बजट से कौन खुश हुआ राम ही जाने...

विभूति शर्मा
वर्तमान मोदी सरकार का आखरी बजट होने के कारण माना जा रहा था कि यह बड़ा ही लोकलुभावन होगा, लेकिन जब वित्तमंत्री अरुण जेटली ने अपना पिटारा खोला तो सारी अपेक्षाओं पर जैसे पानी फिर गया। आयकर स्लैब में कोई बदलाव न देखकर मध्यम वर्ग सर्वाधिक निराश हुआ। 40 हज़ार रुपए के स्टैण्डर्ड डिडक्शन का झुनझुना उसे रास नहीं आया।


गरीबों और किसानों के लिए अनेक ऐसी घोषणाएं, जो अच्छी होने के बावजूद उसकी समझ में मुश्किल से आएंगीं। अवाम तात्कालिक राहत चाहता है। महंगाई से मुक्ति सबसे बड़ी चाहत है, जिसके उपायों की झलक बजट में नहीं है। जहां तक मेरी व्यक्तिगत राय है तो बजट भारत के भविष्य के लिहाज से प्रभावी है। 'आयुष्मान भारत' और 'भारत माला' जैसी योजनाएं अगर जमीनी हकीकत बन सकीं तो मोदी के आगे बढ़ते भारत को हम देख सकेंगे। स्वास्थ्य पर बजट में विशेष ध्यान दिया जाना अच्छा लक्षण है।

दस करोड़ परिवारों यानि 50 करोड़ लोगों (40 प्रतिशत आबादी) के लिए प्रति परिवार पांच लाख रुपए का स्वास्थ्य बीमा वाली आयुष्मान योजना दुनिया की सबसे बड़ी स्वास्थ्य बीमा योजना होगी, लेकिन इसके क्रियान्वयन का खाका भी साथ में खींचा जाता तो लोगों को भरोसा करने में आसानी होती अन्यथा लोग इसे भी अंत्योदय योजना की तरह ही हल्‍के में लेंगे। हां, सड़कों का जाल बिछाए जाने वाली भारत माला योजना विश्वास योग्य मानी जा सकती है, क्योंकि सरकार ने अपने अभी तक के कार्यकाल में आशानुरूप ही काम किया है।

सड़क परिवहन के अलावा हवाई परिवहन पर भी जेटली ने ध्यान दिया है, लेकिन आम बजट में शामिल होने के बाद से भारत की जीवनरेखा कही जाने वाली रेलवे को पर्याप्त महत्व नहीं मिल पा रहा है। देश में बढ़ती किसानों की आत्महत्याओं के चलते यह तो अनुमान प्रारंभ से ही लगाया जा रहा था कि इस बार किसानों के लिए सरकार को विशेष प्रावधान करने होंगे, लेकिन फौरी राहत के उपाय बजट में नज़र नहीं आ रहे। न्यूनतम समर्थन मूल्य ड्योढ़ा करने की लॉलीपॉप की पोल तुरंत खुल गई कि यह तो पिछले साल भी किया गया था, लेकिन सही तरीके से अमल में नहीं लाया जा सका।

ऑपरेशन ग्रीन योजना आकर्षक है, जो किसानों की आलू, प्याज और टमाटर जैसी फसलों को संरक्षण देगी। कम भाव के चलते ये फसलें सड़कों पर फेंकने के लिए किसान मजबूर होते हैं। सिंचाई के लिए 2600 करोड़ का कोष और बांस के लिए 1290 करोड़ का कोष महती योजना मानी जा सकती है। कॉर्पोरेट जगत जरूर इस बजट से खुश होगा, क्योंकि उसे कर राहत मिली है। कंपनियों का काम आसान बनाने के लिए उन्हें आधार जैसा सोलह अंकों का यूनिक आईडी देने की बात कही गई है।

खुश होने का अवसर राष्ट्रपति, उपराष्ट्रपति और सांसदों के लिए भी है। इन सभी के वेतन भत्ते बढ़ने की घोषणा की गई है। अब हर पांच साल में इनके वेतन भत्ते बढ़ते रहेंगे। एक महत्वपूर्ण कदम के तहत भारत में क्रिप्टो करेंसी को लीगल टेंडर न मानना है। पिछले वर्ष बिटक्वाइन काफी चर्चा में रहा था, अमिताभ बच्चन जैसे महानायक इसमें इंवेस्‍ट कर चुके हैं।

कुल मिलाकर बजट भले ही कागजों में अच्छा नज़र आ रहा हो, लेकिन इससे कौन खुश होगा यह आकलन करना मुश्किल ही होगा, क्योंकि जिनके लिए ये घोषणाएं की गई हैं उन्हें समझाना सरकारी प्रतिनिधियों की महती जिम्मेदारी है। अगले चुनाव तक अगर वे नहीं समझा सके तो सरकार चक्रव्यूह में फंस जाएगी।

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