कश्मीर के खौफनाक किस्से : फिरन में छेद था, अंदर से पिस्टल झांक रही थी....

स्मृति आदित्य
कश्मीरी पंडित ऋचा कौल की जुबानी, कश्मीर की कहानी
बच्चे गायब होने लगे
अपनी कहानी मैं आपको शुरू से सुनाती हूं हुआ क्या कि हम गांव में रहते थे...सामान्यत: गांवों में रात को घरों से लोग निकलते नहीं थे, पर हमने देखा कि रात 2 बजे कार आ रही है, कुछ दिया लिया जा रहा है...जब हमारे गांव के हिन्दू मुस्लिम दोनों ही संप्रदाय के लोगों को शक हुआ तो मीटिंग हुई और दोनों ही संप्रदाय के लोग मिलकर गश्त लगाने लगे। गश्त में पता चला कि बिजनेस के सिलसिले में आ रहे हैं... जबकि सच यह था कि रात को हथियार सप्लाय हो रहे थे... कोई बिजनेस विजनेस नहीं था... 
 
फिर एक दिन हमने देखा हमारे गांव में बसें आ रही हैं और उसमें भर-भर कर सारे लोग मुफ्त में कहीं जा रहे हैं, पता करने पर बताया गया कि उनका कोई पवित्र स्थल है, तीर्थ समझ लीजिए हम वहां जा रहे हैं...एक पूरे दिन गांव के अधिकांश लोग गायब रहे पता नहीं कहां गए थे क्या सीख कर आए थे....लौटने के दूसरे दिन से अचानक आजादी के नारे लगे जबकि उससे पहले हमारे गांव का माहौल ऐसा नहीं था...यकायक से हमारे गांव का माहौल बदल गया...
 
फिर आपको बताऊं कि गांव में बच्चे गायब होने लगे, किशोर उम्र के लोग लापता होने लगे... मैं 20-21 साल की थी...मेरी उम्र के लोग अचानक से गायब हो जाते, बहने रो रही कहीं, कहीं मांएं रो रही... कहीं पिता रो रहे... 
मास्टर जी आपको जमीन बेचनी है क्या?
मेरे पिताजी का एक स्टूडेंट था... एक दिन अचानक आकर पूछता है कि मास्टर जी आपको जमीन बेचनी है क्या? मेरे पापा मनोविज्ञान जानते थे, उन्होंने जवाब दिया नहीं बेटा मैं क्यों बेचूंगा जमीन...जवाब मिला लोग बेच रहे हैं तो मैंने पूछा... वहां हालत यह थी कि जिसने भी जमीन बेची तो जमीन भी हाथ से गई और जब पैसे लेनदेन के लिए गए तो उन्हें मार दिया गया...यानी जान भी चली गई,जमीन भी गई, बीवी बच्चे सड़क पर आ गए...
 
मेरे बड़े पापा के बेटे यानी मेरे कजिन ब्रदर अशोक भैया का नाम जब सूची में निकला तो उनका प्यून जो खुद मुस्लिम था रोते रोते आया लगभग दौड़ते हुए और बोला कि भाभी आप बैठो फटाफट भैया को ऑफिस से ले लेंगे उसने बच्चे बैठाएं और जम्मू छोड़कर आ गया... 
अपने आपको छुरा मार लेना पर इनके हाथ नहीं पड़ना...
बहरहाल मैं अपनी बात करूं तो अगले दिन आधी रात को सड़क खचाखच भरी थी रैली निकल रही थी...और एक ही तरह के नारे जो आप जानते हैं क्या थे....हम दो युवा बहने थीं घर पर मेरे पापा चौथी मंजिल पर जाते थे वॉच करते थे  और कहते थे कि इशारा करूंगा तो फटाफट भागना है जिसको जहां से रास्ता मिले, नहीं मौका मिले तो चाकू रखा है, हम लड़कियों को बोला कि अपने आपको छुरा मार लेना पर इनके हाथ नहीं पड़ना...हमको घर में थोड़े पैसे भी बांटे गए थे...इस भय के माहौल में सुरक्षा की ऐसी ट्रेंनिंग मिली थी...हमको बोला गया था कि घबराना नहीं...अगर हम अलग अलग हो जाए तो जो जहां है वहीं पर रहने और जीने की कोशिश करेगा...  
 जहां भी लड़कियां थीं वहां चिंता और तनाव ज्यादा था.... 
दो तीन दिन ऐसे ही चला फिर एक दिन मेरी बहन की गहरी नींद नहीं खुली तो मेरे पापा ने क्रोधावेग में उसे पैर मार कर उठाया तब मेरे बड़े पापा ने उनको डांटा कि यह क्या संस्कार है तुम्हारे तो वे फूट फूट कर रोने लगे कि आप ही बताओ फिर मैं क्या करूं, मेरी जवान लड़कियों को उनके हाथ में जाने दूं क्या, तब यह तय हुआ कि हमको जम्मू छोड़कर आ जाएंगे.... यह मेरी नहीं हर कश्मीरी पंडित के घर की कहानी है, जहां भी लड़कियां थीं वहां चिंता और तनाव ज्यादा था.... 
हमारे घर को इमामबाड़ा या मस्जिद बनाना चाहते थे
जम्मू में गीता भवन में रहे, फिर उधमपुर चले गए, टैंट में रहे, एक कमरे के घर में रहे...पुलवामा में भी रहे...हमारे पास कुछ नहीं था कोई कपड़े नहीं, कोई कागज नहीं, बस सरस्वती माता साथ थी जो दिमाग में सुरक्षित था बस वही था...सारी प्रॉपर्टी वहीं रह गई... एक दूजे से पूछ कर कोई नहीं भागा जिसे जैसी सुविधा मिली चला गया...पीछे से कई घरों को आग लगा दी गई...हमारा घर बड़ा था, मेन रोड़ पर था....बाद में पता चला कुछ लोग हमारे घर को इमामबाड़ा या मस्जिद बनाना चाहते थे...लेकिन किसी वजह से वे ऐसा कर नहीं सके...आसपास सब जल गया था बस वही घर बचा था तो आर्मी वहां रहने लगी....बाद में जब आतंक बढ़ गया तो आर्मी भी चली गई और हमारा घर भी जला दिया.... 
कश्मीरी फिरन में छेद है और पिस्टल झांक रही है....
बाद में मेरे ससुराल वालों के साथ कश्मीर फिर से गई....वह भी बड़ा भयानक वाला अनुभव है..मैं ओखली खरीदने एक दुकान पर रूक गई, परिवार वाले गाड़ी में बैठ चुके थे एक व्यक्ति था दुकान पर....जब तक मैं पलटूं-पलटूं तब तक सब तितर बितर होने लगे और ऐसा लगा जैसे मैं अपने ही शहर में गुम हो गई....मैंने देखा दो तीन लड़के कश्मीरी फिरन में है, उसमें छेद है और उसके अंदर से पिस्टल झांक रही है....वे लोग कश्मीरी में बात करने लगे.....मैंने मां सरस्वती की कृपा से अपने आपको डरा हुआ नहीं दिखाया और ऐसा बताया जैसे मैं नहीं जानती हूं कश्मीरी भाषा....पता नहीं क्या हुआ शायद उन्होंने मुझे पर्यटक समझा और जाने के लिए कहा, मैं तेजी से भागते हुए अपनी गाड़ी की तरफ गई...गाड़ी में घर के सब लोग रो रहे थे,मेरे बच्चे भी रो रहे थे....सबको यही लगा कि अब मैं नहीं बचने वाली.... 
मूवी द कश्मीर फाइल्स देखी तब लगा ही नहीं कि फिल्म देख रही हूं....लगा जैसे सब मेरा देखा हुआ है, भोगा हुआ है....मैं उनके रिसर्च को दाद देती हूं...एक एक स्लॉट ओरिजनल लग रहा है... 
मुझे विश्वास है कि एक दिन हालात बदलेंगे... 
वहां जितनी बर्बादी हुई है सरकारों की वजह से हुई है वह चाहती तो हमारा पलायन और नरसंहार दोनों रोका जा सकता था पर किसी ने भी हमारे दर्द और पीड़ा को अपनी प्राथमिकता में रखा ही नहीं...अभी भी सरकार बहुत कुछ कर रही है पर असल में हमारे दर्द को देखते हुए हमारी कश्मीरी पंडितों की अपेक्षाएं भी बहुत ज्यादा है....असल में आप जानते हैं न कैंसर की एक सेल दूसरी सेल को पनपने नहीं देती बस कश्मीर का वही हाल है वहां कैंसर की तरह बुरी कोशिकाएं इतनी फैल रही है कि वे दूसरी को फैलने-पनपने नहीं दे रही....समय लगेगा लेकिन मुझे विश्वास है कि एक दिन हालात बदलेंगे... 
शिक्षा का उजाला पंहुचा ही नहीं
मेरा जो सबसे बड़ा विचार है इस संबंध में वह यह कि जिनके हाथ में बंदूक है वे भी निर्दोष है क्योंकि उन तक शिक्षा का उजाला पंहुचा ही नहीं, जहर उन कश्मीरी नेताओं में है जिनके अपने बच्चे विदेशों में पढ़ रहे हैं और वे गांवों के किशोर-युवाओं को वे बंदूक थमाते हैं धर्म के नाम पर असल में वे अधर्म कर रहे हैं....
 
गांव के बच्चों को शिक्षा का रास्ता नहीं दिखाया जाता है, उन्हें मदरसे भेजा जाता है जहां अलग तरह की एकतरफा शिक्षा दी जाती है। जब तक उनके पास शिक्षा की रोशनी नहीं पंहुचेगी उनको अपना महत्व पता ही नहीं चलेगा....उन्हें यह एहसास कभी नहीं होगा कि वे सिर्फ इस्तेमाल किए जा रहे हैं मरने और मारने के लिए..ज़हनी तौर पर वे गुलाम हो गए हैं...कश्मीरी मुसलमान स्त्रियों की भी यही हालात है...वे अपने घर के पुरुषों की सोच के इतर अपने विचार रखती ही नहीं है....गरीब कश्मीरी मुस्लिम को मोरल वैल्यू सिखाए जाए, देशहित में समझ विकसित की जाए तो हालात जल्दी सुधरेंगे और कारगर ढंग से सुधरेंगे... 
जेलों में मुर्गा मिल रहा है खाने को                             
इस हिंसा के लिए जिम्मेदार लोगों में जब तक डर नहीं बैठेगा तब तक कुछ नहीं हो सकता, अगर जेलों में मुर्गा मिल रहा है खाने को, बिरयानी बंट रही है तो उनको क्या तकलीफ है.... 
हमने हर बात के लिए जीरो से शुरुआत की...
हमें शिक्षा की लगन थी तो हम तो जहां रहे वहीं से शिक्षा आगे बढ़ा ली....जबकि हमारे तीन-तीन साल बर्बाद हुए हैं, हमें कहीं पर एडमिशन नहीं मिल पाता था क्योंकि रजिस्ट्रेशन नंबर नहीं था...हमने हर बात के लिए जीरो से शुरुआत की...आपको बताएं कि कश्मीर से आने के बाद गर्मी के कारण मेरी बुआ को ऐसा सन स्ट्रोक हुआ कि वे आज तक अपाहिज हैं। 
हमारी मदद मुस्लिम ने की थी
मेरे पिता का बहुत सम्मान था गांव में वे बच्चे पढ़ाते थे,मेरे पिता मुस्लिम घरों में जाकर मां बाप को डांट कर आते और अपने कंधे पर बच्चों को बिठा कर पढ़ाने के लिए लाते थे...हमारी मदद एक मुस्लिम ने की थी,बारामूला के मुसलमान भाइयों ने भनक लगते ही एक बच्चे को भेज कर सूचना दी थी कि आप लोग निकल जाओ और टैक्सी भी उन्होंने ही कर के दी थी....मेरे पापा के आने के बाद मेरे बड़े पापा भी वहां से निकल गए.... 
जिन्होंने हमें भगाया है वे हमसे ज्यादा दुखी हैंं.. ...
अपने स्कूल में बच्चे मुझे ढूंढ कर मिलने आ रहे हैं तो भारतीय जनता में यह जागरूकता तो आई है, बच्चों तक में आई है....आज हमारी शिक्षा ही हमारा संबल है...तभी तो देश के हर कोने में हम अच्छी-अच्छी जगह पर हैं...हम  ज्ञान पर विश्वास करते हैं, वे लोग जिन्होंने हमें भगाया है वे हमसे ज्यादा दुखी है...उन्हें न कश्मीरी पंडित ने मारा, न आर्मी ने मारा ये लोग खुद ही गलत रास्ते पर जाकर मर रहे हैं....इन्हें कोई समझाए, ये सब भी तो दुखी हैं न गलत रास्ते पर जाकर.... 
सरकार को शिक्षा के अच्छे इंतजाम करना चाहिए, भले ही उन्हें घर से निकाल निकाल कर पढ़ाए... लेकिन पढ़ाए.... वरना यह दृश्य बहुत मुश्किल से बदलेगा....

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