शिप्रा का महत्व और कुंभ
स्कंद पुराण में कहा गया है कि सारे भू-मंडल में शिप्रा के समान कोई दूसरी नदी नहीं है जिसके तट पर क्षणभर खड़े रहने मात्र से ही तत्काल मुक्ति मिल जाती है। शिप्रा की उत्पत्ति के संबंध में अनेक कथाएं प्रचलित हैं। एक कथा के अनुसार- एक बार भगवान महाकालेश्वर भिक्षा हेतु बाहर निकले। कहीं भिक्षा न मिलने पर उन्होंने भगवान विष्णु से भिक्षा चाही, पर भगवान विष्णु ने उन्हें तर्जनी दिखा दी। भगवान महाकालेश्वर ने क्रोधित होकर त्रिशूल से उनकी अंगुली काट दी। उससे रक्तधारा प्रवाहित होने लगी। शिवजी ने अपना कपाल उसके नीचे कर दिया। कपाल भर जाने पर रक्तधारा नीचे बहने लगी, तभी से ये 'शिप्रा' कहलाई।