तिलस्मी गेंदबाज मेंडिस का जलवा

दूसरे टेस्ट मैच कपरिणाम को आप एकबारगी नजरअंदाज कर दें, लेकिन इसमें कोई दो मत नहीं कि 7 जुलाई 2008 को कराची के नेशनल स्टेडियम में अंजता मेंडिस नाम के जिस तिलस्मी गेंदबाज ने एशिया कप के फाइनल में श्रीलंका को विजेता बनवाने में महती भूमिका निभाई थी, उसी गेंदबाज का जलवा पहले कोलंबो में देखने को मिला और फिर गाले के समुद्र किनारे बने आकर्षक स्टेडियम में यह नाम छाया रहा।

सुनामी से पूरी तरह बर्बाद हुए गाले के इस स्टेडियम को फिर से बनाया गया और यह दुनिया का एकमात्र स्टेडियम है, जहाँ कार पार्क कर आप सीधे मैच को देख सकते हैं। यही नहीं, स्टेडियम में बैठे दर्शक पीछे पलटकर यह भी देख सकते हैं कि समुद्र किनारे से सटी सड़क पर कौन-सी कार हवा से बातें कर रही है। सड़क पर कारों की इस रेलमपेल के बीच रविवार के दिन गाले स्टेडियम में भी एक के बाद एक नाटकीय परिवर्तन देखने को मिल रहे थे।

अजंता मेंडिस दोनों पारियों में (पहली पारी में 117 रन देकर 6 और दूसरी पारी में 92 रन देकर 4) कुल 10 विकेट अपनी झोली में डाल चुके थे। भारतीय टीम के कप्तान अनिल कुंबले और कोच गैरी कर्स्टन अब तक अजंता मेंडिस का तोड़ नहीं ढूँढ़ सके हैं।

एशिया कप में 'मैन ऑफ द मैच' के साथ ही साथ पूरे टूर्नामेंट का सर्वश्रेष्ठ खिलाड़ी का पुरस्कार पाने वाले मेंडिस ने फाइनल में 8 ओवरों में 13 रन देकर 6 विकेट झटककर चौथी बार श्रीलंका को कप दिलाया था और तब लगा था कि वे वन-डे के तुक्के गेंदबाज हैं, लेकिन सभी लोग गलत सोच रहे थे।

कोलंबो में टीम इंडिया की पहले क्रिकेट टेस्ट मैच में हुई शर्मनाक पराजय में भी मेंडिस 'खलनायक' साबित हुए और वे सर्वाधिक विकेट लेने वाले श्रीलंकाई गेंदबाज बन गए हैं।

भारत की पहली पारी में 72 रन देकर तथा दूसरी पारी में 60 रन देकर चार-चार विकेट लेने वाले मेंडिस ने मैच में 138 रन की कीमत पर आठ विकेट लेकर कौशल कुरुप्पुराची के रिकॉर्ड को पीछे छोड़ दिया।

मेंडिस का यह जलवा गाले में भी देखने को मिला और उन्होंने 10 भारतीय बल्लेबाजों को अपनी स्पिन के जाल में उलझाया। इस नायाब उपलब्धि से वे एक बार फिर सुर्खियों में आ गए हैं।

अंजता का नाम आईपीएल में उछला था, लेकिन क्रिकेट के जानकारों ने उनमें गजब का हुनर देखा। स्पिनरों के खिलाफ भारतीयों के बल्ले से रनों का झरना फूटता है, लेकिन यही बल्लेबाज श्रीलंका के इस नायाब स्पिनर के खिलाफ असहाय नजर आए।

11 मार्च 1985 को मोराटोवा में जन्मे अजंता मेंडिस ने कुल जमा 2 टेस्ट मैच, 8 वन-डे, 19 प्रथम श्रेणी मैच और 7 ट्‍वेंटी-20 मैच खेले हैं, लेकिन उन्होंने अपनी प्रतिभा का लोहा मनवाया दिया। वाकई 2 टेस्ट मैच में 18 विकेट लेकर मेंडिस ने अपना नाम हरेक की जुबाँ पर ला दिया है।

अजंता का करियर कोई बहुत लंबा-चौड़ा नहीं है। उन्होंने पहला वन-डे 10 अप्रैल 2008 में पोर्ट ऑफ स्पेन में वेस्टइंडीज के खिलाफ खेला था और यहीं से कप्तान महेला जयवर्धने को अपनी टीम के ‍लिए 'दूसरा मुरलीधरन' मिल गया था।

मेंडिस की खासियत यह है कि वे गेंद फेंकते समय हाथ सामने रखते हैं और अंतिम क्षणों में अँगुलियों से करामात कर डालते हैं। सामने वाला बल्लेबाज यह अनुमान ही नहीं लगा पाता है कि गेंद ऑफ स्पिन है, लेग स्पिन या फिर गुगली।

क्रिकेट बिरादरी लगातार अंजता मेंडिस की अँगुलियों के जादू को देख रही है और वे भी अपने हुनर से विरोधी टीम के लिए सबसे बड़ा खतरा बनते नजर आ रहे हैं। श्रीलंका की सेना में बतौर सेकंड लेफ्टिनेंट के ओहदे पर काम करने वाले अजंता मेंडिस को अँगरेजी नहीं आती है और हर बार उनके लिए दुभाषिए के रूप में कप्तान महेला जयवर्धने मौजूद रहते हैं। महेला का दिल तो बार-बार यही चाहेगा कि अजंता टीम के लिए ब्रह्मास्त्र साबित हों और उन्हें दुभाषिए की भूमिका अदा करना पड़े।

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