एक दिन राजा कृष्णदेव राय व उनके दरबारी, दरबार में बैठे थे। तेनालीराम भी वहीं थे। अचानक एक चरवाहा वहां आया और बोला, 'महाराज, मेरी सहायता कीजिए। मेरे साथ न्याय कीजिए।'
'बताओ, तुम्हारे साथ क्या हुआ है?' राजा ने पूछा।
'महाराज, मेरे पड़ोस में एक कंजूस आदमी रहता है।
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उसका घर बहुत पुराना हो गया है, परंतु वह उसकी मरम्मत नहीं करवाता। कल उसके घर की एक दीवार गिर गई और मेरी बकरी उसके नीचे दबकर मर गई। कृपया मेरे पड़ोसी से मेरी बकरी का हर्जाना दिलवाने में मेरी सहायता कीजिए।'
महाराज के कुछ कहने के पहले ही तेनालीराम अपने स्थान से उठा और बोला, 'महाराज, मेरे विचार से दीवार टूटने के लिए केवल इसके पड़ोसी को दोषी नहीं ठहराया जा सकता।'
'तो फिर तुम्हारे विचार में दोषी कौन है?' राजा ने पूछा।
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'महाराज, यदि आप मुझे अभी थोड़ा समय दें तो मैं इस बात की गहराई तक जाकर असली अपराधी को आपके सामने प्रस्तुत कर दूंगा।' तेनालीराम ने कहा।
राजा ने तेनालीराम के अनुरोध को मानकर उसे समय प्रदान कर दिया। तेनालीराम ने चरवाहे के पड़ोसी को बुलाया और उसे मरी बकरी का हर्जाना देने के लिए कहा। पड़ोसी बोला, 'महोदय, इसके लिए मैं दोषी नहीं हूं। यह दीवार तो मैंने मिस्त्री से बनवाई थी अतः असली अपराधी तो वह मिस्त्री है जिसने वह दीवार बनाई। उसने इसे मजबूती से नहीं बनाया अतः वह गिर गई।'
तेनालीराम ने मिस्त्री को बुलवाया। मिस्त्री ने भी अपने को दोषी मानने से इंकार कर दिया और बोला, 'अन्नदाता, मुझे व्यर्थ ही दोषी करार दिया जा रहा है जबकि मेरा इसमें कोई दोष नहीं है।
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असली दोष तो उन मजदूरों का है जिन्होंने गारे में अधिक पानी मिलाकर मिश्रण को खराब बनाया जिससे ईंटें अच्छी तरह से चिपक नहीं सकीं और दीवार गिर गई। आपको हर्जाने के लिए उन्हें बुलाना चाहिए।'
राजा ने मजदूरों को बुलाने के लिए अपने सैनिकों को भेजा। राजा के सामने आते ही मजदूर बोले, 'महाराज, इसके लिए हमें दोषी तो वह पानी वाला व्यक्ति है जिसने गारे-चूने में अधिक पानी मिलाया।'
अबकी बार गारे में पानी मिलाने वाले व्यक्ति को बुलाया गया। अपराध सुनते ही वह बोला, 'इसमें मेरा कोई दोष नहीं है महाराज, वह बर्तन जिसमें पानी भरा हुआ था, वह बहुत बड़ा था जिस कारण उसमें आवश्यकता से अधिक पानी भर गया अतः पानी मिलाते वक्त मिश्रण में पानी की मात्रा अधिक हो गई। मेरे विचार से आपको उस व्यक्ति को पकड़ना चाहिए जिसने पानी भरने के लिए मुझे इतना बड़ा बर्तन दिया।
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तेनालीराम के पूछने पर कि वह बड़ा बर्तन उसे कहां से मिला, उसने बताया कि पानी वाला बड़ा बर्तन उसे चरवाहे ने दिया था जिसमें आवश्यकता से अधिक पानी भर गया था।
तब तेनालीराम ने चरवाहे से कहा, 'देखो, यह सब तुम्हारा ही दोष है। तुम्हारी एक गलती ने तुम्हारी ही बकरी की जान ले ली।'
चरवाहा लज्जित होकर दरबार से चला गया, परंतु सभी तेनालीराम के बुद्धिमतापूर्ण न्याय की भूरि-भूरि प्रशंसा कर रहे थे।