मैं समग्र जगत का हूं - विवेकानंद

कुछ पुरातनपंथी हिन्दुओं द्वारा यह आरोप लगाए जाने पर कि वे विधर्मियों के साथ एक ही मेज पर बैठकर निषिद्ध भोजन ग्रहण करते हैं, स्वामी जी ने मुंहतोड़ उत्तर देते ‍हुए लिखा -


 


क्या तुम यह कहना चाहते हो कि मैं इन, केवल शिक्षित हिन्दुओं में ही पाए जाने वाले जातिभेद-जर्जरित, अंधविश्वासी, दयाहीन, कपटी और नास्तिक कायरों में से एक बनकर जीने-मरने के लिए पैदा हुआ हूं?

मुझे कायरता से घृणा है। मैं कायरों के साथ कोई संबंध नहीं रखना चाहता। मैं जैसे भारत का हूं वैसे ही समग्र जगत का भी हूं। इस विषय को लेकर मनमानी बातें बनाना निरर्थक है। ऐसा कौन-सा देश है, जो मुझ पर विशेष अधिकार का दावा करता है? क्या मैं किसी राष्ट्र का क्रीतदास हूं?... मुझे अपने पीछे एक ऐसी शक्ति दिखाई दे रही है, जो‍कि मनुष्य, देवता या शैतान की शक्तियों से कहीं अधिक सामर्थ्यशाली है। मुझे किसी की सहायता नहीं चाहिए, जीवन भर मैं ही दूसरों की सहायता करता रहा हूं।


इसी शैली में उन्होंने एक-दूसरे भारतीय शिष्य को लिखा - मुझे आश्चर्य है कि तुम लोग मिशनरियों की मूर्खतापूर्ण बातों को इतना महत्व दे रहे हो।

यदि भारतवासी मेरे नियमानुसार हिन्दू-भोजन के सेवन पर बल देते हैं तो उनसे एक रसोइया एवं उसके रखने के लिए पर्याप्त रुपयों का प्रबंध करने के लिए कह देना। फिर मिशनरी लोग यदि कहते हों कि मैंने कामिनी-कांचन त्याग रूपी संन्यास के दोनों व्रत तोड़े हैं, तो उनसे कहना कि वे झूठ बोलते हैं।

मेरे बारे में इतना ही जान लेना कि मैं किसी के भी कथनानुसार नहीं चलूंगा, किसी भी राष्ट्र के प्रति मेरी अंधभक्ति नहीं है।

मैं कायरता को घृणा की दृष्टि से देखता हूं। कायर तथा मूर्खतापूर्ण बकवासों के साथ मैं अपना संबंध नहीं रखना नहीं चाहता। किसी प्रकार की राजनीति में मुझे विश्वास नहीं है। ईश्वर तथा सत्य ही इस जगत में एकमात्र राजनीति है, बाकी सब कूड़ा-कचरा है।

विवेकानंद : एक जीवनी से साभा

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