पेले की लोकप्रियता ने युद्ध तक पर लगा दिया था विराम, वह अमर हैं

शुक्रवार, 30 दिसंबर 2022 (12:50 IST)
नई दिल्ली: फुटबॉल खेलना अगर कला है तो उनसे बड़ा कलाकार दुनिया में शायद कोई दूसरा नहीं हुआ। तीन विश्व कप खिताब, 784 मान्य गोल और दुनिया भर के फुटबॉलप्रेमियों के लिए प्रेरणा का स्रोत बने पेले उपलब्धियों की एक महान गाथा छोड़कर विदा हुए। यूं तो उन्होंने 1200 से अधिक गोल दागे थे लेकिन फीफा ने 784 को ही मान्यता दी है।

खेल जगत के पहले वैश्विक सुपरस्टार में से एक पेले की लोकप्रियता दुन‍िया की सीमाओं में नहीं बंधी थी। एडसन अरांतेस डो नासिमेंटो यानी पेले का जन्म 1940 में हुआ। वह फुटबॉल की लोकप्रियता को चरम पर ले जाकर उसका बड़ा बाजार तैयार करने वाले पुरोधाओं में से रहे।
 
उनकी लोकप्रियता का आलम यह था कि 1977 में जब वह कोलकाता आये तो मानों पूरा शहर थम गया था। वह 2015 और 2018 में भी भारत आये थे। भ्रष्टाचार, सैन्य तख्तापलट, सेंसरशिप और दमनकारी सरकारों को झेल रहे देश में उनका जन्म हुआ। सत्रह बरस के पेले ने हालांकि 1958 में अपने पहले ही विश्व कप में ब्राजील की छवि बदलकर रख दी। स्वीडन में खेले गए टूर्नामेंट में उन्होंने चार मैचों में छह गोल किये जिनमें से दो फाइनल में किये थे। ब्राजील को उन्होंने मेजबान पर 5 . 2 से जीत दिलाई और कामयाबी के लंबे चलने वाले सिलसिले का सूत्रपात किया।
 
राजनेताओं के भी दिलअजीज थे पेले
 
फीफा की ओर से महानतम खिलाड़ियों में शुमार किए गए पेले राजनेताओं के भी पसंदीदा रहे। विश्व कप 1970 से पहले उन्हें राष्ट्रपति एमिलियो गारास्ताजू मेडिसि के साथ एक मंच पर देखा गया जो ब्राजील की सबसे तानाशाह सरकार के सबसे निर्दयी सदस्यों में से एक थे। ब्राजील ने वह विश्व कप जीता जो पेले का तीसरा विश्व कप भी था। ब्राजील की पेचीदा सियासत के सरमाये में मध्यम वर्ग से निकला एक अश्वेत खिलाड़ी विश्व फुटबॉल पलट पर छा गया।
युद्धविराम हुआ पेले की लोकप्रियता के लिए
 
उनकी लोकप्रियता का आलम यह था कि 1960 के दशक में नाइजीरिया के गृहयुद्ध के दौरान 48 घंटे के लिए विरोधी गुटों के बीच युद्धविराम हो गया ताकि वे लागोस में पेले का एक मैच देख सकें। वह कोस्मोस के एशिया दौरे पर 1977 में मोहन बागान के बुलावे पर कोलकाता भी आए। उन्होंने ईडन गार्डंस पर करीब आधा घंटा फुटबॉल खेला जिसे देखने के लिए 80000 दर्शक मौजूद थे।
 
5 साल पहले आए थे कोलकाता
उस मैच के बाद मोहन बागान की मानो किस्मत बदल गई और टीम जीत की राह पर लौट आई। उसके बाद वह 2018 में आखिरी बार कोलकाता आए और उनके लिए दीवानगी का आलम वही था। पेले के 80वें जन्मदिन पर अंतरराष्ट्रीय ओलंपिक समिति के अध्यक्ष थॉमस बाक ने कहा था क‍ि आपने कभी ओलंपिक नहीं खेला लेकिन आप ओलंपिक खिलाड़ी हैं क्योंकि पूरे कैरियर में ओलंपिक के मूल्यों को आपने आत्मसात किया।
पेले अमर होते हैं 
फुटबॉल जगत में यह बहस बरसों से चल रही है कि पेले, माराडोना और अब लियोनेल मेस्सी में से महानतम कौन है। डिएगो माराडोना ने दो साल पहले दुनिया को अलविदा कहा और मेस्सी ने दो सप्ताह पहले ही विश्व कप जीतने का अपना सपना पूरा किया। पेले जैसे खिलाड़ी मरते नहीं, अमर हो जाते हैं। अपने असाधारण हुनर के दम पर।

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