कहाँ गई वो वफ़ा, आज तो चले आओ,
लबों पे दम है रुका, आज तो चले आओ।
क़द्र रखती न थी मता-ए-दिल,
सारे आलम को मैं दिखा लाया----मीर तक़ी 'मीर'
दुनिया ने तेरी याद से बेगाना कर दिया
तुझसे भी दिलफ़रेब हैं ग़म रोज़गार के ----- फै़ज़ अहमद फ़ैज़
'दाग़' ने ख़ूब आशिक़ी का मज़ा,
जल के देखा, जला के देख लिया - दाग़ देहलवी
तुम हो कि कोई और हो इससे नहीं गरज,
अब तो किसी का साथ हमें रास ही नहीं।
तुम्हारी आँखों की तोहीन है ज़रा सोचो,
तुम्हारा चाहने वाला शराब पीता है - मुनव्वर राना
आज भी हम रह गए हसरत से उसको देखकर,
पूछना ये था कि आखिर वो खफ़ा है किसलिए।
हर इक बस्ती में उसके साथ अपनापन सा लगता है,
नहीं है वो तो अपना घर भी अपना घर नहीं लगता।
दिल मुझे उस गली में ले जा कर, और भी ख़ाक में मिला लाया
इब्तिदा में ही रेह गए सब यार, इश्क़ की कौन इंत...
सुनी एक भी बात तुमने न मेरी,
सुनी हमने सारे ज़माने की बातें ------अमीर मीनाई
अंगूर में थी ये शै पानी की चार बूँदें,
जिस दिन से खिंच गई है तलवार हो गई है----अमीर मीनाई
शै---
वो कौन हैं जिन्हें तौबा की मिल गई फ़ुरसत
पहुँचे जिस वक़्त मंज़िल पे तब ये खुला
कहते हैं कि आता है मुसीबत में ख़ुदा याद
वीराँ है मैकदा खुम ओ साग़र उदास है, तुम क्या गए कि रूठ गए दिन बहार के------फ़ैज़ अहमद फ़ैज़
ज़िन्दगी क्या है ख़ुद ही समझ जाओगे
बारिशों में पतंगें उड़ाया करो
मोहब्बत एक ऐसा खेल है जिसमें मेरे भाई, हमेशा जीतने वाले परेशानी में रहते हैं - मुनव्वर राना
हाथ रख कर मेरे सीने पे जिगर थाम लिया, आज तो तुमने ये गिरता हुआ घर थाम लिया ---- अमीर मीनाई
जब नहीं तुम ही, तो फिर रात के सन्नाटे में
कौन, किसको हम आवाज़ दिया करते हैं - मजरूह सुल्तानपुरी
ऐसी एक राह पे, जिससे न वो गुज़रेंगे कभी
यूँ ही बैठे हुए इक राह तका करते हैं - मजरूह सुल्तानपुरी