भाजपा ने सामाजिक समरसता स्नान के स्वरूप में बदलाव किया

बुधवार, 11 मई 2016 (22:22 IST)
उज्जैन। उज्जैन में चल रहे सिंहस्थ मेले में भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह की अगुवाई में आयोजित सामाजिक समरसता स्नान के कार्यक्रम का स्वरूप पार्टी की पुरानी घोषणा के मुकाबले बदला नजर आया और इसमें दलित समुदाय के संतों के साथ अन्य हिन्दू पंथों और संप्रदायों के धर्मगुरु भी शामिल हुए।
संतों के एक तबके और राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) के एक वरिष्ठ नेता ने इस आयोजन में केवल दलित संतों को शामिल करने पर आपत्ति जताई थी। इसके बाद इस कार्यक्रम के स्वरूप में बदलाव कर दिया गया।
 
इस कार्यक्रम में शामिल होने वाले अखिल भारतीय अखाड़ा परिषद के अध्यक्ष नरेन्द्र गिरि ने कहा कि सामाजिक समरसता का आयोजन अच्छा रहा। इसमें अलग-अलग मतों के साधुओं के साथ नेताओं ने भी क्षिप्रा में डुबकी लगाई।
 
गौरतलब है कि अखाड़ा परिषद के अध्यक्ष ने पहले इस कार्यक्रम में केवल दलित संतों को शामिल करने का विरोध किया था और कहा था कि साधुओं की कोई जाति नहीं होती।
 
नरेन्द्र गिरी से जब पूछा गया कि इस विरोध क बावजूद अखाड़ा परिषद ने सामाजिक समरसता स्नान को समर्थन क्यों दिया तो उन्होंने कहा कि जब पहले पहल यह समाचार आया था कि शाह केवल दलित संतों के साथ स्नान करेगें तो मैंने कहा था कि साधुओं में कोई दलित या स्वर्ण नहीं होता, लेकिन जब हाल ही में मुझे पता चला कि शाह सभी समुदायों और संप्रदायों के संतों के साथ स्नान करेंगे तो हम इस कार्यक्रम में शामिल होने के लिए राजी हो गए।
 
उन्होंने कहा कि जब मेरी बात मानकर सामाजिक समरसता स्नान में सभी समुदायों और संप्रदाय के संतों को न्योता भेजा गया, तो इस कार्यक्रम के विरोध का कोई सवाल ही नहीं रह जाता।
 
इस कार्यक्रम में जूना अखाड़े के प्रमुख अवधेशानंद भी शामिल हुए। जब उनसे पूछा गया कि शाह के साथ संतों की लगाई डुबकी धार्मिक थी या सियासी, तो उन्होंने इस सवाल का सीधा जवाब टालते हुए कहा कि नदी के पानी के निकट परमात्मा का वास होता है और जल पर सबका अधिकार होता है। सिंहस्थ मेले में संसार भर के लोग शामिल होते हैं। 
 
सामाजिक समरसता स्नान का कार्यक्रम वाल्मीकि धाम के निकट वाल्मीकि घाट पर संपन्न हुआ। इस दौरान वाल्मीकि धाम के प्रमुख उमेशनाथ महाराज ने जोर देकर कहा कि जाति और संप्रदाय की भावनाओं को छोड़कर सबको राष्ट्रवाद के भावना से जोड़ा जाना चाहिए। उन्होंने शाह और 30 संतों की मौजूदगी में सियासी समुदाय और धार्मिक गुरुओं से अपील की कि वे सामाजिक समरसता बढ़ाने के लिए पहल करें।
 
सिंहस्थ के सदियों पुराने इतिहास में यह पहली बार है जब किसी राजनीतिक पार्टी के प्रमुख ने संतों के साथ मंच साझा कर समाजिक समरसता स्नान का आयोजन किया हो। माना जा रहा है कि भाजपा ने इस कार्यक्रम में संतों के साथ डुबकी लगाई तो उसकी निगाहें उत्तर प्रदेश के आगामी विधानसभा चुनावों की वैतरणी पार करने के लक्ष्य पर टिकी थीं। हालांकि भाजपा के राष्ट्रीय महासचिव कैलाश विजयवर्गीय ने इस बात से इंकार किया कि इस आयोजन का कोई सियासी मकसद था।
 
उन्होंने कहा कि यह कार्यक्रम सामाजिक समरसता की भावना को मजबूत करने के लिए  आयोजित किया गया था। इसे सियासी नजरिए से कतई नहीं देखा जाना चाहिए । उन्होंने कहा कि सिंहस्थ मेला एक ऐसा आयोजन है जो सभी जाति-संप्रदायों के हिन्दुओं को संगठित और सशक्त करने का मौका मुहैया कराता है।
 
इस आयोजन पर जो संत अपनी आपत्ति जाहिर कर चुके हैं, उनमें द्वारकापीठ के शंकराचार्य स्वरूपानंद सरस्वती और अखिल भारतीय अखाड़ा परिषद के अयक्ष नरेंद्र गिरि शामिल हैं। भाजपा के सामाजिक समरसता स्नान पर आरएसएस के वरिष्ठ नेता और भारतीय किसान संघ के राष्ट्रीय उपायक्ष प्रभाकर केलकर भी सवाल उठा चुके हैं।
 
केलकर ने 8 मई को कहा था कि सामाजिक समरसता स्नान से सामाजिक भेदभाव बढ़ेगा। उन्होंने भाजपा अध्यक्ष का नाम लिए बगैर कहा था, सामाजिक समरसता स्नान की घोषणा से ऐसा लगता है, जैसे इससे पहले सिंहस्थ में दलित वर्ग के साथ भेदभाव किया जा रहा था, जबकि वास्तविकता यह है कि आज तक किसी अन्नक्षेत्र या स्नान में किसी की भी जाति नहीं पूछी जाती और बिना किसी भेदभाव के सभी कार्यक्रम हो रहे हैं। (भाषा)

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