उस वक्त राजीव गांधी चुनाव प्रचार के सिलसिले में श्रीपेरुंबुदूर गए हुए थे। वे वहां एक आमसभा को संबोधित करने जा ही रहे थे कि उनका स्वागत करने के लिए रास्ते में बहुत सारे प्रशंसक उन्हें फूलों की माला पहना रहे थे। इसी दौरान लिट्टे के आतंकवादियों ने इस घटना को अंजाम दिया था। हमलावर धनु ने एक आत्मघाती विस्फोट को अंजाम दिया था जिसमें राजीव गांधी की मौत हो गई थी। इस हमले में 2 दर्जन से ज्यादा अन्य लोगों की भी मौत हुई थी।
आतंकवाद विरोधी दिवस मनाने का उद्देश्य राष्ट्रीय हितों पर पड़ने वाले प्रतिकूल प्रभावों, आतंकवाद के कारण आम जनता को हो रहीं परेशानियों, आतंकी हिंसा से दूर रखना है। इसी उद्देश्य से स्कूल-कॉलेज और विश्वविद्यालयों में आतंकवाद और हिंसा के खतरों पर परिचर्चा, वाद-विवाद, संगोष्ठी, सेमिनार और व्याख्यान आदि का आयोजन किया जाता है।
राजनीतिक जीवन : देश के सबसे बड़े और महत्वपूर्ण राजनीतिक परिवार से आने वाले राजीव गांधी की राजनीति में कोई विशेष रुचि नहीं थी और वे एक एयरलाइंस में पायलट की नौकरी करते थे। आपातकाल के उपरांत जब इंदिरा गांधी को सत्ता छोड़नी पड़ी थी, तब कुछ समय के लिए वे परिवार के साथ विदेश में रहने चले गए थे।
1984 में प्रधानमंत्री बने : तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी की 31 अक्टूबर 1984 को हत्या के बाद राजीव गांधी को देश का प्रधानमंत्री बनाया गया। जब इंदिराजी की हत्या हुई तो राजीव को उसी दिन प्रधानमंत्री पद की शपथ दिलाई गई। वे 31 अक्टूबर 1984 से 1 दिसंबर 1989 तक भारत के प्रधानमंत्री रहे। उन्हें देश के सर्वोच्च सम्मान 'भारत रत्न' से भी सम्मानित किया गया।