महाराज कृष्णदेव राय तेनालीराम का मखौल उड़ाने के लिए उल्टे-पुल्टे सवाल करते थे। तेनालीराम हर बार ऐसा उत्तर देते कि राजा की बोलती बंद हो जाती।
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एक दिन राजा ने तेनालीराम से पूछा, 'तेनालीराम! क्या तुम बता सकते हो कि हमारी राजधानी में कुल कितने कौवे निवास करते हैं?'
हां बता सकता हूं महाराज! तेनालीराम तपाक से बोले।
महाराज बोले, बिलकुल सही गिनती बताना।
जी हां महाराज, बिलकुल सही बताऊंगा। तेनालीराम ने जवाब दिया।
दरबारियों ने अंदाज लगा लिया कि आज तेनालीराम जरूर फंसेगा। भला परिंदों की गिनती संभव हैं?
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'तुम्हें दो दिन का समय देते हैं, तीसरे दिन तुम्हें बताना है कि हमारी राजधानी में कितने कौवे हैं?' महाराज ने आदेश की भाषा में कहा।
तीसरे दिन फिर दरबार लगा। तेनालीराम अपने स्थान से उठकर बोला, 'महाराज-महाराज, हमारी राजधानी में कुल एक लाख पचास हजार नौ सौ निन्यानवे कौवे हैं। महाराज कोई शक हो तो गिनती करा लो।'
राजा ने कहा, गिनती होने पर संख्या ज्यादा-कम निकली तो?
महाराज, ऐसा नहीं होगा, बड़े विश्वास से तेनालीराम ने कहा। अगर गिनती गलत निकली तो इसका भी कारण होगा।
राजा ने पूछा, 'क्या कारण हो सकता है?'
तेनालीराम ने जवाब दिया, 'यदि राजधानी में कौवों की संख्या बढ़ती है तो इसका मतलब है कि हमारी राजधानी में कौवों के कुछ रिश्तेदार और इष्ट मित्र उनसे मिलने आए हुए हैं। संख्या घट गई है तो इसका मतलब है कि हमारे कुछ कौवे राजधानी से बाहर अपने रिश्तेदारों से मिलने गए हैं। वरना कौवों की संख्या एक लाख पचास हजार नौ सौ निन्यानवे ही होगी।
तेनालीराम से जलने वाले दरबारी अंदर ही अंदर कुढ़कर रह गए कि हमेशा की तरह यह चालबाज फिर अपनी चालाकी से पतली गली से बच निकला।