कविता : हीरे को तराशता शिक्षक

हर कदम पर कभी समझाता,
कभी डांटता शिक्षक 
अपने ज्ञान के प्रकाश को, सबमें बांटता शिक्षक
कांच के टुकड़े  उठाकर, हीरे-सा तराशता शिक्षक 
हर क्रिया, प्रतिक्रिया को देख, 
हर नजर से जांचता शिक्षक 
 
 
संस्कारों के बीज बोकर,आदर्शों की फसल काटता शिक्षक 
अंधकार में दीप जलाकर, 
अज्ञानता की खाई पाटता शिक्षक 
 
जीवन मूल्यों को सिखाता,जिंदगी संवारता शिक्षक 
शिष्य को आगे बढ़ाकर,
 खुद को उसपे वारता शिक्षक 

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