साइबर उत्पीड़न का असर कितना भयावह... एक भुक्तभोगी की आप-बीती

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गुरुवार, 28 सितम्बर 2023 (18:35 IST)
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चिन्ता-अवसाद, भावनात्मक दबाव और यहां तक बाल आत्म हत्याएं, ऐसे कुछ हानिकारक मामले हैं जो साइबर उत्पीड़न के परिणाम स्वरूप होते हैं, और रोकथाम की बेहतर रणनीतियां बनाए जाने की ज़रूरत है, जिनमें विशाल प्रौद्योगिकी सहयोग भी शामिल हो। यूएन मानवाधिकार परिषद में बुधवार को ये मुद्दा चर्चा के केन्द्र में आया।

संयुक्त राष्ट्र बाल कोष – UNICEF के अनुसार, दुनिया भर में लगभग 13 करोड़ छात्रों को, गुंडागर्दी या उत्पीड़न का अनुभव करना पड़ता है, जिसमें डिजिटल प्रौद्योगिकियों के कारण तेज़ी आई है। यूनीसेफ़ के अनुमान के अनुसार, 13 से 15 वर्ष की उम्र के हर तीन में एक बच्चे को, इस पीड़ा का अनुभव करना पड़ता है।

आत्म हत्या का जोखिम : यूगांडा की एक बाल पैरोकार 15 वर्षीय सैंटा रोज़ मैरी ने यूएन मानवाधिकार परिषद में अपनी भावनात्मक आपबीती बयान की। उन्होंने कहा कि निजी जानकारी और व्यक्तिगत तस्वीरें जब एक बार ऑनलाइन प्रकाशित हो जाती हैं तो, ‘आप जहां रहते हैं, वहां के समुदाय की नज़रों के सामने आना भी कठिन होता है, यहां तक कि आप अपने माता-पिता से भी नज़रें नहीं मिला पाते हैं’

उन्होंने आगाह किया कि इस तरह के हालात किसी भी बच्चे को ख़ुद के जीवन का अन्त करने तक के लिए विवश कर सकते हैं, जब उनके भीतर ये भाव भर जाता है कि समुदाय में उनकी ज़रूरत नहीं है। संयुक्त राष्ट्र की उप मानवाधिकार प्रमुख नादा अल नशीफ़ ने ध्यान दिलाया कि महिलाओं के विरुद्ध तमाम तरह के भेदभाव के उन्मूलन पर समिति (CEDAW) के अनुसार, साइबर उत्पीड़न, लड़कियों को, लड़कों की तुलना में, लगभग दोगुना अधिक प्रभावित करता है।

दूरगामी प्रभाव : प्रमुख नादा अल नशीफ़ ने विश्व स्वास्थ्य संगठन के शोध का सन्दर्भ दिया जिसमें दिखाया गया है कि जिन बच्चों को उत्पीड़न का शिकार बनाया जाता है, उनके स्कूल से ग़ायब रहने की सम्भावना अधिक होती है, साथ ही वो परीक्षाओं में ख़राब प्रदर्शन करते हैं और वो नीन्द नहीं आने व मनोवैज्ञानिक तकलीफ़ का भी अनुभव कर सकते हैं। कुछ अध्ययनों में ऐसे दूरगामी प्रभाव भी दिखाए गए हैं जो व्यस्क जीवन में भी जारी रह सकते हैं, जिनमें अवसाद और बेरोज़गारी की बारम्बारता प्रमुख है।

डेढ़ लाख हमले: फ़ेसबुक और इंस्टाग्राम : फ़ेसबुक की मालिक कम्पनी - मेटा कम्पनी की एक प्रतिनिधि – सुरक्षा नीति निदेशक दीपाली लिबरहान ने भी इस मुद्दे पर चर्चा में शिरकत की और समस्या की गहराई पर बात की।
दीपाली ने कहा कि वर्ष 2023 की केवल तीसरी तिमाही में ही, फ़ेसबुक और इंस्टाग्राम पर ऐसी सामग्री के लगभग डेढ़ लाख संस्करण पाए गए हैं, जिनमें उत्पीड़न व गुंडागर्दी नज़र आती है। इनमें से अधिकतर सामग्री को बहुत शुरुआती स्तर में ही हटा दिया गया था।

सामूहिक उत्तरदायित्व : बाल अधिकारों पर समिति के एक सदस्य फ़िलिप जैफ़े ने इस चर्चा के अन्त में हमारे बच्चों की सुरक्षा की सामूहिक ज़िम्मेदारी पर ज़ोर दिया। उन्होंने कहा, ‘हमें अपने बच्चों को, उनके अधिकारों के बारे में जागरूक बनाना होगा देशों व समाज के अन्य हिस्सों को भी बच्चों के संरक्षण के बारे में उनकी ज़िम्मेदारियों के बारे में जागरूक बनाना होगा’
(Credit: UN News Hindi)

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