उत्तरप्रदेश विधानसभा चुनाव में असदुद्दीन ओवैसी बनेंगे गेमचेंजर या हो जाएगा गेमओवर?

विकास सिंह

शनिवार, 5 फ़रवरी 2022 (13:45 IST)
उत्तरप्रदेश विधानसभा चुनाव में इन दिनों आल इंडिया मजलिस ए इत्तेहादुल मुस्लिमीन (AIMIM) के चीफ असदुद्दीन ओवैसी का नाम सबसे अधिक सुर्खियों मे है। मेरठ में ओवैसी के काफिले पर हुए हमले के बाद अचानक से लखनऊ से लेकर मेरठ तक और मेरठ से लेकर दिल्ली तक ओवैसी चर्चा के केंद्र में आ गए। ध्रुवीकरण की पॉलिटिक्स के चलते गर्माए पश्चिमी उत्तर प्रदेश का सियासी पारा ओवैसी के काफिले पर हुए हमले के बाद और चढ़ गया है। ओवैसी पर हमले को लेकर गृहमंत्री अमित शाह सोमवार यानि सात फरवरी को संसद में जवाब दे सकते है। पश्चिमी उत्तर प्रदेश में मतदान से ठीक पहले ओवैसी के काफिले पर हुए हमले के सियासी मायने भी तलाशे जा रहे है। 
 
100 सीटों पर लड़ने वाले गेमचेंजर रणनीति-ओवैसी की पार्टी आल इंडिया मजलिस ए इत्तेहादुल मुस्लिमीन (AIMIM) उत्तर प्रदेश चुनाव में तीसरे फ्रंट के रूप में भागीदारी परिवर्तन मोर्चा का गठन कर मैदान में उतरी है। ओवैसी के गठबंधन में जन अधिकार पार्टी और भारतीय मुक्ति मोर्चा शामिल है। बिहार चुनाव में पांच विधानसभा सीटों पर जीत हासिल करने वाली AIMIM ने इस बार यूपी विधानसभा चुनाव में मुस्लिम वोट बैंक पर अपनी नजर गड़ा दी है। पार्टी उत्तर प्रदेश में मुस्लिम बाहुल्य वोटरों वाली 100 सीटों पर चुनाव लड़ने की तैयारी में है और अब तक उसने 70 के करीब अपने उम्मीदवारों के नामों का एलान कर दिया है। 
दरअसल ओवैसी और उनकी पार्टी की नजर उत्तरप्रदेश के उस 19 फीसदी मुस्लिम वोट बैंक पर टिकी है जो कि 140 से अधिक विधानसभा सीटों पर अपना असर रखती है। मुस्लिम वोट बैंक की ताकत का अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि राज्य की 100 से अधिक विधानसभा सीटें ऐसी है जहां इनका एकजुट वोट उम्मीदवार की जीत तय कर सकता है। 
 
ओवैसी दावा करते हैं कि इस बार उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव में मुसलमान अपने वोटों से अपने नुमाइंदों को कामयाब करेंगे और अपनी आवाज को विधानसभा तक ले जाएंगे। औवेसी कहते हैं कि मुसलमान सर्कस के मदारी या स्टेज के कव्वाल नहीं है। हम हिस्सेदारी की लड़ाई लड़ रहे है। अब मुसलमान किसी के दिए टुकड़ों पर जिंदगी नहीं नहीं गुजारेंगे। 
 
ओवैसी की पार्टी प्रदेश के 75 जिलों में से 55 जिलों में आने वाली उन 100 विधानसभा सीटों पर चुनाव लड़ने की तैयारी में है जिनमें मुस्लिम वोटरों की संख्या 35 फीसदी से उपर है। पार्टी से जुड़े एक वरिष्ठ नेता दावा करते हैं कि चुनाव में 10 से अधिक सीटों पर उनकी पार्टी कड़ी चुनौती पेश कर रही है जिनमें बहराइच जिले की नानपारा, अयोध्या की रदौली, सिदार्थनगर जिले की डुमरियागंज और पश्चिमी उत्तरप्रदेश की सहारहनपुर देहात, गाजियाबाद की साहिबाबाद और मेरठ में सिविल खास है। 
 
सांप्रदायिक ध्रुवीकरण का सहारा-ओवैसी पर हुए हमले को पश्चिमी उत्तर प्रदेश में ध्रुवीकरण की पॉलिटिक्स से भी जोड़ कर देखा जा रहा है। उत्तर प्रदेश में पहले चरण में पश्चिमी उत्तर प्रदेश की जिन 58 सीटों पर 10 फरवरी को मतदान होना है, उसमें ओवैसी की पार्टी ने 12 सीटों पर अपने उम्मीदवार उतारे है। इनमें मुज़फ्फनगर और मेरठ की तीन-तीन सीटें,ग़ाजियाबाद की पांच में से दो पर तो हापुड़ में तीन में से दो सीटों पर ओवैसी की पार्टी के उम्मीदवार ताल ठोक रहे हैं। इनके अलावा बुलंदशहर और अलीगढ़ ज़िले में एक-एक सीट पर उनकी पार्टी के उम्मीदवार किस्मत आज़मा रहे हैं। ऐसे में जब पश्चिमी उत्तर प्रदेश में सपा और आरएलडी एक साथ चुनावी मैदान है तब ओवैसी के उम्मीदवार सपा-आरएलडी के मुस्लिम उम्मीदवार की मुश्किलें बढ़ा रहे हैं।
 
अपने उपर हुए हमले को लेकर संसद में बोले ओवैसी ने कहा कि “मुझे Z कैटेगरी सिक्योरिटी नहीं चाहिए। मुझे A कैटेगरी का शहरी बनाइए ताकि हमारी आपकी ज़िंदगी बराबर हो। मैं 1994 से राजनीति कर रहा हूँ मैं घुटन की ज़िंदगी नहीं जी सकता। मैं सिक्योरिटी हरगिज़ नहीं लूंगा। आप इंसाफ़ कीजिए। गोली चलाने वालों पर UAPA लगाइए। चार बार के सांसद पर कोई छह फीट की दूरी से गोली चलाता है। मुझे विश्वास है कि उत्तरप्रदेश की जनता चुनाव में गोली चलाने वालों को जवाब बैलेट से देगी,कमजोरों को दबाने का जवाब हिस्सेदारी से देगी। 
 
 
2017 विधानसभा चुनाव का अनुभव खराब-2022 के यूपी विधानसभा चुनाव से पहले पूरा दमखम दिखाने की कोशिश कर रहे असदुद्दीन औवेसी और उनकी पार्टी का राज्य में पुराना ट्रैक रिकॉर्ड बहुत खराब है। 2017 के विधानसभा चुनाव में औवेसी की पार्टी ने राज्य की 38 विधानसभा सीटों पर चुनाव लड़ा था जिसमें 37 पर पार्टी उम्मीदवारों की जमानत जब्त हो गई थी। इन 38 सीटों पर औवेसी की पार्टी को सिर्फ 2.46 फीसदी वोट हासिल हुआ था।  ऐसे में 2022 के विधानसभा चुनाव में औवेसी और AIMIM क्या असर दिखाते है या देखना दिलचस्प होगा। 
 
क्या कहते हैं राजनीतिक विश्लेषक-उत्तर प्रदेश की सियासत पर करीबी से नजर रखने वाले वरिष्ठ पत्रकार रामदत्त त्रिपाठी ओवैसी की भूमिका को लेकर कहते हैं कि लोकतंत्र में हर किसी को अपनी पार्टी के विस्तार करने और प्रचार करने का अधिकार है लेकिन ओवैसी जिस तरह से काम करते है वह एक तरह से संघ परिवार और भाजपा के पूरक ही दिखाई देते है और एक तरह से वह भाजपा के पक्ष में ध्रुवीकरण में मदद भी करते है। उत्तरप्रदेश चुनाव में भाजपा हिंदू वोटरों के ध्रुवीकरण की कोशिश कर रही है तो ओवैसी मुस्लिम वोटरों के ध्रुवीकरण की कोशिश में लगे हुए है। 
 
वहीं औवेसी को लेकर भाजपा का कुछ ज्यादा ही अक्रामक होने काफी कुछ चौंकाता है। भाजपा अच्छी तरह से जानती है कि असदुद्दीन औवेसी और उनकी पार्टी मुस्लिम वोट बैंक में जितना सेंध लगाएंगे उतना ही नुकसान विपक्ष खासकर समाजवादी पार्टी को होगा और उसका सीधा लाभ मिलेगा। 
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उत्तरप्रदेश चुनाव में ओवैसी जो भी वोट काटेंगे वह भाजपा विरोधी वोट ही होगा। लेकिन इस बार ओवैसी कितना कामयाब होंगे यह भी बड़ा सवाल है। ऐसा लगता नहीं है कि उन्हें मुसलमानों में ज्यादा महत्व मिल रहा है, इसकी बड़ी वजह बिहार है। बिहार में ओवैसी के वजह से जिस तरह से भाजपा पॉवर में आई तो ऐसा लगता है कि उत्तरप्रदेश में बिहार जैसा कुछ रिपीट होगा। उत्तरप्रदेश के चुनाव खासकर पश्चिमी उत्तरप्रदेश में सांप्रदायिक ध्रुवीकरण की जगह किसान से जुड़े मुद्दें और रोजगार का मुद्दा ज्यादा हावी दिखाई दे रहा है।  
 
ऐसे में अब 10 मार्च को ही पता चलेगा की ओवैसी उत्तर प्रदेश की सियासत में गेमचेंजर साबित होंगे या चुनाव परिणाम बताएंगे कि ओवैसी की ध्रुवीकरण की पॉलिटिक्स का गेम ओवर हो चुका है। 

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