ये देश के हिन्दू और मुस्लिम तेहज़ीबों का शीराज़ा है सदियों पुरानी बात है ये, पर आज भी कितनी ताज़ा है
हाथ मुझसे मिला के महफ़िल में तुम कहाँ खो गए ख़ुदा जाने चूमती हूँ मैं इन लबों से कभी और कभी अपनी आँख
तुम आखिर मेरी क्या हो = सच हो या एक सपना हो जानी अन्जानी सी हो = या एक कहानी सी हो
मिट्टी में मिला दे के जुदा हो नहीं सकता अब इससे ज़्यादा में तेरा हो नहीं सकता
हर गली कूंचे में घुस कर बन्द दरवाज़ों की सांकल खोलती है,
साया हैं न दीवारें = ज़ीस्त के जंगल में = हैं धूप की बौछारें
कमरे में एक बंगले के बैठे थे मर्द-ओ-ज़न फ़ैशन परस्त लोग थे उरयाँ थे पैरहन
ऎ मुबारक मौत! ऎ राज़े कमाले ज़िन्दगी ऎ जहाने ख़्वाब नोशीं! ऎ मआले ज़िन्दगी ऎ पयामे रोशनी! सर्रे बक़ा ता
नेक तुलसीदास गंगा के किनारे वक़्ते शाम जा रहा था इक तरफ़ बश्शाश जपता हर का नाम
तुम परेशाँ न हो, बाब-ए-करम वा न करो और कुछ देर पुकारूँगा, चला जाऊँगा
झूट अपनी ज़िन्दगी में जब से शामिल हो गया ज़िन्दगी मुश्किल ही थी मरना भी मुश्किल हो गया
मुशाएरे के लिए क़ैद तरहा की क्या है ये इक तरह की मशक़्क़त है शायरी क्या है
दि नेशन टाक्स इन उर्दू, दि पीपुल फ़ाइट इन उर्दू डियर रीडर देट इज़ व्हाइ, आइ राइट इन उर्दू
यारब तसव्वुरात को इतनी रसाई दे, हर शै में मुझको गुम्बदे-ख़ैज़रा दिखाई दे

मज़ाहिया और तंज़िया क़तआत

गुरुवार, 28 अगस्त 2008
गधे करने लगे हैं 'चाय नोशी'------चाय पीना मगर इंसान भूखों मर रहे हैं 'तनज़्ज़ुल' की तरफ़ माइल ह...

रेहबर जोनपुरी के क़तआत

शनिवार, 23 अगस्त 2008
अब्र में छुप गया है आधा चाँद चाँदनी छ्न रही है शाखों से