सभी समस्याओं की जड़ है गलत तरीका। जीवन की सही दशा क्या हो, रहने का सही तरीका क्या हो? इस पर केन्द्रित है सिंहस्थ नगरी उज्जैन में आयोजित तीन दिवसीय विचार महाकुंभ। मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने संघ प्रमुख मोहन भागवत, जूना पीठाधीश्वर अवधेशानंदजी, गायत्री परिवार के प्रमुख प्रणव पंड्या की उपस्थिति में कहा कि इस दौरान वैचारिक चिंतन और मंथन से जो अमृत निकलेगा उसे अंतिम दिन प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी दुनिया के सामने रखेंगे। इस निष्कर्ष को भारत के राज्यों समेत संयुक्त राष्ट्र को भी भेजा जाएगा।
मुख्यमंत्री ने यह भी कहा कि इस विचार महाकुंभ के अंतर्गत ही कृषि कुंभ, शक्ति कुंभ, कुटीर कुंभ का आयोजन भी होगा, जिनके माध्यम से कृषि, महिलाओं एवं छोटे कामगारों की समस्याओं पर चिंतन होगा। विचार महाकुंभ को इस मायने में सार्थक पहल कहा जा सकता है कि महाकुंभ का असली उद्देश्य ही देश के लोगों तक सद्विचार पहुंचाना है।
एक वक्ता ने तो कहा भी था 12 साल में आयोजित होने वाले कुंभ का असली मकसद ही यह है कि पिछले 12 वर्षों में हमने क्या हासिल किया और अगले 12 वर्षों में क्या करेंगे। आमतौर पर देखा जाता है कि महाकुंभ का आयोजन मेले तक सिमटकर जाता है, लेकिन मध्यप्रदेश सरकार ने इस तरह का आयोजन कर एक अच्छी शुरुआत की। ज्यादातर वक्ताओं ने विज्ञान और अध्यात्म के समन्वय की बात कही।
संघ प्रमुख मोहन भागवत ने कहा कि विज्ञान जितना प्रकट हो रहा है, उतना ही अध्यात्म के निकट आ रहा है। तत्व ज्ञान और विज्ञान दोनों का आधार चिंतन है। विज्ञान और अध्यात्म दोनों सत्य को जानने के दो तरीके हैं। अवधेशानंदजी ने कहा कि अगली सदी भारत की सदी है क्योंकि जब पश्चिम की उपभोक्तावादी संस्कृति थक जाएगी, तब भारत के आध्यात्मिक नेतृत्व की जरूरत होगी।
अवधेशानंदजी ने तो मु्ख्यमंत्री चौहान की तुलना सम्राट विक्रमादित्य से कर दी। उन्होंने कहा कि शिवराज विक्रमादित्य और हर्षवर्धन की परंपरा के शासक हैं। वे ऐसे शासक हैं जिनके भीतर एक उपासक है। डॉ. प्रणव पंड्या ने कहा कि संतों के साथ बैठकर संवाद करने और समस्याओं का निराकरण करने की परंपरा को मुख्यमंत्री ने आगे बढ़ाया है। उन्होंने कहा कि वर्ष 2016 से 2026 तक भारत के उत्कर्ष का समय है।
विचार कुंभ के उद्घाटन सत्र में लोगों की सभागृह में अच्छी उपस्थिति रही, लेकिन भाजपा महासचिव राम माधव की अध्यक्षता में आयोजित एक अन्य सत्र में श्रोताओं की उपस्थिति नगण्य थी। सभागृह की ज्यादा कुर्सियां खाली थीं। इस सत्र में ज्यादातर वक्ता विदेशी थे, जिन्हें सुनने में किसी की रुचि नहीं थी। इनके बारे में यह भी सुनने को मिला विदेशी वक्ता सिंहस्थ में शामिल होने आए कुछ संतों के ही शिष्य थे, जिन्हें कुछ राशि देकर बुलाया गया।
दूसरी बात यह भी अखरने वाली थी कि श्रोताओं में भाजपा कार्यकर्ताओं और संघ के स्वयंसेवकों की संख्या ज्यादा थी। कार्यक्रम के लिए आसपास के राज्यों से भी भाजपा पदाधिकारियों की बुलाया गया था। बातचीत के दौरान एक महिला (नाम नहीं बताया) ने कहा कि वह छत्तीसगढ़ भाजपा महिला मोर्चा की पदाधिकारी है और छत्तीसगढ़ से दो गाड़ियां भरकर आई हैं। इंदौर के कई ऐसे चेहरे भी दिखाई दिए जिनकी इस गंभीर आयोजन में उपस्थिति का कोई औचित्य नहीं था।
हिन्दी सम्मेलन की छाप : इस कार्यक्रम की व्यवस्थाओं पर पिछले वर्ष भोपाल में आयोजित हुए विश्व हिन्दी सम्मेलन की छाप साफ नजर आई। चाहे आयोजन स्थल का मुख्य द्वार हो या सभागृह, बहुत कुछ उसके जैसा ही नजर आ रहा था। इसकी बड़ी वजह भी है। इस आयोजन की जिम्मेदारी निभा रहे भाजपा सांसद अनिल माधव दवे ने हिन्दी सम्मेलन के आयोजन में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी। उनकी व्यवस्थाएं अच्छी रहीं। उन्होंने उद्घाटन सत्र के संचालन के दौरान सभागृह में ऊं और स्वस्तिक आदि प्रतीकों के प्रयोग के बारे में भी बताया।
इसमें कोई संदेह नहीं कि निनोरा में आयोजित विचार महाकुंभ निश्चित ही अच्छा प्रयास है। और, यदि इस मंथन से निकलने वाले निष्कर्षों पर गंभीरता से काम होता है तो न सिर्फ इस आयोजन बल्कि कुंभ जैसे बड़े आयोजन की भी सार्थकता सिद्ध होगी। सरकार और आयोजकों से उम्मीद इसलिए भी की जानी चाहिए क्योंकि हिन्दी सम्मेलन के निष्कर्षों पर कुछ अच्छी पहल सामने आई भी है। (फोटो : धर्मेन्द्र सांगले)