एक बार किसी वित्तीय समस्या में फंसकर तेनालीराम ने राजा कृष्णदेव राय से कुछ रुपए उधार लिए थे। समय बीतता गया और पैसे वापस करने का समय भी निकट आ गया, परंतु तेनाली के पास पैसे वापस लौटाने का कोई प्रबंध नहीं हो पाया था, सो उसने उधार चुकाने से बचने के लिए एक योजना बनाई।
एक दिन राजा को तेनालीराम की पत्नी की ओर से एक पत्र मिला। उस पत्र में लिखा था कि तेनालीराम बहुत बीमार हैं।
तेनालीराम कई दिनों से दरबार में भी नहीं आ रहा था इसलिए राजा ने सोचा कि स्वयं जाकर तेनाली से मिला जाए। साथ ही राजा को भी संदेह हुआ कि कहीं उधार से बचने के लिय तेनालीराम की कोई योजना तो नहीं है।
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राजा तेनालीराम के घर पहुंचे। वहां तेनालीराम कम्बल ओढ़कर पलंग पर लेटा हुआ था। उसकी ऐसी अवस्था देखकर राजा ने उसकी पत्नी से कारण पूछा।
वह बोली, 'महाराज, इनके दिल पर आपके दिए हुए उधार का बोझ है। यही चिंता इन्हें अंदर ही अंदर खाए जा रही है और शायद इसी कारण ये बीमार हो गए।'
राजा ने तेनाली को सांत्वना दी और कहा, 'तेनाली, तुम परेशान मत हो। तुम मेरा उधार चुकाने के लिए नहीं बंधे हुए हो। चिंता छोड़ो और शीघ्र स्वस्थ हो जाओ।'
यह सुन तेनालीराम पलंग से कूद पड़ा और हंसते हुए बोला, 'महाराज, धन्यवाद।'
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'यह क्या है, तेनाली? इसका मतलब तुम बीमार नहीं थे। मुझसे झूठ बोलने का तुम्हारा साहस कैसे हुआ?' राजा ने क्रोध में कहा।
'नहीं-नहीं, महाराज, मैंने आपसे झूठ नहीं बोला। मैं उधार के बोझ से बीमार था। आपने जैसे ही मुझे उधार से मुक्त किया, तभी से मेरी सारी चिंता खत्म हो गई और मेरे ऊपर से उधार का बोझ हट गया। इस बोझ के हटते ही मेरी बीमारी भी जाती रही और मैं अपने को स्वस्थ महसूस करने लगा। अब आपके आदेशानुसार मैं स्वतंत्र, स्वस्थ व प्रसन्न हूं।'
हमेशा की तरह राजा के पास कहने के लिए कुछ न था, वे तेनाली की योजना पर मुस्करा पड़े।