Black lives Matter लेकिन अश्वेत खिलाड़ियों का आकलन हो प्रतिभा से, माइकल होल्डिंग ने कही पते की बात

शनिवार, 30 अक्टूबर 2021 (23:06 IST)
जोहानसबर्ग: वेस्टइंडीज़ के पूर्व तेज़ गेंदबाज़ माइकल होल्डिंग शुक्रवार को साउथ अफ़्रीका के सोशल जस्टिस और नेशन बिल्डिंग (एसजेएन) की आख़िरी सुनवाई में बतौर अतिथि वक्ता आए और उन्होंने कहा कि अश्वेत खिलाड़ियों का आंकलन सिर्फ़ उनकी प्रतिभा पर किया जाना चाहिए। उन्होंने कहा कि 'कोटा' शब्द का उपयोग उनके लिए एक बोझ सा बन जाता है।

नस्लवाद और असमानता पर हमेशा से सधे शब्दों में अपनी बात रखने वाले होल्डिंग ने कहा, "मैंने कई बार साउथ अफ़्रीका के अश्वेत क्रिकेटरों के संदर्भ में कोटा सिस्टम जैसे शब्द सुने हैं। उनको अपने प्रतिभा का श्रेय दिया ही नहीं जाता।"

होल्डिंग ने कहा कि यह बात वह पूर्व साउथ अफ़्रीका कप्तान और क्रिकेट संघ के प्रबंध संचालक अली बाकर से भी कर चुके हैं। उन्होंने कहा, "मैं जब 2003 विश्व कप में कॉमेंट्री करने यहां आया था तो मैंने अली बाकर को कहा कि यह शब्द अश्वेत क्रिकेटरों के लिए एक अनावश्यक बोझ है। आप जब किसी खिलाड़ी का चयन करते हैं तो सबसे पहले आप देखते हैं कि वह टीम में कैसे फ़िट बैठते हैं। कोटा सिस्टम का मतलब यह है कि आप उन्हें हर हाल में चुनेंगे। यह किसी खिलाड़ी के लिए एक बड़ा बोझ है।"

होल्डिंग ने माना कि 27 वर्ष पहले तक श्वेत अल्पसंख्यक समुदाय के सत्ता में रहने के चलते साउथ अफ़्रीका जैसे देश में पुरानी ग़लतियों को सुधारने की ज़रूरत थी। उन्होंने कहा, "इस कदम के पीछे लक्ष्य साफ़ है। साउथ अफ़्रीका को ज़रूरत थी ऐसे टीम की जो देश के हर वर्ग का प्रतिनिधित्व करे और इसे नियमानुसार बनाने से ही यह जल्दी से हो सकता था।"

होल्डिंग ने साउथ अफ़्रीका के पहले अफ़्रीकी मूल के अश्वेत टेस्ट खिलाड़ी मखाया एनटिनी का उल्लेख किया। होल्डिंग के अनुसार एनटिनी अपने 11 साल के अंतर्राष्ट्रीय करियर में कोटा खिलाड़ी की उपाधि को नहीं हटा पाए। होल्डिंग ने कहा, "वह एक शानदार क्रिकेटर थे और उनका रिकॉर्ड यही दर्शाता है। उन्होंने अपने करियर की शुरुआत से ही यह साबित किया है लेकिन यह भी हमेशा कहा जाता रहा है कि अगर कोटा नहीं होता तो शायद उनका चयन नहीं होता।"

एनटिनी ने आख़िरकार 390 टेस्ट विकेट लिए। साउथ अफ़्रीका के टेस्ट इतिहास में केवल डेल स्टेन और शॉन पोलॉक ही उनसे आगे हैं। लेकिन होल्डिंग ने कहा कि एनटिनी को कभी सीनियर खिलाड़ी की इज़्ज़त नहीं मिली और वह अक्सर अकेले रह जाते थे। पिछले साल एनटिनी ने बताया था कि वह कई बार स्टेडियम से टीम होटल भाग कर लौटते थे क्योंकि टीम बस में कोई उनके साथ बैठना पसंद नहीं करता था।

होल्डिंग ने इस बात को उठाते हुए कहा, "हमें पता है एनटिनी बहुत फ़िट खिलाड़ी थे। हमें लगता था यह उनकी फ़िटनेस प्रक्रिया का फल है। लेकिन उन्होंने मुझे बताया कि जब वह टीम बस में जाते थे तो उनके साथ बुरा बर्ताव होता था। इसीलिए वह भागना पसंद करते थे। वह सुबह नाश्ता करने जाते थे तो उनके साथी उन्हें अकेला छोड़ देते थे। उन्होंने शुरू में सोचा कि शायद वह लोग गोपनीय बातें करते थे। लेकिन समय के साथ उन्हें समझ आया कि चल क्या रहा था। उन्हें टीम का हिस्सा नहीं माना जाता था। मैं भी क्रिकेट खेला हूं। मुझे पता है टीमों में सीनियर खिलाड़ियों का गुट बन जाता है। साउथ अफ़्रीका में भी कुछ ऐसा हुआ लेकिन उन्हें कभी सीनियर क्रिकेटरों में शामिल नहीं किया गया। उनके सालों बाद टीम में आए खिलाड़ी अपनी त्वचा के रंग के आधार पर सीनियर प्लेयर बनते गए।"

ग़ौरतलब है कि एसजेएन की सुनवाई में एनटिनी ने ख़ुद कुछ नहीं कहा है। लेकिन होल्डिंग का मानना है कि उनके अनुभव से काफ़ी कुछ सीखा जा सकता है। उन्होंने कहा, "मखाया एनटिनी के साथ यह सब कुछ होने के बावजूद वह एक सफल खिलाड़ी रहे। यह उनके चरित्र की शक्ति को दर्शाता है। शायद उनके साथ ऐसा करने वाले उस समय समझ नहीं पाए कि वह एक व्यक्ति को कितनी पीड़ा दे रहे थे। आशा है वह अपनी ग़लती मानेंगे और अब भी अपनी मानसिकता बदल लेंगे।"

एसजेएन में मानसिकता बदलने की बात बार-बार उभर कर आई है लेकिन होल्डिंग का कहना है कि साउथ अफ़्रीका में छात्रवृत्ति प्रणाली में भी बदलाव की ज़रूरत है। उदहारण के तौर पर एनटिनी को एमडिंगी नामक जगह से सीधा प्रसिद्ध डेल कॉलेज में डाला गया। उस वक़्त ना तो वह ठीक से अंग्रेज़ी बोलते थे और ना ही अपने साथियों के आर्थिक या सामाजिक परिपेक्ष्य को समझ पाते थे। होल्डिंग का मानना है कि एमडिंगी जैसी जगह को विकसित करना बेहतर विकल्प है।

उन्होंने कहा, "मैं नहीं चाहता कि कोई ऐसे इलाक़ों में जाकर प्रतिभाशाली खिलाड़ियों को वहां से निकालकर कहीं और डालें और उन्हें बदलने पर मजबूर करें। आप उन्हीं जगहों में संसाधन डालिए जहां यह बच्चे हैं। अगर किसी में मखाया एनटिनी जैसी मानसिकता नहीं है तो वह वर्तमान परिस्थितियों में फल नहीं देता। जब मैं उनकी बात सुनता हूं तो ताज्जुब होता है कि बिना भाषा बोले वह इस परिवेश से कैसे आगे बढ़े। यह सब नहीं कर पाएंगे। आप किसी को अपनी जगह से हटा कर उम्मीद नहीं कर सकते कि वह ख़ुद को बदल लेगा। सब को बराबर का अवसर मिले यही मेरी मनोकामना है।"(वार्ता)

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