराकी टीम, होमगार्ड, एनडीआरएफ, एसटीआरएफ, सिविल डिफेंस एवं नगर सुरक्षा समिति कार्यरत है। इन सभी को स्नान घाटों पर शिफ्ट ड्यूटी पर लगाया गया है।
स्थानीय सुरक्षा दलों पर आरोप लगाए जा रहे हैं कि उन्हें जो यूनिफॉर्म किट दी गई है उनका अनाधिकृत व्यक्तियों द्वारा धड़ल्ले से उपयोग किया जा रहा है। मजे की बात यह है कि मात्र 8-10 साल के बच्चे भी आपको सिविल डिफेंस वॉलेंटियर लिखी पीली टी शर्ट में नजर आ रहे हैं और 70 साल की वृद्ध महिला भी... जाहिर है यह सिर्फ स्नान करने या सिंहस्थ मेला क्षेत्र घूूमने के लिए प्रदान या धारण की गई है। रामघाट तक पहुंचने में आसानी हो इससे ज्यादा तो और कोई उद्देश्य नजर नहीं आता इस शासकीय परिधान का... किसी की जान बचाने का भाव या स्नान में मदद की तत्परता तो बहुत दूर की बात है।
यह सब सुरक्षा के मद्देनजर अत्यधिक खतरनाक है। किसी भी आपदा के वक्त यह सुरक्षा दल पहले अपनी खुद की सुरक्षा में जुट जाएगा यह तय बात है। अगर लचर व्यवस्था का यही आलम रहा तो संभव है इसका फायदा असामाजिक और अवांछित तत्व उठा लें। प्रशासन को एक बार फिर तैराकी सुरक्षा दल की सघन जांच करनी चाहिए कई काले राज उजागर होंगे इसमें कोई शक नहीं।