मैं कोई शे'र न भूले से कहूँगा तुझ पर
फ़ायदा क्या जो मुकम्मल तेरी तहसीन न हो
कैसे अल्फ़ाज़ के साँचे मे
मेरी नज़्म
मुझसे बहुत छोटी थी
खेलती रहती थी पेहरों आग़ोश में मेरी
आधे अधूरे मिसरे मेरे गले में बाँहें...
हर बात पे इक अपनी सी कर जाऊँगा
जिस राह से चाहूँगा गुज़र जाऊँगा
जीना हो तो मैं मौत को देदूँगा शिकस्त ...
मरमरीं ताक़ में दीपक रख कर, तेरी आँखों को बनाया होगा
सुर्मा-ए-च्श्म की ख़ातिर उसने, फिर कोई तूर जलाया
लेके पैग़ामे-मसर्रत आगया दिन ईद का
आज सब ही ने भरी हैं क़हक़हों से झोलियाँ
चाँद चेहरे को तो आँखों को कंवल लिक्खूँगा
जब तेरे हुस्न-ए-सरापा पे ग़ज़ल लिक्खूँगा
हर तरफ़ जश्न-ए-बहाराँ, हर तरफ़ रंग-ए-निशात
सूना-सूना है हमारे दिल का आँगन दोस्तो
कुछ करम में कुछ सितम में बाँट दी
कुछ सवाल-ए-बेश-ओ-कम में बाँट दी
ज़िन्दगी जो आप ही थी क़िब्लागाह
हम ...
बस तीन दिन हुए हैं बड़ीबी की मौत को
सठया गए हैं दोस्तो कल्लू बड़े मियाँ
चर्चा ये हो रहा है के सब भूल-