बागीचा ए अतलाफ है दुनिया मेरे आगे होता है शबोरोज तमाशा मेरे आगे।
जिंदगी जैसी तवक्को थी नहीं कुछ कम है हर घड़ी होता है अहसास कुछ कम है
घर की तामीर तसव्वुर में ही हो सक...
इक चीज थी जमीर जो वापस न ला सका
लौटा तो है जरूर वो दुनिया खरीद कर।
घरों पे नाम थे नामों के साथ ओहदे थे
बहुत तलाश किया कोई आदमी न मिला।
फुटपाथ का बिस्तर है तो है ईंट का तकिया
यह नींद के यूं कौन मजे लूट रहा है
कोई शहर ऐसा भी दुनिया में बनाया जाए, जिसमें सिर्फ़ अहले-मुहब्बत को बसाया जाए - कैफ़ मुरादाबादी