बम विस्फोट में दोनों हाथ गंवाने के बाद भी काजल डे ने नहीं खोया हौसला

इंदौर में 22 से 25 मार्च तक आयोजित पहली राष्ट्रीय पैरा टेबल टेनिस चैम्पियनशिप में भाग लेने के लिए अगरतला (त्रिपुरा) से आए काजल डे को इस बात का मलाल है कि सही क्वालिफिकेशन न होने की वजह से वे पहले ही दौर में हार गए। बम विस्फोट में अपने दोनों हाथ गंवाने के बाद भी काजल का हौसला नहीं डिगा है। उनका मानना है कि टेबल टेनिस के खेल ने ही उनमें नया जोश भरा, जिसकी वजह से वे अगरतला का सबसे बेहतरीन सेंटर चला रहे हैं और उनके द्वारा तैयार किए गए खिलाड़ी राष्ट्रीय रैंकिंग प्राप्त कर रहे हैं।
 
 
'वेबदुनिया' से एक खास मुलाकात में उन्होंने कहा कि यदि मुझे राष्ट्रीय स्पर्धा में सही क्वालिफिकेशन मिलता तो मैं अपने वर्ग में यहां से रजत पदक लेकर लौटता। चूंकि मेरे दोनों हाथ नहीं हैं, लिहाजा मैं विमान से एक सहयोगी के साथ इंदौर पहुंचा और इसमें 37 हजार 700 रुपए खर्च हो गए। यदि ट्रेन से आता तो यहां तक आने में 7 दिन का वक्त लग जाता...स्पर्धा की तैयारी के लिए 2 महीने पहले ही मैंने 8000 रुपए का नया बैट खरीदा था। मेरा यह निवेश भी पानी में चला गया...
'बम विस्फोट' में अपने दोनों हाथ गंवाने की दर्दनाक दास्तान यहां पर काजल डे की जुबानी पढ़िए... 'तब मेरी उम्र 21-22 साल थी और ज्यादा समझ भी नहीं थी। मेरे पिता सरकारी अस्पताल में ड्राइवर की नौकरी करते थे। अचानक पिता राजेन्द्र चन्द्र डे का साया सिर से उठ गया। मेरी नौकरी अगरतला के सरकारी विद्युत विभाग में लग गई, लेकिन नौकरी में मेरा ज्यादा मन नहीं लगता था।
 
 
मैं राजनीतिक पार्टी सीपीएम के लिए काम करता था। जवानी का जुनून सिर चढ़कर बोल रहा था। लोग मुझसे डरते थे। एक दिन बम बनाते वक्त वह फट पड़ा, जिससे मेरे हाथों के चीथड़े उड़ गए। चार महीने अस्पताल में इलाज चला। मुझे इस बाद का जिंदगीभर अफसोस रहेगा कि जिन लोगों के लिए मैं जान पर खेल जाया करता था, उन्होंने मेरी कोई मदद नहीं की। मेरे दोनों हाथ चले गए थे और फिर मां भी चल बसीं। तीन भाई और तीन बहनें थीं।
 
 
1992 में मुझे पुणे में डॉक्टर श्याम भादुड़ी भगवान बनकर मिले, जिन्होंने 5 महीने 17 दिन तक मेरा उपचार किया और किसी तरह मेरा दायां हाथ बना दिया। उन्हीं के कारण आज मैं किसी तरह टेबल टेनिस खेलने में सक्षम बन सका। 1993 से मैंने टेबल टेनिस खेलना प्रारंभ किया और यही कारण है कि मैं पिछले तीन साल से अगरतला में अंतर विभागीय टेबल टेनिस, जिसमें सक्षम खिलाड़ी खेलते हैं, उन्हें हराकर उपविजेता हूं।

 
मैंने अगरतला में अपने टेबल टेनिस सेंटर को मल्टीनेट बनाया है। पूरे त्रिपुरा में ऐसा सेंटर किसी के पास नहीं है। मल्टीनेट में खिलाड़ियों को तीन तरह की गेंदों फास्ट, मीडियम और स्लो गेंदों पर अभ्यास करना होता है। मैं अपने सेंटर के बच्चों से इतना ज्यादा अभ्यास कराता हूं कि वे थककर चूर हो जाते हैं और मुझसे कहते हैं,  'आप हिटलर हो'। 
मेरी कड़ी मेहनत का ही परिणाम है कि मेरी शिष्याओं ने राष्ट्रीय टेबल टेनिस में त्रिपुरा को चार पदक दिलवाए हैं। मौमिता शाह, औरित्रा पाटारी, कल्याणी डे (मेरी बेटी) आज देश की रैंकिंग टेबल टेनिस खिलाड़ी हैं। लड़कों में अर्धजीत चौधरी, अपूर्व दास, जयंत डे, अर्जित डे ने भी राष्ट्रीय स्पर्धा में त्रिपुरा का नाम चमकाया है।

 
आपने देखा होगा कि मैं हमेशा तनाव में रहता हूं। इसकी वजह यही है कि मुझे हमेशा मेरे सेंटर के बच्चों की चिंता रहती है। अभी मैं उन्हें केवल तीन घंटे का ही वक्त दे पाता हूं। मैं त्रिपुरा के मुख्यमंत्री विप्लव देव से मिलना चाहता हूं, ताकि वे मेरी सेवाएं विद्युत विभाग से खेल विभाग को सौंप दें। इससे फायदा यह होगा कि मैं 6 से 7 घंटे तक खिलाड़ियों को अभ्यास करवा सकूंगा। 
वर्तमान समय में त्रिपुरा के हालात इतने खराब हैं कि सीपीएम नेता टेबल टेनिस के कोच बने बैठे हैं। मैं चाहता हूं कि अपने अनुभव का लाभ बच्चों को दूं, ताकि और अधिक प्रतिभाएं राष्ट्रीय नक्शे पर त्रिपुरा का नाम रोशन कर सकें। मुख्यमंत्री से मेरा यह भी अनुरोध है कि राज्य के कर्मचारियों को सातवें वेतन आयोग का लाभ दें, ताकि उनकी आर्थिक दशा में सुधार हो सके।

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